नाम लिखा पद नाम नहीं बताया, हाईकोर्ट ने LIC चेयरमैन से मांगा हलफनामा
निगम के अधिकारी व अधिवक्ता कैसे कर रहे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के चेयरमैन से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है और पूछा कि उनके अधिकारी व अधिवक्ता का ऐसा रवैया क्यों है. निगम के अधिकारी राम बाबू सिंह ने हलफनामा दाखिल किया जिसमें किस पद पर कार्यरत हैं का उल्लेख नहीं किया, जो कि बाध्यकारी है. जब पूछा गया कि पद नाम क्यों नहीं लिखा तो निगम के अधिवक्ता ने कहा कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर के साथ पदनाम की मुहर लगी है जो हलफनामे का हिस्सा है. उसे स्वीकार किया जाय.
बीमा की राशि को लेकर है विवाद
विपक्षी ने पांच बीमा लिया. जिसकी किश्तों का भुगतान तीन साल किया गया. उसके बाद नहीं किया गया. बाद में विपक्षी ने जमा राशि वापस मांगी तो निगम ने इंकार कर दिया तो लोक अदालत की शरण ली और हाईकोर्ट में कैजुअल तरीके से हलफनामा दायर किया गया. इतना ही नहीं पूरक हलफनामे में एक निर्णय संलग्न करने का उल्लेख है किन्तु ढूंढने पर भी वह निर्णय हलफनामे में कहीं नहीं मिला. कोर्ट ने कहा, लगता है बिना देखे हलफनामा दाखिल कर दिया गया है जो निंदनीय है. कोर्ट ने चेयरमैन को 21 मई अगली सुनवाई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.
लोक अदालत के फैसले को चुनौती
यह आदेश जस्टिस प्रकाश पाडिया ने भारतीय जीवन बीमा निगम की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. याचिका में स्थाई लोक अदालत के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई है. जिसने विपक्षी मेघश्याम शर्मा के पक्ष में 74508 रूपये सात फीसदी ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया है और वाद खर्च के रूप में पांच हजार रुपए देने का निर्देश दिया है.
12 शनिवार को हाईकोर्ट में क्या बैठेगी अदालतें
क्या मुकद्दमों के बोझ को हल्का करने के लिए साल में 12 शनिवार को अदालतें बैठेगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के महानिबंधक ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट एसोसिएशन व अवध बार एसोसिएशन से पत्र लिखकर राय मांगी है पूछा है कि मुकद्दमों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए क्यों न माह के एक शनिवार व साल के 12 शनिवार को अदालतें काम करें. जिसमें पांच साल से अधिक पुराने मुकद्दमों की सुनवाई की जाय. महानिबंधक राजीव भारती द्वारा जारी पत्र में इसे नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम की नीति व ऐक्शन प्लान का हिस्सा बताया गया है.बार संगठनों की राय मिलने के बाद प्रकरण फुल कोर्ट में विचारार्थ रखा जायेगा.