+91-9839333301

legalbulletin@legalbulletin.in

|

जमानत पर रिहा हैं तो शादी में शामिल होने और मौज मस्ती करने विदेश थोड़े जा सकते हैं

हाईकोर्ट ने नहीं दी शादी में यूएस और फिर फॉरेन घूमने जाने की अनुमति

जमानत पर रिहा हैं तो शादी में शामिल होने और मौज मस्ती करने विदेश थोड़े जा सकते हैं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जमानत पर रिहा हुए आरोपी को चिकित्सा उपचार, आवश्यक आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल होने आदि जैसी कुछ जरूरी जरूरतों के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति दी जा सकती है. विदेश में रिश्तेदार की शादी और दूसरे देश की मौज-मस्ती के लिए विदेश यात्रा करना विचाराधीन आरोपी के लिए बिल्कुल भी जरूरी उद्देश्य नहीं है. इसके साथ ही एकल जज ने आदित्य मूर्ति नामक व्यक्ति की जमानत पर रिहा करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी, जिसके खिलाफ आईपीसी के साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है. उसने लखनऊ के स्पेशल सीबीआई जज के आदेश को चुनौती दी थी.

गैर जरूरी उद्देश्यों के लिए अनुमति नहीं
प्रकरण की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने कहा कि जमानत पर रिहा आरोपी को गैर-जरूरी उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा करने का स्वत: अधिकार नहीं मिल सकता, क्योंकि उसे पहले ऐसी अनुमति दी गई थी. बता दें कि आरोपी मूर्ति ने अपने बुआ के पोते की शादी में शामिल होने के लिए अमेरिका जाने की अनुमति मांगी थी. वैवाहिक समारोह में शामिल होने के बाद भारत लौटने से पहले पेरिस और फ्रांस के नीस शहर की यात्रा करना चाहता था.

लोअर कोर्ट ने भी कर दिया था खारिज
आरोपित ने पहले लोअर कोर्ट में इसके लिए आवेदन किया था. लोअर कोर्ट ने उसकी याचिका अस्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा था कि जमानत पर रिहा आरोपी के खिलाफ मामले की प्रगति की निगरानी हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी की जा रही है. ऐसी परिस्थितियों में यदि उसे विदेश यात्रा करने की अनुमति दी जाती है तो इससे मामले के निपटारे में अनावश्यक देरी हो सकती है.

15 साल से चल रहा मुकदमा 22 दिन की अनुपस्थिति से क्या फर्क पड़ेगा
बेंच ने शुरू में ही यह नोट किया कि आवेदक के खिलाफ कार्यवाही CBI द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर शुरू की गई. ट्रायल कोर्ट, जो बचाव पक्ष के साक्ष्य के चरण में पहुंच चुका है, उसने उस पर IPC की धारा 120-बी के साथ IPC की धारा 420 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा धारा 13(2) के साथ 13(1) (डी) के तहत अपराध करने का आरोप लगाया. हाईकोर्ट के समक्ष आरोपित के वकील ने तर्क दिया कि जमानत पर रिहा आवेदक के मुकदमे का सामना करने के लिए वापस न आने की कोई संभावना नहीं है. यह मुकदमा पिछले 15 वर्षों से चल रहा है और आवेदक की मात्र 22 दिनों की अनुपस्थिति से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. यह भी तर्क दिया गया कि आवेदक को विदेश यात्रा करने का मौलिक अधिकार है. पहले भी कई मौकों पर उसे ऐसी यात्रा करने की अनुमति दी गई थी.

अदालत की रचनात्मक हिरासत में माना जाएगा आवेदक
कोर्ट ने जितेंद्र बनाम यूपी राज्य 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि एक व्यक्ति जिसे अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन गिरफ्तार किया गया और जमानत पर रिहा किया गया, वह अदालत द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अधीन रहता है और उसे अदालत की रचनात्मक हिरासत में माना जाएगा. आवेदक को एक स्वतंत्र व्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता का आनंद नहीं मिलता. उसकी स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिसमें देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध भी शामिल है.

इसे भी पढ़ें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *