इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, पुलिस की वर्दी निर्दोष पर अत्याचार लाइसेंस नहीं
पुलिस कर्मियों के खिलाफ केस कार्यवाही रद करने से इंकार, याचिका खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर अत्याचार करने का लाइसेंस नहीं है. कहा यदि कोई लोक सेवक पद दायित्व के दायरे से परे हटकर गैरकानूनी कार्य करते हैं तो उन पर केस दर्ज कराने से पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी. आरोपी पुलिस अधिकारी हैं, इससे उसे कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी. कोर्ट ने पुलिस कर्मियों के खिलाफ दर्ज केस कार्यवाही को रद करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दिया. यह आदेश जस्टिस राजवीर सिंह ने अनिमेष कुमार और तीन अन्य पुलिस कर्मियों की याचिका पर दिया है.
डॉक्टर है शिकायतकर्ता
शिकायतकर्ता एक डॉक्टर है. फर्रुखाबाद कोतवाली में शिकायत की कि वह 28 जून 2022 को अपने स्टाफ कुलदीप अग्निहोत्री, अशोक कुमार, विजय अग्रवाल व सौम्या दुबे के साथ कार से कानपुर से लौट रहे थे. कुछ लोग कार से निकले और उनसे कुछ कहासुनी हो गई. इसके बाद रात दस बजे तीन गाड़ियों से आए लोगों ने उन्हें खुदागंज के पास रोक लिया. कार में सवार कांस्टेबल दुष्यंत, उपनिरीक्षक अनिमेष कुमार, कांस्टेबल कुलदीप यादव व कांस्टेबल सुधीर व अन्य ने उनके साथ मारपीट की. रुपये व सोने की चैन छीन लिए. कन्नौज ले जाकर उन्हें करीब डेढ़ घंटे तक बंधक बनाये रखा. जिसकी एफआईआर दर्ज की गई है.
सरकार से मंजूरी के बिना नहीं चला सकते मुकदमा
इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचियों का कहना था कि धारा 197 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सरकार से मंजूरी प्राप्त किए बिना उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि कथित घटना के समय आवेदक पुलिस अधिकारी होने के नाते गश्त ड्यूटी पर थे. लोक सेवक जब अपनी आधिकारिक क्षमता में कार्य कर रहे हैं तो उनपर मुकदमा दर्ज करने से पूर्व सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता है.
गवाहों के बयान व मेडिकल रिपोर्ट घटना का समर्थन करती हैं
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा घटना के समय, आवेदक कथित घटना स्थल पर गश्त ड्यूटी पर नहीं थे और दूसरी बात, हमले और डकैती के कथित कृत्य का आवेदकों के आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन के साथ कोई ‘उचित या तर्कसंगत संबंध’ नहीं था. गवाहों के बयान व मेडिकल रिपोर्ट घटना का समर्थन करती हैं.अपराध पुलिस की ड्यूटी में शामिल नहीं है.