हत्या के 87 गवाह, 71 बयान से मुकरे, आरोपित बरी
मृतक के बेटे ने भी हत्यारों को पहचानने से किया इंकार, कर्नाटक का मामला

इस “अनसुलझे अपराध” हत्या में कुल 87 गवाह थे. इसमें से 71 अपने बयान से मुकर गए. इसके चलते जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 27 सितंबर, 2023 के आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें निचली अदालत के फैसले को निरस्त करके छह आरोपियों को दोषी ठहराया गया था. इस प्रकरण में इंट्रेस्टिंग फैक्ट यह भी था कि मृतक के बेटे का भी नाम गवाहों की सूची में था और उसने भी हत्यारों को पहचानने से इंकार कर दिया. इसके चलते सुप्रीम कोर्ट आरोपितों को बरी करने पर मजबूर हो गया.
क्या था हत्या का पूरा प्रकरण
28 अप्रैल 2011 को कर्नाटक में दो भाइयों के बीच विवाद हो गया था. इसके चलते रामकृष्ण नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी. हत्या के समय वह अपने बेटे के साथ टहलने निकला था. रामकृष्ण पहले एक भाई के लिए काम करते थे, लेकिन बाद में वह दूसरे भाई के लिए काम करने लगे. इसी के चलते उनके छह पुराने साथियों ने रामकृष्ण की हत्या की साजिश रची थी.
कोर्ट ने कहा, यह विचित्र मामला
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, गवाह अपने पूर्व के बयानों से मुकर जाते हैं. बरामदगी को पहचानने से इनकार करते हैं. जांच के दौरान बताई गई गंभीर परिस्थितियों से अनभिज्ञता जताते हैं और चश्मदीद गवाह अंधे हो जाते हैं. यह एक विचित्र मामला है, जिसमें कुल 87 गवाहों में से 71 मुकर गए. इस स्थिति के चलते अभियोजन पक्ष को पुलिस और आधिकारिक गवाहों की गवाही पर निर्भर रहना पड़ गया. कोर्ट ने यह कमेंट भी किया कि इस मामले का एक महत्वपूर्ण चश्मदीद गवाह मृतक का बेटा भी अपने पिता के हत्यारों की पहचान करने में विफल रहा. इसलिए यह हत्या मामला विचित्र रहा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने आरोपितों को दोषी ठहराने के लिए पुलिस और आधिकारिक गवाहों की गवाही पर भरोसा किया. साक्ष्यों और गवाहों की गवाही का विश्लेषण करने के बाद, कोर्ट का एकमात्र दृष्टिकोण यह था कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा. कोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त हिरासत में है और किसी अन्य मामले में इसकी आवश्यकता नहीं है, तो उसे रिहा कर दिया जाय.
49 पन्नों का फैसला लिखवाया
जस्टिस चंद्रन ने पीठ की ओर से लिखे 49 पन्नों के फैसले में कहा कि इस हत्या से जुड़े सबूतों के अभाव के परिप्रेक्ष्य में भारी मन से आरोपियों को बरी किया जाता है. पीठ ने कहा, हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए और निचली अदालत के फैसले को बहाल करते हैं. पीठ ने गवाहों के अदालत में मुकर जाने और अति उत्साही जांच पर दु:ख जताते हुए कहा कि जांच में आपराधिक कानून के बुनियादी सिद्धांतों की पूरी तरह अनदेखी की गयी, ऐसी परिस्थितियों में अभियोजन पक्ष का अकसर मजाक बन जाता है.