धर्म परिवर्तन का मामला है तो पुलिस सीधे कर सकती है FIR
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, पीड़ित व्यक्ति में व्यक्ति, रिश्तेदार व पुलिस भी शामिल

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि थाना प्रभारी को अवैध मतांतरण मामले में FIR दर्ज करने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा धर्म परिवर्तन प्रतिषेध कानून की धारा 4 के अंतर्गत “कोई पीड़ित व्यक्ति” का व्यापक अर्थ है, यह केवल पीड़ित व्यक्ति तक सीमित नहीं है. यह पीड़ित व्यक्ति, रिश्तेदार के अलावा राज्य की कानून व्यवस्था को कायम रखने जिम्मेदारी रखने वाली पुलिस को भी शामिल करता है. याचिका में एसएचओ को पीड़ित व्यक्ति न मानते हुए उसके द्वारा दर्ज FIR व केस कार्यवाही को शून्य करार देकर रद करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है और कहा कि एसएचओ भी पीड़ित व्यक्ति में शामिल है. यह आदेश जस्टिस विनोद दिवाकर की बेंच एकलपीठ ने चर्च के पादरी दुर्गा यादव, राकेश, डेविड व दो अन्य की याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है.
जौनपुर जिले के केराकत तहसील का मामला
जौनपुर केराकत तहसील के गांव विक्रमपुर चर्च में सामाजिक रूप से पिछड़े, दलित वंचित लोगों को इकट्ठा कर मंच से धन व इलाज का लालच देकर धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा था. थाना केराकत पुलिस टीम पहुंची तो मुख्य व्यक्ति भाग खड़ा हुआ. तीन पुरुष व एक महिला मौके से पकड़ी गई.FIR ने एफआईआर दर्ज की. चार्जशीट पर एसीजे एम जौनपुर ने संज्ञान लिया है. याची का तर्क था कि धारा 4 में केवल कोई पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत कर सकता है. शिकायत एसएचओ ने की है. इसलिए FIR शून्य है. केस कार्यवाही रद की जाय.
पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा एक्ट में नहीं
सरकार की तरफ से कहा गया कि तमाम पीड़ितों का बयान लिया गया है. भुल्लनडीह का पादरी दुर्गा यादव मुखिया हैं. अपराध स्वीकार किया है. पीड़ित व्यक्ति की स्पष्ट परिभाषा एक्ट में नहीं है. संविधान का अनुच्छेद 25 व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है जो धर्म को मानने, अभ्यास करने व प्रचार करने की शर्तों के साथ छूट देता है. जो लोक व्यवस्था, नैतिकता व स्वास्थ्य के अधीन है. राज्य का दायित्व लोक व्यवस्था, नैतिकता व स्वास्थ्य का संरक्षण करना है.
जबरन धर्म परिवर्तन राज्य के विरुद्ध अपराध
किसी को जबरन, गुमराह कर व अनुचित प्रभाव में लेकर धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है. यह राज्य के विरूद्ध अपराध है. सरकार ऐसे अपराध की मूक दर्शक नही रह सकती. पुलिस पर कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी होने के नाते वह भी पीड़ित व्यक्ति हैं, उसे FIR दर्ज कराने का अधिकार है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याची को ट्रायल कोर्ट में पक्ष रखने को कहा है. यह भी कहा कि याची की गिरफ्तारी नहीं हुई है इसलिए न्यायिक अभिरक्षा में न लिया जाए. यदि वह सहयोग न करें तो कोर्ट कानूनी कार्रवाई करे.
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