अब भी केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर कार्य कर रहा है इलाहाबाद हाईकोर्ट
25 करोड़ आबादी वाले प्रदेश में न्यायमूर्तियों के 160 पद स्वीकृत, तैनाती 88 की

इलाहाबाद हाईकोर्ट अब भी केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर कार्य कर रहा है, जबकि 11.5 लाख से अधिक मामले लंबित हैं. सुनवाई के दौरान यह फैक्ट पेश किये जाने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न्यायिक रिक्तियों पर चिंता जताई. सीनियर एडवोकेट सतीश त्रिवेदी की पीआईएल पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्टेट गवर्नमेंट और हाई कोर्ट मैनेजमेंट से 55 प्रतिशत क्षमता पर उनका पक्ष रखने को कहा है. जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस अनिल कुमार (दशम) की बेंच ने याचिका को 21 मई को टाप 10 में फ्रेश केस के रूप में लिस्टेड करने का निर्देश दिया है.
जनवरी में दाखिल की गयी थी पीआईएल
सीनियर एडवोकेट एसएफए नकवी, एडवोकेट शाश्वत आनंद और सैयद अहमद फैजान ने पीआईएल पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए आग्रह किया कि सभी न्यायिक रिक्तियों को समयबद्ध और जवाबदेह प्रक्रिया के तहत जल्द से जल्द भरा जाए ताकि हाई कोर्ट 160 न्यायमूर्तियों की स्वीकृत पूर्ण संरचनात्मक क्षमता पर काम करे. 25 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले राज्य के लिए कुल 88 न्यायमूर्ति ही कार्यरत हैं, इनमें लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति भी शामिल हैं. हाई कोर्ट का न्यायाधीशों की 55 प्रतिशत क्षमता पर काम करना अपर्याप्त है. अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि जनवरी 2025 में जब याचिका दाखिल की गई थी, तब इलाहाबाद हाई कोर्ट में केवल 79 न्यायमूर्ति कार्यरत थे. इधर बीच कुछ न्यायमूर्तियों की नियुक्ति की गयी है लेकिन यह संख्या अब भी अपर्याप्त है.
न्यायमूर्ति हजारों मामलों के बोझ से दबे
याचिका में न्यायिक रिक्तियों के कारण न्याय प्रणाली पर पड़ रहे गंभीर असर की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है. कहा गया है कि हाई कोर्ट फंक्शनल पैरालिसिस की स्थिति में है. प्रत्येक न्यायमूर्ति हजारों मामलों के बोझ से दबे हैं. नियुक्तियों में लगातार देरी से न्यायपालिका में जन विश्वास कमजोर हो रहा है और न्याय की समयबद्ध उपलब्धता जैसे संवैधानिक अधिकार भी प्रभावित हो रहे हैं.
नियुक्तियों की प्रक्रिया में हो संरचनात्मक सुधार
याचियों की तरफ से न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में संरचनात्मक सुधार की भी मांग की गई है. इनमें मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर में तय समयसीमा का कड़ाई से पालन, पूर्व-निर्धारित योग्य उम्मीदवारों की सिफारिश और जनसंख्या वृद्धि व लंबित मामलों के अनुसार स्वीकृत न्यायमूर्तियों संख्या की समय-समय पर समीक्षा किया जाना शामिल है. अधिवक्ताओं ने हाई कोर्ट का न्यायाधीशों की 55 प्रतिशत क्षमता पर करने को अपर्याप्त बताया और कहा कि इससे न्याय की समयबद्ध उपलब्धता जैसे संवैधानिक अधिकार भी प्रभावित हो रहे हैं.