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Shocking: फैमिली कोर्ट से फैसला पाना जंग लड़ने जैसा

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं कर रही प्रदेश की फैमिली कोर्ट, चीफ जस्टिस से संज्ञान लेने का अनुरोध

फैमिली कोर्ट
Justice Vinod-Diwakar

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश की फैमिली कोर्ट द्वारा धारा 125दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत गुजारा भत्ता आदेश न देकर केस लटकाये रखने पर नाराजगी जताई है और कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने रजनीश बनाम नेहा केस में साफ कहा है कि पति-पत्नी दोनों की संपत्ति व दायित्व का हलफनामा लेकर गुजारा भत्ता तय किया जाय, जिसका फैमिली कोर्ट द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है. यह आदेश जस्टिस विनोद दिवाकर की बेंच ने निर्मल कुमार फूकन की याचिका पर दिया है.

संक्षिप्त विचार प्रक्रिया में क्यों लग रही 70—80 बार डेट
कोर्ट ने कहा धारा 125की कार्यवाही संक्षिप्त विचारण प्रक्रिया है, जिसकी अर्जी की 70 से 80 बार सुनवाई की तिथि लग रही है. आगरा, प्रयागराज व महाराजगंज प्रधान न्यायाधीश फैमिली कोर्ट में 1500 से 2000 मुकद्दमे विचाराधीन हैं. अपर परिवार न्यायाधीश के समक्ष 500 से 600 केस लंबित हैं. जिनमें गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जाना है. कोर्ट ने महानिबंधक को प्रकरण मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उचित निर्देश के लिए रखने का आदेश दिया है. गेल इंडिया लिमिटेड में वरिष्ठ स्थिति में रहने के बावजूद याची पति ने पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं दिया. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याची से गुजारे भत्ते की वसूली करने का निर्देश दिया है.

पुनरीक्षण याचिका में दी गयी थी चुनौती
फैमिली कोर्ट औरैया के न्यायाधीश ने याची को आदेश दिया था जिसे पुनरीक्षण याचिका में चुनौती दी गई थी. याचिका की सुनवाई के दौरान पता चला कि फैमिली कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रही. कोर्ट ने कहा समझ से परे है कि प्रशिक्षित जज संवैधानिक कोर्ट के बाध्यकारी निर्देश का पालन क्यों नहीं कर रही है. कोर्ट ने सभी फैमिली कोर्ट से अनुपालन रिपोर्ट मांगी. 23 मई 24 को 74 में से 48 फैमिली कोर्ट ने रिपोर्ट भेजी. कोर्ट ने असंतोष जताते हुए अदालतों को गाइडलाइंस का पालन करने का निर्देश दिया. सभी प्रधान न्यायाधीशों ने रिपोर्ट पेश की. पता चला आदेश का पालन नहीं किया जा रहा.

न्यायिक निर्देश सिर्फ सलाह नहीं होते
54 ने अनुपालन हलफनामा दाखिल किया शेष ने केवल रिपोर्ट पेश की. कोर्ट ने धारा 125की अर्जी पर पति-पत्नी द्वारा अपनी संपत्ति व दायित्व का हलफनामा देना जरूरी है. जिसके आधार पर गुजारा भत्ता निर्धारित किया जायेगा. जिसका पालन न होने से परित्यक्त पत्नियों गरिमामय जीवन के अधिकार का उल्लघंन हो रहा है. कोर्ट ने कहा न्यायिक निर्देश सलाह नहीं होते,उनका पालन किया जाना बाध्यकारी होता है. केस का रूटीन स्थगन न केवल प्रक्रियात्मक कुप्रबंधन है अपितु न्याय से इंकार करना है. कानून स्पष्ट है कि त्वरित न्याय किया जाय. यह समस्या वैधानिक ही नहीं नैतिक भी है.

फैमिली कोर्ट में सुविधाओं की कमी
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट में सुविधाओं की कमी की भी बात की. कहा, सरकार का दायित्व है कि वह जरूरी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराये. लापरवाही करोड़ों लोगों को न्याय के अधिकार को प्रभावित करने वाली है. अर्थपूर्ण न्याय समय बद्ध तरीके से ही दिया जाना चाहिए. इसमें सुधार की जरूरत है. कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश से इन मुद्दों को संज्ञान में लेने का अनुरोध किया है.

संविधान की शपथ लेने पर न्यायिक जवाबदेही होती है. संवैधानिक अदालत के आदेश का पालन न करना प्रशासनिक चूक ही नहीं न्यायिक परित्याग है. पीढ़ी हमें कितने केस सूचीबद्ध हैं उससे जज करेगी.
-इलाहाबाद हाईकोर्ट

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