इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पलटा रेप पर अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश औरैया का फैसला, 7 साल की कैद, 45 हजार जुर्माना
फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आरोपित को कर दिया था बरी, सरकार ने दाखिल की थी अपील

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस संदीप जैन की बेंच ने 2016 में 18 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने वाले आरोपी को बरी करने का आदेश रद कर दिया है. बलात्कार पीड़िता की गवाही पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने आरोपित को IPC की धारा 376, 452 तथा 506 के तहत अपराध का दोषी पाये जाने पर सात साल कैद और 45 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनायी है. कोर्ट ने कहा कि भले ही एक महिला संभोग करने की आदी हो, फिर भी उसके साथ बलात्कार नहीं किया जा सकता. यह स्वीकार करना ‘हास्यास्पद’ होगा कि बलात्कार पीड़िता, जिसे मानसिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से ‘दबाया’ गया, उसको उसके बयान को विश्वसनीय बनाने के लिए आंतरिक और बाहरी चोटों का सामना करना पड़ा.
11 सितंबर 2016 को सामने आयी घटना
पूरा मामला उत्तर प्रदेश के औरैया जिले का है. घटना 11 सितंबर, 2016 की है. कोर्ट में पेश किये गये तथ्यों के अनुसार आरोपी आवास विकास कॉलोनी, कानपुर रोड, औरैया में रहता था. पीड़िता का मकान भी इसी कालोनी में था. तथ्यों के अनुसार पीड़िता की सगाई एक युवक के साथ हो चुकी थी. घटना के दिन, वह अपने मंगेतर और और उसके भाई के साथ ‘अपार्टमेंट’ में मौजूद थी. दिन में डेढ़ बजे के करीब आरोपित पुष्पेन्द्र उर्फ गब्बर अपने साथ 3-4 को लेकर उसके मकान में जबरदस्ती घुस आया. आरोप था कि उन लोगों ने पीड़िता के मंगेतर को बंदूक से धमकाया और उसे कपड़े उतारने के लिए मजबूर कर दिया. नग्न अवस्था में हो जाने पर आरोपितों ने उसका वीडियो बनाया. इसके बाद उन लोगों ने पीड़िता को टारगेट किया और उसके साथ रेप किया. बलात्कार के दौरान बेहोश हो गई. होश आया तो उसने खुद को जालौन के नैनपुरा में पाया. वह किसी तरह वापस अपने घर वापस पहुंची और अपनी मां को पूरी कहानी सुनाई.
आरोपित पौने सात साल रह चुका है जेल में
घटना की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने कार्रवाई की आरोपित पुष्पेन्द्र उर्फ गब्बर को जेल भेज दिया. इस मामले की सुनवाई अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश औरैया की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने की. इस कोर्ट ने आरोपित को बरी कर दिया था. इस प्रकरण में आरोपित 6 वर्ष 9 महीने तथा 11 दिन (वास्तविक) तक जेल में रह चुका है. कोर्ट ने जेल अधीक्षक, जिला जेल, इटावा (यूपी) को निर्देश दिया कि वह छूट के साथ पहले से काटी गई सजा की गणना करें तथा 30 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के माध्यम से आरोपी को सूचित करें. वर्तमान में जमानत पर चल रहा आरोपित यह सजा बची हुई है तो 30 जुलाई तक आत्मसमर्पण करे.
दो जजों की बेंच ने की सुनवाई
दो जजों की बेंच ने कहा कि, हम पाते हैं कि यह बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए उपयुक्त मामला है. सरकार की अपील को स्वीकार किया जाता है. एएसजे/एफटीसी-I/विशेष न्यायाधीश, गैंगस्टर एक्ट, औरैया की अदालत द्वारा एसटी संख्या 75/2017 ( यूपी राज्य बनाम पुष्पेंद्र @ गब्बर) में 08.12.2023 में दिया गया गया आदेश, जो केस क्राइम संख्या 694/2016 से उत्पन्न हुआ था, जिसमें धारा 452, 376, 506 आईपीसी, पुलिस स्टेशन औरैया, जिला औरैया के तहत आरोप से आरोपी को बरी कर दिया गया था, को रद्द किया जाता है. सजा के मुद्दे पर, अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता ने प्रार्थना की है कि उसे न्यूनतम सजा दी जाए क्योंकि अभियुक्त पहले ही मुकदमे के दौरान लगभग 7 वर्षों तक जेल में रह चुका है. कोर्ट ने अभियुक्त को धारा 376 आईपीसी के तहत किए गए अपराध के लिए 7 वर्ष की सजा, न्यूनतम साधारण कारावास की सजा और 45,000/- रुपये का जुर्माना लगाया. ऐसा न करने पर उसे 6 महीने का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना पड़ेगा. धारा 452 आईपीसी के तहत 2 वर्ष का साधारण कारावास और 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. ऐसा न करने पर 3 महीने का साधारण कारावास और धारा 506 आईपीसी के तहत 2 वर्ष का साधारण कारावास सुनाया गया. सभी सजाएं एक साथ चलेंगी. कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की राशि पीड़िता को प्रदान की जायेगी.
पीड़िता का बयान दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त
बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अभियुक्त और शिकायतकर्ता के बीच पहले से दुश्मनी थी. FIR अत्यधिक देरी से दर्ज की गई और पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट बलात्कार के अपराध/घटना का समर्थन नहीं करती थी. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता का बयान दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है, क्योंकि उसका बयान एक घायल गवाह के रूप में उच्च स्तर पर है. जब तक उसके बयान में कोई उचित संदेह नहीं उभरता, तब तक ट्रायल कोर्ट अपीलकर्ता के अपराध के अलावा किसी अन्य निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता था.
पीड़िता की गवाही अटल रही
आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि घटना का वर्णन FIR दर्ज होने के चरण से लेकर CrPC की धारा 161 के तहत बयान और CrPC की धारा 164 के तहत बयानों और यहां तक कि मुकदमे के चरण तक एक जैसा रहा. कहा कि मुकदमे के दौरान पीड़िता से कई तिथियों पर गहन क्रॉस एक्जामिनेशन की गई, जहां उसकी गवाही अटल रही और उसके बयानों में मौजूद छोटी-मोटी विसंगतियां ऐसी प्रकृति की नहीं थीं, जिन्हें नजरअंदाज न किया जा सके. पक्षकारों के बीच मौजूदा विवाद के बारे में ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष के बारे में कोर्ट ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष की कहानी को बदनाम करने का एकमात्र कारण नहीं हो सकता, जो अन्यथा विधिवत साबित हो चुका है. “झगड़े की प्रकृति न तो निर्दिष्ट की गई और न ही ऐसा दिखाया गया, जिससे पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों को अपीलकर्ता के खिलाफ झूठा आरोप लगाने के लिए उकसाया जा सके. अभियोजन पक्ष की कहानी के समर्थन में पीड़िता द्वारा पेश किए गए प्रत्यक्ष साक्ष्य और अन्य सामग्री दोनों के आधार पर साक्ष्य मौजूद हैं.”