Sexually assaulting के आरोपी वकील को जमानत
HC ने कहा, आरोप सही हैं तो यह मानसिक विकृति

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेटी और भतीजी के Sexually assaulting के आरोपी वरिष्ठ अधिवक्ता को जमानत दे दी है। कोर्ट उत्तर प्रदेश के झांसी में रहने वाले आरोपी द्वारा दायर आपराधिक विविध जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें जमानत की मांग की गई थी। जस्टिस कृष्ण पहल की बेंच एकल पीठ ने कहा, “यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो यह अत्यधिक मानसिक विकृति है और इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। हालांकि, वर्तमान मामले में आवेदक को ‘पीडोफाइल’ के रूप में ब्रांडिंग करना जल्दबाजी होगी और कानूनी रूप से अस्वीकार्य है, खासकर तब जब एफआईआर में इस तरह के चरित्र चित्रण का समर्थन करने वाले किसी भी पूर्व आचरण या पूर्ववर्ती आरोपों की अनुपस्थिति हो।”
कई बार शारीरिक संबंध (Sexually assaulting) बनाने की कोशिश की
पीठ ने दोहराया कि प्रत्येक वयस्क व्यक्ति के पास अपने स्वयं के व्यक्तित्व पर स्वायत्तता का अलंघनीय अधिकार है। उस स्वायत्तता में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को वैध कारण के बिना उचित नहीं ठहराया जा सकता है। अधिवक्ता अमित डागा और विकास तिवारी ने अभियुक्त का पक्ष कोर्ट में रखा। एजीए अरुण कुमार मिश्रा, अधिवक्ता अच्युत और रंजीत सिंह ने स्टेट की तरफ से पैरवी की। केस की पृष्ठभूमि पिछले साल दिसंबर में दो पीड़ितों द्वारा एक सामान्य प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आवेदक-अभियुक्त की भतीजी और बेटी उसके साथ रहती थीं। आरोपी झांसी में एक वरिष्ठ अधिवक्ता था। यह आरोप लगाया गया था कि उसने कई बार पीड़ितों के साथ शारीरिक संबंध (Sexually assaulting) बनाने की कोशिश की। लगभग एक साल पहले जब वे घर पर सो रहे थे, तो उसने कथित तौर पर रात के 2 बजे अपनी भतीजी से कहा कि अगर वह उसके साथ संबंध नहीं बनाएगी, तो उसे घर से बाहर निकाल दिया जाएगा। उनकी भतीजी एक अनाथ थी और उसकी धमकियों से डर गई थी।
Sexually assaulting से तंग भतीजी घर से भाग गई
आरोप लगाया गया कि एक बार जब आरोपी की बेटी रात में सो रही थी, तो उसने उसकी छाती दबाई, अपनी उंगली उसकी सलवार के अंदर डाल दी और अपनी उंगली से संवेदनशील अंगों को डालकर उसके साथ छेड़छाड़ की। जब वह चिल्लाई तो उसने कथित तौर पर माफी मांगी और कहा कि वह इसे किसी को न बताए, अन्यथा वह आत्महत्या कर लेगा। इस तरह की अश्लील हरकतें (Sexually assaulting) हर समय दोहराई जाती थीं और भतीजी जो कि बालिग थी, घर से भाग गई। यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया और कई व्यक्तियों के खिलाफ लगभग 10 मामले दर्ज कराए और आरोपियों से लगभग 70 लाख रुपये ऐंठ लिए। वह इस तरह से पीड़ितों का इस्तेमाल करके पैसा कमाता रहा। पीड़िता (भतीजी) ने हाईकोर्ट के समक्ष एक आवेदन दिया लेकिन पुलिस ने आरोपी के डर के कारण कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की। इसलिए, दोनों पीड़ितों के संयुक्त आवेदन पर प्राथमिकी दर्ज की गई।
पारंपरिक भारतीय मूल्य विकसित मानदंडों से टकराते हैं
उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर हाईकोर्ट ने कहा, “यह न्यायालय खुद को एक ऐसे मोड़ पर पाता है जहां पारंपरिक भारतीय मूल्य तेजी से आधुनिकीकरण कर रहे समाज के विकसित मानदंडों से टकराते हैं- जो अक्सर पश्चिमी प्रतिमानों से प्रभावित होते हैं। इस संदर्भ में, आवेदक, जो कथित पीड़ितों पर संरक्षकता की स्थिति में खड़ा था, परिवार के रीति-रिवाजों को बनाए रखने और पर्यवेक्षी प्राधिकरण का प्रयोग करने की कथित अनिवार्यता के तहत काम करता प्रतीत होता है, यद्यपि अब इस तरीके से विवादित है कि उसने वैध सीमाओं को पार कर लिया है।” न्यायालय ने कहा कि यह रिकॉर्ड का मामला है, जिसे पक्षों द्वारा पारस्परिक रूप से स्वीकार किया गया है, कि आवेदक और दो पीड़ितों के बीच पारस्परिक गतिशीलता समय के साथ कम हो गई। कोर्ट ने कहा कि दोनों पीड़ितों ने बार-बार अपने बयान बदले हैं। एक पेंडुलम के समान असंगति प्रदर्शित करते हुए और आरोपियों द्वारा दोनों पीड़ितों के संबंध में एफआईआर उस समय दर्ज की गई थी जब वे नाबालिग थीं।