किस नियम के तहत compassionate recruitment नियमित नहीं किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा के आधार पर की गई नियुक्ति (Recruitment) को नियमित करने में मनमानी और सैलरी के रूप में स्टाइपेंड का भुगतान किये जाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज करायी है और बीएसए एटा से जवाब मांगा है कि किस नियम के तहत वह ऐसा कर रहे हैं. याचिकाकर्ता को नियमित वेतन के स्थान पर सिर्फ स्टाइपेंड का भुगतान क्यों किया जा रहा है? याची की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति (Recruitment) को नियमित करने में क्या कानूनी अड़चन आ रही है.
हाईकोर्ट ने बीएसए को 15 अक्तूबर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के समक्ष स्पष्टीकरण के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया है. साथ ही रजिस्ट्रार अनुपालन व प्रतिवादी वकील को इस आदेश को तत्काल बीएसए को प्रेषित करने का निर्देश दिया है.
यह आदेश जस्टिस मंजू रानी चौहान की सिंगल बेंच ने दिया है. हाईकोर्ट में याचिका आशीष कुमार सिंह ने चतुर्थ श्रेणी पद पर नियुक्ति (Recruitment) को निमित करने और 15 सितंबर 2007 को प्रारंभिक नियुक्ति (Recruitment) की तारीख से सभी परिणामी लाभ दिये जाने की मांग में दाखिल की है.
एक नियुक्त (Recruitment) को पूरा लाभ, दूसरे को किया निराश
याची का पक्ष रखते हुए उसके अधिवक्ता ने दलील दी कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याची के समान मामले में दिनेश कुमार नाम के एक व्यक्ति की सेवाओं को प्रारंभिक नियुक्ति की तारीख से नियमित कर दिया है. उसे नियुक्ति (Recruitment) नियमित किये जाने पर सभी परिणामी लाभ भी प्रदान किये गये हैं.
याची के साथ ऐसा नहीं है. उसे उसके वैध हक से वंचित किया जा रहा है. याची को करीब 18 साल की सेवा पूरी कर चुका है, इसके बाद भी उसे सैलरी के रुप में कुल 2550 रुपये का भुगतान किया जा रहा है.
अनुकंपा के आधार पर कई आश्रितों की निश्चित मानदेय पर नियुक्तियां की गई हैं. ऐसा किया जाना उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक की मृत्यु के उपरांत उसके आश्रितों की भर्ती नियमावली-1974 के प्रावधानों की अवहेलना है.
-इलाहाबाद हाईकोर्ट
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अवमानना आदेश के खिलाफ स्पेशल अपील पोषणीय नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट कह कि केवल अवमानना कार्यवाही शुरू न करने, उसे खत्म करने या आरोपी को बरी करने जैसे आदेशों के खिलाफ विशेष अपील पोषणीय नहीं है. स्पेशल अपील तभी पोषणीय होगी जब अवमानना में दोषी ठहराकर किसी को सजा दी गई हो या सुनवाई के दौरान सिंगल बेंच मूल विवाद पर टिप्पणी कर दे. इस टिप्पणी के साथ चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की बेंच ने फिरोजबाद निवासी आलोक यादव की ओर से दाखिल विशेष अपील को खारिज कर दिया है.
मामले में एकल पीठ ने अवमानना याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि इसमें किसी तरह की जानबूझकर अवहेलना नहीं पायी गयी. इस आदेश को चुनौती देते हुए विशेष अपील दायर की गयी थी. सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता ने तस्नीम फातिमा बनाम अमित मोहन मिश्रा केस का हवाला देकर अपील को पोषणीय बताने की कोशिश की लेकिन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के मिदनापुर पीपुल्स कोआपरेटिव बैंक बनाम चुन्नीलाल नंदा फैसले का जिक्र कर कहा कि ऐसे आदेशों के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि अवमानना की सुनवाई के दौरान एकल पीठ अपने क्षेत्राधिकार से आगे बढ़कर मूल विवाद पर फैसला देती है तो उस हिस्से को अपील में चुनौती दी जा सकती है.
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