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कैश में ₹500 कम देने वाले बैंक कैशियर को राहत

HC ने सहकारी बैंक को दी नए सिरे से कार्यवाही की छूट

कैश में ₹500 कम देने वाले बैंक कैशियर को राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला सहकारी बैंक लिमिटेड, बरेली के लिपिक रणजीत कुमार को अनुशासनात्मक कार्यवाही में मिली सजा को रद्द कर दिया है. और बैंक को नियमानुसार नये सिरे से कार्यवाही की छूट दी है. यह आदेश जस्टिस जेजे मुनीर ने 28 फरवरी, 2023 के सचिव/मुख्य कार्यकारी अधिकारी के आदेश को रद्द करते हुए दिया है.

याची को 20 दिसंबर, 2021 को निलंबित कर दिया गया था. उन पर एक खाताधारक  को ₹70,000 के आहरण पर ₹69,500 का भुगतान किया गया, यानी ₹500 कम दिए गए. इसके अतिरिक्त, शाम को कैश गिनते समय ₹400 कम पाए गए, जिससे बैंक की विश्वसनीयता और छवि खराब हुई. आरोप था कि उन्होंने ग्राहकों को गुमराह करके नकद उधार लिया. बिना सूचना के अनुपस्थित रहे.

4 मार्च, 2022 को आरोप पत्र जारी किया गया था, जिसका उन्होंने 15 अप्रैल, 2022 को जवाब दिया. जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को दोषी पाया. इसके बाद, उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई के लिए बुलाया गया और कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. 28 फरवरी, 2023 को, बैंक की प्रबंध समिति के निर्णय के अनुसार, सचिव/मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने याचिकाकर्ता पर संचयी प्रभाव से दो वेतन वृद्धियों को रोकने की सजा सुनाई. इसे याची ने हाइकोर्ट में चुनौती दी.

कोर्ट ने कहा कि यद्यपि उत्तर प्रदेश सहकारी समिति कर्मचारी सेवा विनियम, 1975 (Regulation 84) के तहत वेतन वृद्धि रोकना एक छोटी सज़ा है, जिसके लिए औपचारिक अनुशासनात्मक कार्यवाही अनिवार्य नहीं है, फिर भी, आदेश में आरोपों, याचिकाकर्ता के बचाव और उन्हें दोषी ठहराने के कारणों पर कोई विस्तृत चर्चा नहीं थी.

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि प्रशासनिक या अर्ध-न्यायिक आदेशों में कारणों का उल्लेख होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संबंधित प्राधिकरण ने तथ्यों और कानून पर विचार किया है, और यह न्यायिक समीक्षा के लिए आधार प्रदान करता है.

कोर्ट ने कहा कि आदेश में कारण न बताने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है. इस आधार पर, न्यायालय ने 28 फरवरी, 2023 के आदेश को रद्द कर दिया और प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को सुनवाई का आवश्यक अवसर प्रदान करने के बाद नए सिरे से, तर्कपूर्ण और सुविचारित आदेश पारित करें. न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि यदि अनुशासनात्मक प्राधिकरण याचिकाकर्ता के खिलाफ निष्कर्ष पर पहुंचता है, तो लगाए गए दंड से अधिक दंड नहीं लगाया जाएगा.

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