कमिश्नर का आदेश अंतिम हो जाने के बाद Development Authority मानचित्र की स्वीकृति को अस्वीकार नहीं कर सकता

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपील में आयुक्त का आदेश अंतिम हो जाने के बाद, Development Authority अनुवर्ती मास्टर प्लान के आधार पर मानचित्र की स्वीकृति को अस्वीकार नहीं कर सकता, जो आयुक्त के आदेश के विपरीत हो सकता है. गाजियाबाद Development Authority के खिलाफ एक डेवलपर की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस प्रकाश पाडिया ने यह व्यवस्था दी है.
याचिका में दिये गये तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ता ने गाजियाबाद जिले में समूह आवास विकसित करने के लिए एक मानचित्र प्रस्तुत किया था. इस पर 28 नवंबर 2006 को टेक्निकल कमेटी (Development Authority) द्वारा मैप को मंजूरी दे दी गई. इसमें याचिकाकर्ता के लिए भी कुछ शर्तें तय की गयी थीं, इसे पूरा करना आवश्यक था.याचिकाकर्ता द्वारा भूमि उपयोग परिवर्तन शुल्क माफ करने के अनुरोध पर, विकास प्राधिकरण ने उसे माफ कर दिया. याचिकाकर्ता ने विभिन्न विभागों से सभी जरूरी एनओसी भी प्राप्त कर लिया गया.
Development Authority ने याचिकाकर्ता को सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के लिए 10.1.2009 को पत्र लिखा और चेतावनी दी कि ऐसा न करने पर मानचित्र अस्वीकार कर दिया जाएगा. याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए आधार बनाया कि सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बावजूद, मानचित्र जारी नहीं किया जा रहा है.
“अपील में आयुक्त द्वारा पारित आदेश के अनुपालन में, Development Authority यह विचार करने के लिए बाध्य था कि दिनांक 28.11.2006 के पत्र द्वारा अपेक्षित औपचारिकताएँ पूरी की गई हैं या नहीं और यदि आदेश में उल्लिखित औपचारिकताएँ पूरी हो जाती हैं, तो प्राधिकरण को मानचित्र जारी करना आवश्यक था, लेकिन Development Authority ने पूरी तरह से अवैध रूप से, मानचित्र की स्वीकृति, अर्थात मास्टर प्लान 2021 के तहत भूमि उपयोग को अस्वीकार करने के लिए एक नया मामला गढ़ा, जो अपील में आयुक्त द्वारा जारी निर्देशों के विपरीत है.”
जस्टिस प्रकाश पाडिया

याचिकाकर्ता का मानचित्र इस आधार पर जारी नहीं किया जा रहा था कि मास्टर प्लान-2021 में याचिकाकर्ता की भूमि आवासीय उपयोग के बजाय सामुदायिक सुविधा और सड़क के लिए चिह्नित की गई थी. गाजियाबाद Development Authority के उपाध्यक्ष और आवास एवं शहरी नियोजन के विशेष सचिव ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूँकि याचिकाकर्ता ने शर्तें पूरी नहीं की थीं, इसलिए मानचित्र की स्वीकृति 5.10.2012 को रद्द कर दी गई थी.
22.11.2019 के आदेश के तहत जीडीए के उपाध्यक्ष ने मास्टर प्लान-2021 के आधार पर याचिकाकर्ता के नक्शे को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता ने प्रमुख सचिव, आवास और शहरी विकास, नागरिक सचिवालय, विधान सभा मार्ग, लखनऊ के समक्ष यू.पी. शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 की धारा 41 (3) के अनुसार एक संशोधन को प्राथमिकता दी, जिसे खारिज कर दिया गया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
कोर्ट ने पाया कि मास्टर प्लान-2021 (3.2.2015 से अनुमोदित और कार्यान्वित) रद्द करने के आदेश (दिनांक 5.10.2012) पारित करने के समय अस्तित्व में नहीं था. यह देखा गया कि प्रतिवादी ने पहली बार यू.पी. की धारा 161 के तहत भूमि के आदान-प्रदान के संबंध में जवाबी हलफनामे में एक नया मामला स्थापित किया था. जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950. इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि जवाबी हलफनामे में यह स्वीकार किया गया था कि याचिकाकर्ता ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं और यह माना गया कि Development Authority याचिकाकर्ता को मानचित्र स्वीकृत करने के लिए बाध्य है.
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यह देखते हुए कि आयुक्त का आदेश अंतिम और पक्षकारों पर बाध्यकारी था, कोर्ट ने माना कि एकमात्र शर्त 2006 के पत्र के अनुसार औपचारिकताएं पूरी करना थी, मानचित्र की मंजूरी मास्टर प्लान-2021 और भूमि उपयोग में परिवर्तन के आधार पर खारिज नहीं की जा सकती थी जो रद्द करने के आदेश के बाद हुआ था.

“उपाध्यक्ष का 22.11.2019 का आदेश कानून के विपरीत है, क्योंकि उपाध्यक्ष ने उपरोक्त आदेश पारित करते समय मास्टर प्लान 2021 में भूमि उपयोग के आधार पर कार्यवाही की है, जबकि याचिकाकर्ता के मानचित्र की मंजूरी 5.10.2012 के आदेश को रद्द करने के बाद पुनर्जीवित हो गई है और चूंकि मंजूरी मास्टर प्लान 2021 के लागू होने से पहले की थी, इसलिए उपाध्यक्ष द्वारा 22.11.2019 का पारित आदेश रद्द किया जाता है.”
कोर्ट ने गाजियाबाद Development Authority के उपाध्यक्ष को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता के ग्रुप हाउसिंग का नक्शा जारी करें, जिसे पहले ही दिनांक 28.11.2006 के पत्र के माध्यम से स्वीकृत किया जा चुका है.
उत्तर प्रदेश नगरीय नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 की धारा 43(1) के अंतर्गत प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा पारित आदेश भी इस धारणा पर आधारित था कि अनुमति पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि मानचित्र महायोजना 2021 के अनुमोदन के पश्चात् स्वीकृति के लिए दाखिल किया गया था, जबकि याचिकाकर्ता का मानचित्र भूमि के तत्कालीन उपयोग के अनुसार दिनांक 28.11.2006 के पत्र द्वारा स्वीकृत किया गया था.
प्रतिवादियों का यह तर्क कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 161 के अंतर्गत कोई विनिमय नहीं किया गया, प्रतिवादी द्वारा प्रति-शपथपत्र के परिच्छेद 30 और 33 में स्वयं की स्वीकारोक्ति के साथ-साथ दिनांक 25.1.1996 के शासनादेश के भी विपरीत है. चूँकि 28.11.2006 के आदेश को निरस्तीकरण को अपास्त करने के पश्चात् पुनः लागू कर दिया गया था, इसलिए प्रतिवादी संख्या 1 का दिनांक 23.5.2023 का आदेश निरस्त किया जाता है.
Case : Pheasant Infrastructure Private Limited v. State Of U.P. And 3 Others
WRIT – C No. – 33964 of 2023
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