SDM को भूमिधर अधिकारों की घोषणा करने का अधिकार नहीं
यूपी राजस्व संहिता के प्रावधानों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के तहत SDM को प्रशासनिक आदेश से भूमिधर अधिकारों की घोषणा देने का अधिकार नहीं दिया गया है. जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र ने कहा कि यूपी राजस्व संहिता के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ने पर पता चलता है कि तीनों प्रावधान; अधिनियम, 1950 की धारा 131ए, 131बी और संहिता, 2006 की धारा 76 संबंधित काश्तकार को हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर का दर्जा देने की बात करते हैं. हालांकि, प्रावधान ऐसा दर्जा देने या ऐसी घोषणा करने के लिए किसी मंच का प्रावधान नहीं करते हैं. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है!
भूमिधर का दर्जा दिए जाने का हकदार था
याची ने याचिका दाखिल कर पूर्ण भूमिधर अधिकारों की घोषणा और SDM के समक्ष दायर अभ्यावेदन पर निर्णय देने के लिए परमादेश रिट की हाईकोर्ट में मांग की थी. कोर्ट ने कहा कि निश्चित रूप से उप जिलाधिकारी या किसी अन्य अधिकारी को प्रशासनिक पक्ष से, उपरोक्त प्रावधानों के तहत संबंधित काश्तकार के पक्ष में ऐसी घोषणा करने के लिए सशक्त नहीं माना गया है. याची जयराज सिंह के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि यूपी राजस्व संहिता लागू होने से पहले याचिकाकर्ता 5 साल से अधिक समय तक गैर-हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर रहा था, इसलिए वह SDM द्वारा हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर का दर्जा दिए जाने का हकदार था.
धारा 131बी में प्रावधान
यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 131 ए और 131 बी के साथ-साथ यूपी राजस्व संहिता की धारा 76 पर भरोसा किया गया. यूपी जमींदारी उन्मूलन एवं लैंड रेवेन्यू अधिनियम की धारा 131ए में ऐसी स्थिति का प्रावधान है जिसमें कोई व्यक्ति भूमि के अहस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर बन जाता है. धारा 131बी में प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति जो उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1995 के लागू होने से ठीक पहले दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए अहस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर था, ऐसे लागू होने पर वह हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर बन जाएगा.
हस्तान्तरणीय अधिकार वाला भूमिधर बन जाएगा
धारा 131बी(2) में यह प्रावधान है कि अधिनियम के प्रारंभ पर अहस्तांतरणीय अधिकार वाला भूमिधर या ऐसा व्यक्ति जो ऐसे प्रारंभ के बाद अहस्तांतरणीय अधिकार वाला भूमिधर बन जाता है, अहस्तांतरणीय अधिकार वाला भूमिधर बनने की तिथि से दस वर्ष की अवधि की समाप्ति पर हस्तान्तरणीय अधिकार वाला भूमिधर बन जाएगा. उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 76(2) में प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति जो इस संहिता के प्रारंभ से ठीक पूर्व अहस्तांतरणीय अधिकारों वाला भूमिधर था और [पांच वर्ष] या उससे अधिक की अवधि तक ऐसा भूमिधर रहा था, ऐसे प्रारंभ पर हस्तांतरणीय अधिकारों वाला भूमिधर बन जाएगा.
उप-विभागीय अधिकारी का कोई उल्लेख नहीं
कोर्ट ने कहा कि संहिता की धारा 76(2) के अनुसार, संहिता के लागू होने से 5 वर्ष पहले गैर-हस्तांतरणीय अधिकारों वाला भूमिधर, हस्तांतरणीय अधिकारों वाला भूमिधर होगा. कोर्ट ने कहा कि अधिकार प्रदान करने वाले 3 प्रावधानों में उप-विभागीय अधिकारी का कोई उल्लेख नहीं है. जस्टिस शैलेन्द्र ने कहा कि संहिता की धारा 144 के तहत घोषणात्मक वाद भूमिधर के रूप में हक को चुनौती देने के लिए था और प्रशासनिक पक्ष की घोषणा के द्वारा ऐसा नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने यह मानते हुए कि परमादेश रिट उस प्राधिकारी को जारी नहीं की जा सकती जिसके पास अभ्यावेदन पर निर्णय करने का अधिकार नहीं है.