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अभियुक्तों की चोट छिपाने से अभियोजन की कहानी संदिग्ध

हत्या के 48 साल पुराने मामले में दो अभियुक्त हाईकोर्ट से बरी 

अभियुक्तों की चोट छिपाने से अभियोजन की कहानी संदिग्ध

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी  घटना में यदि आरोपित और शिकायतकर्ता दोनों को चोट आती हैं तथा अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त की चोट के बारे में नहीं बताया जाता है तो यह संदेह पैदा करता है कि क्या घटना वास्तविक है और उसे ईमानदारी से प्रस्तुत किया गया है. कोर्ट ने कहा ट्रायल कोर्ट ने गवाहों के बयान पर गंभीरता से विचार नहीं किया.

सरायअकिल में हुई थी घटना
इस टिप्पणी के साथ जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस नंद प्रभा शुक्ला की बेंच ने 48 साल पुराने हत्या मामले में दो दोषियों की उम्रकैद की सजा रद कर दी है. प्रकरण सरायअकिल थाने में दर्ज किया गया था. तब यह थाना इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का हिस्सा था. मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार छह अगस्त 1977 को गौरी ग्राम निवासी राजाराम ने एफआईआर दर्ज कराई और आरोप लगाया गया कि एक दिन पहले, उनके चचेरे भाई (प्राण) पर गांव के ही चार अन्य लोगों लाखन, देशराज, कलेश्वर और कल्लू ने लाठियों से तब हमला किया जब वह तालाब में नहाने के लिए जा रहा था.

भाई को बचाने पहुंचा तो हुई पिटायी
शिकायतकर्ता के अनुसार वह अपने भाई प्रभु और चंदन के उसे बचाने के लिए दौड़ा तो उनके साथ भी मारपीट की गई. गर्दन पर लाठी मारे जाने से प्रभु बेहोश हो गया (जिसकी बाद में मौत हो गई) साथ ही चंदन  को चोट आईं. इस घटना को  कुछ और ग्रामीणों ने देखा जो उनकी सहायता के लिए भी आए थे. यह मामला अगस्त 1980 में सत्र न्यायालय को सौंप दिया गया था. प्रभु की हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 के साथ 34 के तहत सभी चार आरोपितों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे. प्राण और राजाराम को लगी चोटों के लिए आईपीसी की धारा 307 के साथ 34 के तहत आरोप तय किए गए थे.

आत्मरक्षा में किया हमला
ट्रायल कोर्ट के समक्ष, आरोपी (अपीलकर्ताओं) ने स्वीकार किया कि उन्होंने आत्मरक्षा में प्रभु पर हमला किया था. प्रभु व उसके भाई लाठियों से लैस होकर उनके दरवाजे पर आए थे और हमला किया. एडीशनल सेशन जज ने नवंबर 1982 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बेंच ने कहा, अभियोजन पक्ष के गवाहों ने बचाव पक्ष को लगी चोट के बारे में कुछ भी नहीं बताया है. बचाव पक्ष ने अपनी चोटों को साबित कर दिया है जो उसी घटना में हुई थीं. इसलिए, अभियोजन पक्ष के खिलाफ कोई स्पष्टीकरण नहीं देने के लिए प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जा सकता है. न्यायालय ने जीवित अपीलकर्ता लखन और देशराज की अपील स्वीकार कर ली.

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