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नाबालिग को कैदियों के साथ रखने पर हाईकोर्ट ने जताई चिंता

ट्रायल कोर्ट ने किशोर होने की याचिका पर फैसला नहीं किया

नाबालिग को कैदियों के साथ रखने पर हाईकोर्ट ने जताई चिंता

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ बेंच ने नाबालिग को सामान्य जेल में विचाराधीन आरोपियों और दोषियों के साथ रहने पर चिंता जताई है. यह स्थिति इसलिए सामने आयी क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने उसके नाबालिग होने का दावा करने वाले आवेदन पर फैसला नहीं किया. जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने केस पर सुनवाई के दौरान कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट अंततः यह निष्कर्ष निकालता है कि आवेदक कानून का उल्लंघन करने वाला नाबालिग है, तो उसे सामान्य जेल में विचाराधीन कैदियों और दोषियों के साथ एक साल से अधिक समय बिताने से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं की जा सकती.

अफसरों को नाबालिगों के केस में सावधानी बरतने का निर्देश
बेंच ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह सभी जिलों के जिला न्यायाधीशों के माध्यम से राज्य के सभी न्यायिक अधिकारियों को अपने आदेश की एक प्रति भेजें, “जिसका उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों को उन आपराधिक मामलों से निपटने में अधिक सावधानी बरतने के लिए संवेदनशील बनाना है, जहां आरोपी किशोर प्रतीत होता है या वह किशोर होने का दावा करता है”. कोर्ट आईपीसी की धारा 363, 366, 376(3) और पाक्सो एक्ट 2012 की धारा 5जे(2), 5-एल, 6 के तहत आरोपी आवेदक (नाबालिग) की तरफ से पेश जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

 नाबालिग कानूनी रूप से ‘बच्चे’ के रूप में व्यवहार का हकदार
कोर्ट ने पाया कि नाबालिग कानूनी रूप से किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत एक ‘बच्चे’ के रूप में व्यवहार करने का हकदार है. इसके बावजूद, उसे हिरासत में ले लिया गया और विचाराधीन आरोपियों और दोषियों के साथ एक नियमित जेल में रखा गया. कोर्ट ने इसे “एक बहुत ही परेशान करने वाला तथ्य” बताया. जस्टिस विद्यार्थी की बेंच ने 2015 के अधिनियम की धारा 9, 10, 11 और 12 का हवाला देते हुए कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे (नाबालिग) को सामान्य वयस्क आरोपी व्यक्ति नहीं माना जाएगा. उसके बेहतर भविष्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उसके साथ बहुत अधिक संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए. कोर्ट ने विशेष रूप से अधिनियम की धारा 9(2) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि न्यायालय की राय है कि अपराध की तिथि पर व्यक्ति नाबालिग था, तो न्यायालय व्यक्ति की आयु निर्धारित करने के लिए जांच करेगा.

वकीलों ने भी नाबालिग फैक्ट पर ध्यान नहीं दिया
कोर्ट ने इस फैक्ट पर आपत्ति जताई कि नाबालिग होने का दावा करने वाले उसके आवेदन पर ट्रायल कोर्ट ने निर्णय नहीं लिया. कोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले में, जब मामला हाईकोर्ट के पास आया था, तो आवेदक के विद्वान वकील के साथ-साथ विद्वान एजीए का यह कर्तव्य था कि वे इस तथ्य को इस कोर्ट को बताते कि आवेदक एक बच्चा (नाबालिग) है. कहा कि, “आज भी किसी विद्वान वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया. यदि यह न्यायालय पक्षकारों के विद्वान वकील से उचित सहायता के अभाव में इस बिंदु पर ध्यान नहीं देता, तो आवेदक (नाबालिग) को कानून के तहत उपलब्ध सुरक्षा से वंचित रखा जाता.” इसे देखते हुए पीठ ने विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो कोर्ट, प्रतापगढ़ को आवेदक की किशोर घोषित करने की याचिका पर किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन दिए बिना शीघ्रता से निर्णय लेने का निर्देश दिया.

Case – Arjun @ Golu vs. State Of U.P. Thru. Addl. Chief Secy. Home Govt. Of U.P. Lko. And 3 Others 2025

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