इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर की महत्वपूर्ण टिप्पणी
पोस्ट को लाइक करने का मतलब भड़काने वाले कंटेंट का प्रकाशन या प्रसारण नहीं माना जा सकता

प्रयागराज: सोशल मीडिया का दौर है. इंटरनेट मीडिया पर तमाम सोशल मीडिया पोस्ट \शेयर की जा रही है. इस स्थिति में किसी सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक कर देने का मतलब यह नहीं निकाला जा सकता है कि उस व्यक्ति ने भड़काने वाले कंटेंट का प्रकाशन या प्रसारण किया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने आगरा के इमरान की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है. कोर्ट ने याचिका को मंजूर करते हुए आरोपित के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है.
आगरा जिले के मंटोला थाने में आईटी एक्ट में दर्ज है केस
प्रकरण आगरा जिले के मंटोला थाने का है. याचिकाकर्ता इमरान के खिलाफ 2019 में आगरा के मंटोला थाने में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67 और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 में मामला दर्ज हुआ था. इमरान पर आरोप है कि उसने सोशल मीडिया पोस्ट पर भड़काऊ संदेश पोस्ट किया! उसकी पोस्ट को देखने के बाद मौके पर भीड़ जुट गयी. इसकी पहले से कोई अनुमति नहीं ली गयी थी. इससे शांति भंग का अंदेशा पैदा हुआ! पुलिस की तरफ से आरोप पत्र सीजेएम कोर्ट में पेश किया जा चका है और कोर्ट भी उसे संज्ञान ले चुकी है. आरोपित इमरान ने अर्जी दाखिल कर मामले के आरोप पत्र, संज्ञान आदेश, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आगरा के समक्ष लंबित आपराधिक वाद को रद्द करने की मांग की थी.
पोस्ट लिखना या प्रसारित करना ही माना जाएगा अपराध
जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी पोस्ट को सिर्फ लाइक कर देने को अपराध की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक पोस्ट को लिखता, शेयर या वायरल नहीं करता, आपराधिक मंशा नहीं मानी जा सकती है. ऐसे मामलों में सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट 2008 की धारा 67 लागू नहीं की जा सकती है.