इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया पहलगाम आतंकी हमले पर रॉबर्ट वाड्रा की टिप्पणी की SIT जांच पर PIL का निबटारा
कानून के तहत वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाये याचिकाकर्ता

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा द्वारा पहलगाम हमले के बाद की गयी टिप्पणी के एसआईटी से जांच कराने की मांग को लेकर दाखिल पीआईएल का इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनउ बेंच ने निबटारा कर दिया है. जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने याचिकाकर्ता हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस (अपने अध्यक्ष, अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री के माध्यम से) से कानून के तहत वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाने को कहा, जिसमें एफआईआर या आपराधिक शिकायत दर्ज करना शामिल है.
हिंदू समुदाय में भय और अशांति का माहौल पैदा किया
इस सप्ताह की शुरुआत में दायर की गयी पीआईएल में दावा किया गया था कि बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा का बयान हिंदू समाज को भड़काने वाला था! इस बयान ने हिंदू समुदाय में भय और अशांति का माहौल पैदा किया है. रावर्ट वाड्रा का ऐसा करना भारतीय न्याय संहिता की धारा 152, 302 और 399 के दाये में आता है. कोर्ट के संदर्भ के लिए, पीटीआई की रिपोर्ट रखी गयी! इसके अनुसार, रॉबर्ट वाड्रा ने टिप्पणी की थी कि पहलगाम में गैर-मुसलमानों पर हमला किया गया क्योंकि आतंकवादियों को लगता है कि देश में मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है. यह कहते हुए कि अहिंसा लंबे समय से हिंदू दर्शन का आधार रही है, पीआईएल याचिका में तर्क दिया गया कि वाड्रा का भाषण पीड़ित को दोषी ठहराने जैसा है.
पहलगाम में हिंदुओं की पहचान की गई और उन्हें सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वे हिंदू थे
रॉबर्ट वाड्रा ने अपने भाषण में कहा कि हिंदू लोगों को इसलिए मारा गया क्योंकि हिंदू अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे! पहलगाम में हिंदुओं की पहचान की गई और उन्हें सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वे हिंदू थे. रॉबर्ट वाड्रा का यह बयान राजनीतिक वोट बैंक, लाभ और तुष्टिकरण के कारण पीड़ित को दोषी ठहराने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. यह जानबूझकर, लक्षित, अलगाववादी और स्पष्ट रूप से राजनीति से प्रेरित बयान एक समुदाय को चोट पहुँचाने और विभाजित करने के इरादे से दिया गया है. यह दूसरे को खुश करने के लिए दिया गया है.
राज्य न तो किसी भी तरह से धर्म का प्रचार कर रहा है और न ही उसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द के अर्थ के बारे में याचिकाकर्ता की समझ सही नहीं है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से 30, सभी नागरिकों को धर्म और आस्था की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं और राज्य उनकी आस्था और धर्म में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. भारत किसी भी धार्मिक आस्था का विरोध करने के लिए धर्म विरोधी नहीं है.
पीआईएल याचिका