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राजस्व परिषद के खिलाफ याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने याची पर लगा 5 हजार रुपये हर्जाना

अवमानना शक्तियों के प्रयोग से बचते हैं न्यायिक अधिकारी, इसलिए उन पर होती है अनर्गल टिप्पणी

राजस्व परिषद के खिलाफ याचिका खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जेजे मुनीर की बेंच ने बरेली में भूमि विवाद से जुड़े मामले में राजस्व परिषद के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है और याची पर पांच हजार रुपये का हर्जाना लगाते हुए कहा है कि यह हर्जाना राशि 15 दिनों के भीतर रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से हाई कोर्ट विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराई जाए. इसी केस की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ की जा रही आधारहीन टिप्पणियों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसा अदालतों द्वारा अवमानना शक्तियों के प्रयोग से परहेज करने के कारण हो रहा है.

बढ़ रही है वादकारियों की आक्रामकता
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि वादकारियों की आक्रामकता बढ़ रही है. हाईकोर्ट ने कहा केस की सुनवाई में देरी न्यायिक अधिकारी के दुराग्रही होने का आधार नहीं हो सकता. अनर्गल आरोप लगा केस दूसरे अधिकारी को स्थानांतरित करने के मामले में कोर्ट ने यह टिप्पणी की. बता दें कि याची जय सिंह ने राजस्व परिषद उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 210 के अंतर्गत, संशोधन संख्या 791/2021 (गणेशनुज दास बनाम गोपाल राम एवं अन्य) को अपर आयुक्त (न्यायिक) तृतीय, बरेली की अदालत से किसी अन्य सक्षम न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी. यह स्थानांतरण आवेदन राजस्व बोर्ड (राजस्व परिषद) द्वारा अस्वीकार कर दिया गया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.

राजस्व बोर्ड के आदेश में कारण नहीं था
याची के अधिवक्ता उमेश चंद्र तिवारी का कहना था कि राजस्व परिषद का आदेश संक्षिप्त और सकारण नहीं था. पीठासीन अधिकारी जानबूझकर प्रार्थना पत्र पर निर्णय नहीं ले रहे थे और बार-बार सुनवाई टाल रहे थे. इसलिए उनके पास से केस अन्यत्र भेजने की मांग की थी. यह भी आरोप लगाया कि प्रतिवादी संख्या 4 गणेशनुज दास का राजनीतिक संपर्क है और वह पीठासीन अधिकारी पर प्रभाव डाल रहे हैं. न्यायमूर्ति ने यह तो माना कि राजस्व बोर्ड का आदेश कारण रहित था, लेकिन स्पष्ट किया कि इसे निरस्त करने से भी परिणाम में परिवर्तन नहीं होता,क्योंकि याचिका में लगाए गए आरोप निराधार हैं.

आरोप का कोई ठोस साक्ष्य नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, “स्थानांतरण आवेदन में किए गए आरोप का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है और न ही ऐसे परिस्थितिजन्य तथ्य जो यह दिखाए कि आदेश पक्षपाती है. राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्तियों का नाम तक नहीं बताया गया, न ही उनके साथ किसी प्रकार का संबंध साबित करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया गया. न्यायमू्र्ति ने कहा “दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान समय में वादकारी आक्रामक हो चले हैं क्योंकि किसी न किसी कारणवश न्यायालय आपराधिक अवमानना की शक्तियों का प्रयोग करने से बचते हैं. इसलिए यह प्रवृत्ति बढ़ रही है.

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