नील क्रांति योजना में 15 लाख रुपये की वसूली रद्द
वसूली आदेश से पहले याची को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए था

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नील क्रांति योजना का लाभ प्राप्त करने वाले कन्नौज के संजीव कुमार से 15 लाख रुपये की वसूली कार्यवाही रद्द कर दी है. यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा एवं और जस्टिस हरवीर सिंह की बेंच ने कन्नौज के संजीव कुमार की याचिका पर अधिवक्ता गोपाल जी खरे और सरकारी वकील को सुनकर दिया है. कोर्ट ने कहा कि वसूली आदेश से पहले याची को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए था.
निश्चित रूप से याची को सब्सिडी के रूप में दी गई धनराशि का दुरुपयोग करने के लिए स्थापित करने से पहले एक कारण बताओ नोटिस दिया जाना चाहिए था. कोर्ट ने ऐसी परिस्थितियों में 18 नवम्बर 2024 के आदेश को रद्द करते हुए उसके बाद शुरू की गई वसूली कार्यवाही भी रद्द कर दी. साथ ही याची को सुनवाई का एक निश्चित अवसर देने के बाद कानून के अनुसार वसूली की कार्यवाही शुरू करने की छूट दी है.
याची के अधिवक्ता ने बताया कि योजना की सभी औपचारिकताओं का पालन करने के बाद याची ने 10 लाख रुपये का स्वयं निवेश कर मछली पालन के लिए तालाब खुदवाया. फिर विभागीय निरीक्षणों के बाद उसे 15 लाख रुपये की अनुदान राशि प्रदान की गई थी. निरीक्षण एवं सत्यापन के बाद अनुदान दिया गया था, फिर भी बाद में विभागीय अधिकारी स्तर पर हुई अनियमितताओं की आड़ में, याची से ही समस्त अनुदान की वसूली की कार्यवाही की गई.
यह कार्यवाही बिना किसी पूर्व सूचना या स्पष्टीकरण का अवसर दिए की गई, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल है. उन्होंने न्यायालय को यह भी बताया कि वसूली आदेश जारी करने से पूर्व याची को किसी भी स्तर पर सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, जो विधिक प्रक्रिया की एक अनिवार्य शर्त है.
याचिका में कहा गया कि याची को पहले नोटिस देकर तथ्यों की जांच का अवसर दिया जाना चाहिए था, न कि सीधे वसूली की कार्रवाई की जाती. अधिवक्ता गोपाल खरे ने कहा कि यह मामला केवल व्यक्तिगत हित का नहीं बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और नागरिकों के वैधानिक अधिकारों से जुड़ा है. ऐसे मामलों में न्यायालय की दखल से यह सुनिश्चित होता है कि योजना के लाभार्थियों को बिना कारण प्रताड़ित न किया जाए और कोई भी कार्यवाही विधिसम्मत की जाए.