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‘कुरान ने उचित कारण से बहुविवाह की अनुमति दी है लेकिन पुरुष इसका दुरुपयोग करते हैं’

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा मुस्लिम पुरुष दूसरी शादी तभी करे जब सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार कर सके

बहुविवाह की अनुमति दी है लेकिन पुरुष इसका दुरुपयोग करते हैं

इस्लाम में मुस्लिम पुरुष को बहुविवाह करने का तब तक कोई अधिकार नहीं है, जब तक कि वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार निभाने की क्षमता न रखता हो. इस्लाम में कुरान ने उचित कारण से बहुविवाह की अनुमति दी है लेकिन पुरुष स्वार्थी उद्देश्यों के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं. यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने मुरादाबाद फुरकान और दो अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए की.

चार्जशीट व समन आदेश रद करने की मांग
हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले फुरकान, खुशनुमा और अख्तर अली ने अपने खिलाफ मुरादाबाद की एसीजेएम कोर्ट में दाखिल चार्जशीट, संज्ञान एवं समन आदेश को रद्द करने की मांग की थी. इनके खिलाफ मुरादाबाद के मैनाठेर थाने में 2020 में आईपीसी की धारा 376, 495, 120-बी, 504 और 506 में एफआईआर दर्ज हुई थी. पुलिस विवेचना के बाद मामले में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है. कोर्ट इस चार्जशीट को संज्ञान ले चुकी है. इस पर तीनों को समन जारी हुआ है.

शादी के दौरान बलात्कार किया
एफआईआर में विपक्षी संख्या दो द्वारा आरोप लगाया गया था कि आवेदक फुरकान ने बिना बताए कि वह पहले से शादीशुदा है, उससे शादी कर ली और उसने इस शादी के दौरान उसके साथ बलात्कार किया. दूसरी ओर आवेदक फुरकान के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि एफआईआर कराने वाली महिला ने खुद ही स्वीकार किया है कि उसने उसके साथ संबंध बनाने के बाद उससे शादी की है. कोर्ट में कहा गया कि आईपीसी की धारा 494 के तहत उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि शरीयत के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार तक शादी करने की अनुमति है. कोर्ट में यह भी कहा गया कि विवाह और तलाक से संबंधित सभी मुद्दों को शरीयत अधिनियम, 1937 के अनुसार तय किया जाना चाहिए जो पति को जीवनसाथी के जीवनकाल में भी विवाह करने की अनुमति देता है.

पहली शादी शरियत कानून के अनुसार की गई
आवेदक फुरकान के वकील की तरफ से हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के विभिन्न मामलों का भी हवाला दिया गया. आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि आईपीसी धारा 494 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए दूसरी शादी को अमान्य होना चाहिए लेकिन अगर पहली शादी शरियत कानून के अनुसार की गई है तो दूसरी शादी अमान्य नहीं है. राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट में इस दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि मुस्लिम व्यक्ति द्वारा किया गया दूसरा विवाह हमेशा वैध विवाह नहीं होगा. यदि पहला विवाह मुस्लिम कानून के अनुसार नहीं किया गया था बल्कि विशेष अधिनियम या हिंदू कानून के अनुसार किया गया था तो दूसरा विवाह अमान्य होगा और आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध लागू होगा.

बहुविवाह की अनुमति दिए जाने के पीछे एक ऐतिहासिक कारण
कोर्ट ने कहा कि कुरान उचित कारण से बहुविवाह की अनुमति देता है और यह सशर्त बहुविवाह है. कुरान द्वारा बहुविवाह की अनुमति दिए जाने के पीछे एक ऐतिहासिक कारण है. हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लाम कुछ परिस्थितियों में और कुछ शर्तों के साथ एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है लेकिन इस अनुमति का मुस्लिम कानून के विरुद्ध भी ‘व्यापक रूप से दुरुपयोग’ किया जाता है. कोर्ट ने अपने 18 पन्नों के फैसले में कहा कि वर्तमान विवाद पर देखते हुए कि विपक्षी संख्या दो के कथन के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि उसने स्वीकार किया है कि आवेदक संख्या एक यानी फुरकान ने उसके साथ दूसरी शादी की है और दोनों ही मुस्लिम है इसलिए दूसरी शादी वैध है.

बलात्कार का अपराध नहीं बनता
आवेदकों के खिलाफ वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 376 के साथ 495/120-बी के तहत अपराध नहीं बनता है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है. कोर्ट ने विपक्षी संख्या दो को नोटिस जारी करते हुए इस मामले को 26 मई 2025 से शुरू होने वाले हफ्ते में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि अगले आदेश तक मामले में आवेदकों के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई न की जाय.

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