SARFAESI Act की धारा 14 के तहत आदेश होने के बाद उधारकर्ता जिम्मेदारी से बचने के लिए किराएदार को हथियार नहीं बना सकता

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act) की धारा 14 के तहत आदेश पारित होने के बाद उधारकर्ता अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए किरायेदार के माध्यम से दीवानी मुकदमा दायर नहीं कर सकता. जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस प्रवीण गिरि की बेंच ने कहा संपत्ति बंधक रहने के दौरान सुरक्षित ऋणदाता, यानी बैंक की अनुमति के बिना बनाई गई किरायेदारी संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 65ए की शर्तों के अधीन होगी और ये शर्तें पूरी होती हैं अथवा नहीं, इसका निर्णय केवल ऋण वसूली न्यायाधिकरण (‘डीआरटी) द्वारा ही किया जाएगा.
ऐसे पंजीकृत दस्तावेज़ के तहत अपने अधिकारों का दावा करने के लिए किरायेदार को धारा 17 के तहत डीआरटी के समक्ष आवेदन करना होगा. मुकदमे के तथ्यों के अनुसार याची एक्सिस बैंक ने गिरवी रखी गई संपत्ति पर कब्जा लेने के लिए एसडीएम धौलाना, जिला हापुड़ को परमादेश रिट जारी करने की मांग की थी.
याची के वकील ने कहा कि धारा 14 के तहत डीआरटी के आदेश के बावजूद, बैंक को कब्जा हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है क्योंकि उधारकर्ता के किरायेदार ने सिविल कोर्ट से स्थगन प्राप्त कर लिया है.
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प्रकरण में इस तथ्य से अवगत होने पर कि किरायेदार ने भी धारा 17 के तहत डीआरटी के समक्ष आवेदन दायर किया है, कोर्ट ने माना कि सिविल न्यायालय से प्राप्त स्थगन आदेश विधि सम्मत नहीं है. खंडपीठ ने याचिका निस्तारित करते हुए निर्देश दिया है कि यदि डीआरटी स्थगन आदेश देता है तो उसका पालन किया जाए. साथ ही यदि कोई अन्य कानूनी बाधा न हो तो संबंधित अधिकारी, याची बैंक को आठ सप्ताह के भीतर कब्जा दिलाएं.
कोर्ट ने कहा कि, हम यह स्पष्ट करते हैं कि किरायेदार द्वारा प्राप्त आदेश, जिसमें याचिकाकर्ता बैंक को पक्ष नहीं बनाया गया है, एक तरह से कानून के विरुद्ध है क्योंकि यह अधिनियम की धारा 34 के प्रावधान का उल्लंघन करता है.
इसके आलोक में, प्राधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे कानून के अनुसार कार्य करें और यदि कोई अन्य कानूनी बाधा नहीं है तो तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता बैंक को कब्जा दे दें. हम यह स्पष्ट करते हैं कि यदि प्रतिवादी संख्या 5 डीआरटी से स्थगन आदेश प्राप्त करता है, तो प्राधिकारी ऐसे स्थगन का पालन करेंगे, यदि दिया गया हो.