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बीएचयू में 27 वर्षों से कार्यरत contract workers पर निर्णय लें

Contract workers पर VC के आदेश के बाद भी नहीं किया गया नियमित

contract workers

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीएचयू वाराणसी में 27 वर्षों से कार्यरत contract workers के नियमितीकरण पर छह सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने contract workers श्रीराम सिंह, रघु दयाल यादव एवं सियाराम सिंह की याचिका पर दिया है. याचिका पर अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने बहस की.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीएचयू से वाइस चांसलर के 16 अक्टूबर 2004 के के आदेश एवं इस वर्ष दो अप्रैल के कार्यालय अभिलेख/आफिस नोट एवं टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार फैसला लेने को कहा है. बता दें कि याचियों को वर्ष 1998 में शुरू में contract workers के तौर पर कुलपति के आदेश के अनुसार रखा गया. तभी से ये सभी नियमित रूप से अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इसके कार्य और व्यवहार से संतुष्ट होने पर वर्ष 2002 में वाइस चांसलर ने इन कर्मचारियों की सर्विस कंडीशन पर विचार किया. वाइस चांसलर द्वारा उनकी नौकरी की तकनीकी प्रकृति को देखते हुए अनुबंध (Contract) के आधार पर नियुक्ति को अनुमोदित किया गया.

वाइस चांसलर की संस्तुति होने के बाद टेलीफोन एक्सचेंज समिति ने इस पर काम किया. इस कमेटी ने Contract पर काम कर रहे याचियों के नियमितीकरण/स्थायीकरण की संस्तुति की. कमेटी की रिपोर्ट को तत्कालीन कुलपति ने स्वीकार करते हुए 16 अक्टूबर 2004 को आदेश जारी करके कहा कि Contract पर काम कर रहे सभी तीन कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाय लेकिन कुलपति के आदेश को अमल में नहीं लाया गया. जबकि कुलपति के आदेश के वर्ष 2004 के आदेशानुसार Contract worker याचियों का नियमितीकरण हो जाना चाहिए था. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ तो याचिका ने हाईकोर्ट की शरण ली और याचिका दाखिल की.

याचिका में वर्ष 2004 के कुलपति के स्थायीकरण के आदेश एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में नियमितीकरण के लिए एवं समान कार्य समान वेतन सिद्धांत के अनुसार बकाया सहित सभी आर्थिक लाभ की मांग पर की गई थी.

कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर बीएचयू के सक्षम प्राधिकारी के समक्ष नया अभ्यावेदन दाखिल करने और बीएचयू को अभ्यावेदन प्राप्त होने के छह सप्ताह के भीतर कुलपति एवं रजिस्ट्रार के अप्रैल 2025 के आफिस नोट/अभिलेख के अनुसार कोई वैधानिक अड़चन‌ न हो तो निर्णय लेने का निर्देश दिया है.

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कार्यकारी परिषद गठन पर केंद्र सरकार को चेतावनी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में कार्यकारिणी परिषद के गठन में हो रही देरी पर मांगी जानकारी न देने पर केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग को कड़ी चेतावनी दी है. बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शिक्षा मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग को 29 जुलाई तक मांगी गई जानकारी देने का अंतिम अवसर दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि इस तिथि तक जवाब दाखिल नहीं किया गया, तो न्यायालय ऐसा आदेश पारित करने के लिए बाध्य होगा, जो हो सकता है कि सरकार के अनुकूल न हो.

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यह आदेश चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की बेंच ने हरिकेश बहादुर सिंह की जनहित याचिका पर दिया. याचिकाकर्ता ने बीएचयू में कार्यकारणी परिषद के तत्काल गठन की मांग की है, क्योंकि वर्तमान में परिषद के अभाव में सभी निर्णय कुलपति द्वारा लिए जा रहे हैं, जो नियमानुसार उचित नहीं है. कार्यकारणी परिषद को विश्वविद्यालय के लिए नियम बनाने, वित्तीय और नियुक्ति संबंधी मामलों में निर्णय लेने का अधिकार होता है.

कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि पिछली कई सुनवाइयों से केंद्र सरकार के वकील द्वारा व्यक्तिगत कठिनाई के कारण समय मांगा जा रहा था. निर्धारित तिथि (16 अप्रैल, 2025) के ढाई महीने बाद भी कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया. केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया कि संबंधित सचिव को सूचित करने के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.फिर से समय मांगा अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी.

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