फिंगर प्रिंट मैच न करने के चलते 7 जिलों में बर्खास्त किये गये दरोगाओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दी राहत
नौकरी से हटाने का आदेश रद्द, सभी लाभों सहित की सेवा में बहाली का निर्देश दिया

प्रयागराज। फिंगर प्रिंट डिफर होने के आधार पर अपने स्थान पर किसी और को बैठाकर रिटेन एग्जाम क्लीयर कर लेने के आरोप में अक्टूबर 2024 में सेवा से बर्खास्त कर दिये गये उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात रहे करीब आधा दर्जन से अधिक दरोागाओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दे दी है. कोर्ट ने मेरठ, शाहजहांपुर, बरेली, फिरोजाबाद, गोरखपुर, अलीगढ़ एवं बलिया में तैनात दरोगाओं को नौकरी से निकालने के आदेश को रद्द कर दिया है और सभी को सभी परिणामी लाभों सहित सेवा में उनकी बहाली का निर्देश दिया है। यह आदेश जस्टिस अजित कुमार ने गौरव कुमार, रोहित कुमार, सुधीर कुमार गुप्ता निर्भय सिंह जादौन एवं ज्योति व अन्य दरोगाओं की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है।
सेवा नियमावली का पालन नहीं किया गया
दरोगाओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया ने पक्ष रखा। उनका कहना था कि याचीगण को सेवा से बर्खास्त करने से पूर्व उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा न तो उनकी सेवा नियमावली का पालन किया गया था और न ही कोई विभागीय जांच सम्पादित की गई थी। याचीगणों ने अलग अलग याचिका दाखिल कर फिंगर प्रिंट डिफर होने के आधार पर दरोगा के पद पर की गयी नियुक्ति को निरस्त किये जाने एवं सेवा से हटाये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
फरवरी 2021 में आया था भर्ती के लिए विज्ञापन
बता दें कि मामले के अनुसार उ०प्र० पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा 9027 पुलिस उपनिरीक्षकों के पदों पर भर्ती के लिये विज्ञापन 24 फरवरी 2021 को निकाला गया था। चयन प्रक्रिया पूरी करने के लिए ऑनलाइन लिखित परीक्षा, अभिलेखों की संवीक्षा एवं शारीरिक मानक परीक्षा, शारीरिक दक्षता परीक्षा तथा चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य था। सभी याचीगणों का चयन पुलिस उपनिरीक्षक के पद पर सम्पूर्ण चयन प्रकिया में सफल घोषित होने के पश्चात फरवरी 2023 में हुआ था। उन्हें उपनिरीक्षक के पद पर फरवरी 2023 में नियुक्ति प्रदान की गयी तथा मार्च 2023 में ट्रेनिंग पर भेजा गया। सभी याचीगणों ने अपना प्रशिक्षण सफलता पूर्वक उत्तीर्ण किया तत्पश्चात् उन्हें दरोगा के पद पर मार्च 2024 में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में पोस्टिंग प्रदान की गयी।
अक्टूबर 2024 में सेवा से कर दिये गये थे बर्खास्त
उप्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड, लखनऊ द्वारा दिनांक 27 अक्टूबर 2024 को इन सभी दरोगाओं का चयन फिंगर प्रिंट डिफर होने के आधार पर निरस्त कर दिया गया तथा सेवा से हटा दिया गया। भर्ती बोर्ड द्वारा दरोगाओं के विरूद्ध पारित आदेश में यह आरोप लगाया गया था कि याचीगणों द्वारा चयन प्रकिया में लिखित परीक्षा के समय स्वयं परीक्षा नहीं दी। बल्कि उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा परीक्षा दी गयी। कार्यदायी संस्था के पास उपलब्ध लिखित परीक्षा में सम्मिलित अभ्यर्थियों के फिंगर प्रिंट से मैच कराया गया तो दोनों हाथों के फिंगर प्रिंट का मिलान नहीं हुआ। इस कारण इन सभी दरोगाओं को सेवा से हटा दिया गया। अधिवक्ता विजय गौतम ने बताया कि इसी चयन प्रक्रिया में अभिलेखों की संवीक्षा एवं शारीरिक मानक परीक्षा तथा शारीरिक दक्षता परीक्षा के समय सैकड़ों दरोगा के पद पर चयनित अभ्यार्थियों को भर्ती केन्द्र से ही फिंगर प्रिंट डिफर होने के आधार पर एफआईआर दर्ज कराने के बाद गैर कानूनी तरीके से जेल भेज दिया गया था।

नियमावली-1991 के नियम 14(1) का पालन नहीं
वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम का कहना था कि उक्त आदेश पारित करने से पूर्व उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14(1) के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया तथा याचियों के ऊपर जो आरोप लगाये गये है, उसके सम्बन्ध में कोई विभागीय जाँच भी नहीं पूरी की गयी। याचियों को फिंगर प्रिंट मैच न करने पर सुनवाई का अवसर नहीं प्रदान किया गया तथा नियम एवं कानून के विरूद्ध उनको सेवाओं से हटा दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के केसेज का हवाला दिया गया
हाईकोर्ट ने रणविजय सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य तथा विजय पाल सिंह व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य में डिवीजन बेंच द्वारा प्रतिपादित किये गये विधि के सिद्धान्तों का हवाला देते हुए भर्ती बोर्ड द्वारा फिंगर प्रिंट मैच न करने के चलते बर्खास्त किये गये दरोगाओं को सेवा से हटाये जाने के आदेश को गैर कानूनी करार दिया तथा दरोगाओं का चयन निरस्तीकरण आदेश एवं सेवा से हटाये जाने के आदेश 27 अक्टूबर 2024 को रद्द कर दिया। कोर्ट ने सेवा को सभी लाभों सहित बहाल करते हुए विपक्षीगण को यह छूट दी है कि वे नये सिरे से नियम एवं कानून के तहत आदेश पारित कर सकते है।
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