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‘न्यायिक आदेशों की अवहेलना में DM-SDM गर्व महसूस करते हैं’, 7 को जवाब दें

बागपत के DM, SDM और तहसीलदार पर HC कोर्ट की गंभीर टिप्पणी, 7 जुलाई को नोटिस का जवाब दें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बागपत जिले के DM-SDM और तहसीलदार को हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है. DM-SDM और तहसीलदार पर कोर्ट के अंतरिम स्थगन आदेश का उल्लंघन करते हुए एक महिला के घर को कथित रूप से ध्वस्त करने का आरोप है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य में अधिकारी विशेष रूप से सिविल व पुलिस अधिकारी न्यायिक निर्देशों का उल्लंघन करने से “उपलब्धि” प्राप्त करने जैसा अनुभव कर रहे हैं.

“ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के कार्यपालक अधिकारियों, विशेषकर पुलिस और नागरिक प्रशासन (DM-SDM) के अधिकारियों के बीच न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने में एक प्रकार का गौरव महसूस करने की संस्कृति विकसित हो गई है. ऐसा लगता है कि इससे उन्हें अपराध बोध होने के बजाय उपलब्धि का अहसास होता है.”
जस्टिस जे.जे. मुनीर

DM, SDM

कोर्ट ने बागपत के तीनों अधिकारियों DM-SDM सदर, तहसीलदार सदर, राजस्व निरीक्षक को 7 जुलाई, 2025 तक अपने व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में यह स्पष्ट किया जाए कि अदालत के आदेश का उल्लंघन करते हुए ध्वस्त की गई इमारत को “सरकारी लागत पर उनके द्वारा पुनर्निर्माण और उसके मूल स्वरूप में बहाल करने का आदेश क्यों नहीं दिया जाय”.

मामले के अनुसार याचिकाकर्ता, श्रीमती छमा ने 15 मई, 2025 को हाईकोर्ट से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता के निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा और 5 जुलाई, 2024 को पारित ध्वस्तीकरण आदेश के अनुसरण में किसी भी वसूली पर भी रोक लगा दी गई थी.

आरोप लगाया गया है कि 16 मई, 2025 को, कथित तौर पर DM के निर्देश पर SDM और तहसीलदार के नेतृत्व में और पुलिस की सहायता से राजस्व अधिकारियों की एक टीम ने एक दिन पहले पारित न्यायालय के आदेश की एक भौतिक प्रति दिखाए जाने के बावजूद उसके घर को ध्वस्त कर दिया.

इसके बाद याची ने संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत हाईकोर्ट में आवेदन प्रस्तुत किया, ताकि विपक्षी अधिकारियों (DM-SDM) को ‘दंडित’ किया जा सके. अवनीश त्रिपाठी, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, तहसील-सदर, जिला बागपत, अभिषेक कुमार, तहसीलदार, तहसील-सदर, जिला बागपत, दीपक शर्मा, राजस्व निरीक्षक, तहसील-सदर, जिला बागपत और मोहित तोमर, बागपत में तैनात लेखपाल, को हाईकोर्ट के आदेश की ‘जानबूझकर अवज्ञा’ करने के लिए उन्हें दंडित करने की मांग की गई है.

इस आवेदन में उन तस्वीरों को भी दाखिल किया गया है जिनके बारे में न्यायालय ने कहा कि इनसे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि अधिकारी “जब ध्वस्तीकरण चल रहा था, तब हाईकोर्ट का आदेश पढ़ रहे थे और फिर भी उन्होंने ऐसा काम किया.

न्यायालय ने यह भी कहा कि भले ही आदेश अपलोड करने में देरी हुई हो आदेश स्थायी अधिवक्ता की उपस्थिति में पारित किया गया और यदि याची यह दावा करता है कि स्थगन आदेश पारित किया गया है तो “यह प्राधिकारियों (DM-SDM) का कर्तव्य है कि वे गिराने जैसे कठोर कार्य से तब तक पीछे रहे, जब तक कि इस न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश पारित किए जाने के तथ्य की पुष्टि नहीं हो जाती”.

न्यायालय ने कहा कि  यह एक ऐसा मामला हो सकता है जहां प्रतिपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए, जिसके लिए राज्य को पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता होगी. इस प्रकार, संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने उनसे जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई 7 जुलाई को दोपहर 2 बजे तय की है.

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