नियुक्ति अयोग्य ठहराने का आदेश रद, 8 हफ्ते में फैसला लें
हाईकोर्ट ने कहा आपराधिक केस दर्ज होने मात्र से नियुक्ति के अयोग्य करार देना सही नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल एफआईआर या चार्जशीट दाखिल होने से किसी को अपराध का दोषी नहीं माना जा सकता। इसके चलते नियुक्ति के लिए अयोग्य ठहराने से पहले यह जरूर देखाना चाहिए कि वास्तविकता क्या है क्योंकि ऐसा नुकसान पहुंचाने के इरादे से भी किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि इसे नौकरी के लिए अयोग्य ठहराने का पैमाना नहीं माना जाना चाहिए। इस कमेंट के साथ कोर्ट ने यह भी एड किया कि सरकारी पद पर नियुक्ति का पैरामीटर अधिकारी ही तय करेंगे कोर्ट नहीं। दोनों पक्षों में समझौते के कारण चार्जशीट निरस्त कर दी गई है। कोर्ट ने कहा जब पीएसी पुलिस कांस्टेबल की 2015 में भर्ती निकाली गई थी तब याची के खिलाफ आपराधिक केस नहीं था, चयनित होने के बाद दो परिवारों के झगडे में एफआईआर दर्ज हुई।
चयनित याची को अयोग्य करार दिया गया। जिलाधिकारी वाराणसी ने विवेक का इस्तेमाल न कर पुलिस रिपोर्ट पर कार्रवाई की। उस भर्ती का पद खाली नहीं के आधार पर राहत से इंकार नहीं कर सकते। इसलिए पुनर्विचार किया जाय।
कोर्ट ने याची को नियुक्ति के अयोग्य करार देने के डीसीपी वाराणसी के 20 जुलाई 24 के आदेश को रद कर दिया और पुलिस कमिश्नर व डिप्टी पुलिस कमिश्नर वाराणसी एवं अपर सचिव पुलिस भर्ती बोर्ड को याची की 2015 की भर्ती में नियुक्त करने पर 8 हफ्ते में विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि उस भर्ती में पद रिक्त न होना इसमें बाधक नहीं होगा।
यह आदेश जस्टिस जेजे मुनीर की बेंच ने विवेक यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता विनय कुमार सिंह ने बहस की।
बता दें कि याची पुलिस पीएसी भर्ती 2015 में चयनित हुआ। नियुक्ति से पहले उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी थी। उसने तथ्य छिपाया नहीं। वाराणसी के चोलापुर थाने में 7 मई 16 की घटना की एफआईआर दर्ज हुई और पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका पर दोनों पक्षों को समझौते की अनुमति देते हुए मजिस्ट्रेट को सत्यापित करने का आदेश दिया।
समझौते के आधार पर चार्जशीट रद भी कर दी गई। इससे पहले ही याची को नियुक्ति के अयोग्य करार देते हुए नियुक्ति से इंकार कर दिया गया था।जिसे चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने कहा सरकारी नौकरी मिलने पर जलन विद्वेष के कारण झूठे केस में फंसाया भी जा सकता है। इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।आरोप भी गंभीर नहीं है। अनैतिक अपराध का आरोप नहीं है।
कोर्ट आंख बंद नहीं रख सकती। जिलाधिकारी पोस्ट आफिस की तरह एसपी की रिपोर्ट पर आदेश नहीं दे सकता। उसे विवेक का इस्तेमाल कर आदेश पारित करना चाहिए। चयन होने के बाद अचानक एफआईआर दर्ज होना,का गहन परीक्षण करना चाहिए था। देखना चाहिए कि एफआईआर सही है या सरकारी नौकरी से बाहर करने की कवायद भर है।
सावधानी से विचार करना चाहिए। जिलाधिकारी को नौकरशाह की तरह नहीं सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए। दोनों पक्षों की तरफ से एफआईआर दर्ज की गई थी। याची पर आरोप भी गंभीर नहीं था।
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