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Maternity leave पर क्यों कर रहे कोर्ट की अवमानना

आदेश न मानने पर बीएसए सफाई सहित HC में तलब

Maternity leave पर क्यों कर रहे कोर्ट की अवमानना
Justice Saurabh Shyam Shamshery

Maternity leave बीएसए द्वारा 180 दिन का गैप न होने के आधार पर निरस्त कर दिये जाने इलाहाबा हाईकोर्ट अब गंभीर हो गया है. हाईकोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी फर्रुखाबाद को स्पष्टीकरण के साथ 28 मई, 2025 को दोपहर 12 बजे  हाजिर होने का निर्देश दिया है. साथ ही प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ, निदेशक बेसिक शिक्षा लखनऊ व सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड प्रयागराज को भी हाजिर रहने का आदेश दिया है. यह आदेश जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की बेंच ने किरन देवी की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है.

कोर्ट ने रद कर दिया था बीएसए का Maternity leave निरस्त करने का आदेश
याची ने Maternity leave की अर्जी दी थी. जिसे यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि पहले बच्चे के बाद दूसरे बच्चे के बीच अवकाश के लिए 180 दिन का अंतर नहीं है. हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद कर दिया और बीएसए को नया आदेश जारी करने का निर्देश दिया. इसके बाद बीएसए ने  मातृत्व अवकाश (Maternity leave) को “अनुमान्य नहीं” दो शब्दों के आदेश के साथ बिना किसी विशिष्ट कारण के अस्वीकार कर दिया. जिसे फिर चुनौती दी गई. कोर्ट ने अधिकारियों के अधिवक्ता के स्पष्टीकरण पर असंतोष व्यक्त किया, जिसमें कहा गया था कि विवादित आदेश जल्दबाजी में पारित किया गया प्रतीत होता है, जबकि मामला अभी भी सचिव, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड, प्रयागराज के पास लंबित है. जिस पर कोर्ट ने सभी अधिकारियों को तलब किया है.

तीसरे बच्चे के जन्म पर भी Maternity leave का प्रावधान
देशभर की कामकाजी महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों राहत भरा फैसला सुनाया था. कोर्ट ने साफ किया कि मातृत्व अवकाश (Maternity leave) केवल सामाजिक न्याय या सद्भावना का विषय नहीं, बल्कि महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है. अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक सरकारी शिक्षिका को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश (Maternity leave) देने से इनकार कर दिया गया था. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि Maternity leave का मकसद महिला कर्मचारियों को सामाजिक न्याय दिलाना है ताकि वे बच्चे को जन्म देने के बाद न केवल जीवित रह सकें, बल्कि अपनी ऊर्जा दोबारा प्राप्त कर सकें, शिशु का पालन-पोषण कर सकें और अपने कार्यकौशल को बनाए रख सकें.

कर दिया था Maternity leave से इंकार
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि, ‘महिलाएं अब कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें सम्मान व गरिमा के साथ कार्य करने का पूरा अधिकार है.’ बेंच ने यह भी कहा कि गर्भावस्था का महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ता है और इसमें केवल मातृत्व ही नहीं, बल्कि बचपन की भी खास देखभाल जरूरी है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति के आधार पर शिक्षिका को अवकाश देने से इनकार किया था, जिसमें दो से अधिक बच्चों के जन्म पर मैटरनिटी लीव की इजाजत नहीं दी जाती, ताकि जनसंख्या नियंत्रण में मदद मिल सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला महिला की दूसरी शादी से जुड़ा है और तीसरे बच्चे का जन्म उसी से हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘हर महिला को प्रजनन से जुड़ा निर्णय लेने का अधिकार है, जिसमें राज्य का अनुचित हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित करना या महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति की अनदेखी करना, उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाना है.’

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