वकालतनामा या letter of authority के बिना संबोधित करने वाले वकील पर कोर्ट ने दर्ज करायी आपत्ति

वकील द्वारा अपने मुवक्किल से बिना किसी वकालतनामा या अधिकार पत्र (letter of authority) के अदालत में पेश होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि ऐसा व्यवहार उन वादियों के लिए हानिकारक है जिनकी ओर से वह वकील पेश हो रहा है. जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस सैय्यद कमर हसन रिजवी की बेंच ने अरमान जायसवाल नामक व्यक्ति द्वारा अपने पिता शिव कुमार जायसवाल को अदालत में पेश करने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए इस व्यवहार की निंदा की.
सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने पाया कि एक महिला अधिवक्ता, जो वरिष्ठ अधिवक्ता नहीं हैं, ने याचिकाकर्ता की ओर से मामले में बहस करने का प्रयास किया. उनके संबंध में कोई वकालतनामा रिकॉर्ड में नहीं था. रिकॉर्ड में केवल एक ही वकालतनामा (or letter of authority) था जो किसी अन्य अधिवक्ता के पक्ष में था.
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कोर्ट के समक्ष उपस्थित एक अन्य अधिवक्ता ने भी पीठ को सूचित किया कि जिस अधिवक्ता का वकालतनामा रिकॉर्ड में था, उसने उन्हें निर्देश दिया था कि संबंधित महिला अधिवक्ता ही मामले में बहस करेंगी.
गुण-दोष के आधार पर कोर्ट ने पाया कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में बंदी को पेश करने और रिहा करने, चिकित्सा उपचार, अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही और मुआवजे की माँग की गई थी. राज्य सरकार ने बताया कि कथित बंदी को केवल पूछताछ के लिए बुलाया गया था. पूछताछ के बाद उसे रिहा कर दिया गया.
कोर्ट ने पाया कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में अनुशासनात्मक कार्रवाई और मुआवजे की माँग पूरी तरह से गलत थी. उचित मंच के समक्ष उपचार की माँग करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई. रिट याचिका को निष्फल मानते हुए खारिज कर दिया गया तथा रिकार्ड में डाल दिया गया.
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