संभल जामा मस्जिद के सदर जफर अली को interim relief
निषेधाज्ञा उल्लघंन मामले में दर्ज FIR के तहत कार्यवाही पर रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल की जामा मस्जिद के सदर जफर अली को निषेधाज्ञा उल्लघंन मामले में अंतरिम (interim) राहत दे दी है. कोर्ट ने अगली सुनवाई तक दर्ज एफआईआर के तहत किसी कार्रवाई पर रोक लगा दी है. यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा तथा जस्टिस अब्दुल शाहिद की खंडपीठ ने जफर अली और तीन अन्य की याचिका पर दिया है.
संभल जामा मस्जिद के सदर जफर अली को मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में आरोपी बनाया गया है. इस मामले में उन्हें 24 जुलाई 2025 को सशर्त जमानत मिल गई है. जमानत मिलने पर उन्होंने निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए एक अगस्त को जेल से रिहा होने पर वाहनों के साथ जुलूस व रैली निकाली. इस पर पुलिस ने 5 अगस्त 2025 को संभल कोतवाली में निषेधाज्ञा के उल्लंघन के आरोप में एफआईआर दर्ज की.
एफआईआर को चुनौती देकर मांगी थी interim relief

पुलिस ने जफर अली, सरफराज, ताहिर, हैदर और 60 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है. जिसे चुनौती दी गई है. याची का कहना है कि असंज्ञेय अपराध का आरोप है जिसकी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती. कंप्लेंट केस दर्ज किया जा सकता है. कोर्ट ने मुद्दा विचारणीय माना और राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा पुलिस कानून के अनुसार कंप्लेंट दाखिल कर विवेचना कर सकती है.
मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूरों को क्यों नहीं दे रहे रिहाई सर्टिफिकेट व compensation

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूरों को रिहाई प्रमाण पत्र और मुआवजा न देने को लेकर दाखिल याचिका पर राज्य सरकार, डीएम बागपत, मानवाधिकार आयोग को और भट्ठा मालिकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. यह आदेश जस्टिस प्रकाश पाडिया ने सामाजिक कार्यकर्ता निर्मल गोराना व 22 अन्य बंधुआ मजदूरों की याचिका पर उनके अधिवक्ता चार्ली प्रकाश को सुनकर दिया है.
याचिका के अनुसार बागपत के शेरपुर लुहारी गांव में 23 मजदूरों को पत्नी-बच्चों सहित बिना कोई मजदूरी दिए बंधुआ बनाकर रखा गया था. उनसे हाड़ तोड़ मेहनत कराई जाती थी और खाना भी पर्याप्त नहीं मिलता था. याचिका में यह भी कहा गया है कि सभी को काफी मारापीटा भी गया और सामान भी छीन लिया गया.
महीनों बाद किसी प्रकार डीएम तक यह सूचना पहुंची तो निर्मल गोराना के हस्तक्षेप से वे सब मुक्त कराए गए. लेकिन बंधुआ कानून के तहत उन्हें काम का वेतन दिया नहीं गया और न ही रिलीज सर्टिफिकेट मिला, जिससे उनका पुनर्वास हो सके. मामले पर अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने याचिका को पांच सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है.
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