Allahabad HC के 5th May के फैसले ने फिर किया निराश: SC

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad HC) से पारित आदेश पढ़ने के बाद हम एक बार फिर यह कहने के लिए बाध्य हैं कि ऐसी त्रुटियाँ हाई कोर्ट (Allahabad HC) के स्तर पर ही होती हैं और वह भी केवल इसलिए क्योंकि इस विषय पर स्थापित कानूनी सिद्धांतों को सही ढंग से लागू नहीं किया जाता. सबसे पहले विषय-वस्तु पर गौर करना बेहद जरूरी है. इसके बाद कोर्ट को संबंधित मुद्दे पर गौर करना चाहिए. अंत में कोर्ट को वादी की दलील पर गौर करना चाहिए और फिर कानूनी सिद्धांतों को लागू करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए.
यह कमेंट सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad HC) के आदेश पर किया है. दो जजों की बेंच ने कहा कि यह इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक और आदेश है जिससे हम निराश हैं.
यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HC) द्वारा आपराधिक अपील संख्या 8689/2024 में दिनांक 29-5-2025 को पारित आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी थी. हाईकोर्ट (Allahabad HC) ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित सजा के मूल आदेश को निलंबित करने से इनकार कर दिया था. बेसिक मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से जुड़ा हुआ है.
अपीलकर्ता को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) मामला संख्या 270/2016 में पोक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8, भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354ख, 323 और 504 तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(10) के अंतर्गत दंडनीय अपराध के लिए द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पोक्सो अधिनियम), मेरठ ने दोषी ठहराया था.
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उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (2) के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक वर्ष के कठोर कारावास और 3000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई. पॉक्सो की धारा 7 और 8 के तहत अपराध के लिए उसे 4 वर्ष के कठोर कारावास और 4,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई. अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध के लिए उसे 4 वर्ष के कठोर कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई. निचली अदालत ने आदेश दिया कि सभी सजाएँ साथ-साथ चलेंगी.
निचली अदालत द्वारा पारित निर्णय और दोषसिद्धि आदेश से असंतुष्ट होकर, अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय (Allahabad HC) में अपील की. उसकी आपराधिक अपील संख्या 8689/2024 (Allahabad HC) अंतिम सुनवाई के लिए प्रतीक्षित है. अपीलकर्ता ने धारा 389 के अंतर्गत एक आवेदन प्रस्तुत कर निचली अदालत द्वारा पारित मूल दंडादेश को क्वैश करने का आग्रह किया था.
“अपीलकर्ता के वकील, एजीए को सुनने के बाद, रिकॉर्ड पर लाई गई सामग्री, साक्ष्य, अपराध की प्रकृति और गंभीरता के साथ-साथ कोर्ट पाता है कि सजा के निलंबन के लिए इस आवेदन के विरोध में विद्वान एजीए द्वारा उठाई गई आपत्तियों को आवेदक/अपीलकर्ता के विद्वान वकील द्वारा इस स्तर पर रिकॉर्ड के संदर्भ में खारिज नहीं किया जा सकता है. अपीलकर्ता को अपराध करने का दोषी ठहराया गया है जो न केवल अनैतिक है बल्कि जघन्य भी है. इसलिए, इस न्यायालय को वर्तमान अपील के लंबित रहने के दौरान अपीलकर्ता को जमानत पर बढ़ाने के लिए कोई अच्छा या पर्याप्त आधार नहीं मिलता है.”
जस्टिस राजीव मिश्रा, इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HC)
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि वर्तमान मामला निश्चित अवधि की सजा का है. अधिकतम सजा 4 वर्ष की दी गई है. 1999 में, इस न्यायालय ने “भगवान राम शिंदे गोसाई एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य मामले में (1999) 4 एससीसी 421 में रिपोर्ट दी थी कि जब किसी दोषी व्यक्ति को निश्चित अवधि की सजा सुनाई जाती है और जब वह किसी वैधानिक अधिकार के तहत अपील दायर करता है, तो अपीलीय न्यायालय को सजा के निलंबन पर उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए, जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों. बेशक, अगर सजा के निलंबन पर कोई वैधानिक प्रतिबंध है, तो यह एक अलग मामला है.

जब सजा आजीवन कारावास की हो, तो सजा के निलंबन पर विचार एक अलग दृष्टिकोण से किया जा सकता है. लेकिन, अगर किसी कारण से सीमित अवधि की सजा को निलंबित नहीं किया जा सकता है, तो अपील का निपटारा गुण-दोष के आधार पर करने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि जब अपीलीय न्यायालय को लगे कि व्यावहारिक कारणों से ऐसी अपीलों का शीघ्र निपटारा नहीं किया जा सकता, तो अपीलीय न्यायालय को सजा को निलंबित करने के मामले में विशेष चिंता दिखानी चाहिए ताकि अपील सही, सार्थक और प्रभावी हो सके. साथ ही, अपीलीय न्यायालय अपील स्वीकार होने पर समान शर्तें भी लगा सकते हैं.
कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हाई कोर्ट (Allahabad HC) ने आरोपित आदेश पारित करते समय निश्चित अवधि के लिए सजा के निलंबन की दलील को नियंत्रित करने वाले कानून के सुस्थापित सिद्धांतों पर विचार नहीं किया. हाई कोर्ट (Allahabad HC) ने अभियोजन पक्ष के पूरे मामले और मौखिक साक्ष्य को दोहराना ही किया, जो रिकॉर्ड में आ चुके हैं. यह सही तरीका नहीं है. हाई कोर्ट (Allahabad HC) अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन पर जल्द से जल्द नए सिरे से सुनवाई करेगा और आज से 15 दिनों के भीतर उचित आदेश पारित करेगा.
“हाई कोर्ट (Allahabad HC) को इस तथ्य का ध्यान रखना चाहिए था कि अपील वर्ष 2024 की है. 2024 की अपील पर निकट भविष्य में सुनवाई होने की संभावना नहीं है. अंततः, यदि 4 वर्ष जेल में बीत जाते हैं तो यह अपील को निष्फल बना देगा और यह न्याय का उपहास होगा. कोर्ट ने कहा, ऐसी परिस्थितियों में हम आरोपित आदेश को रद्द करते हैं और अपीलकर्ता की दलील पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को उच्च न्यायालय (Allahabad HC) को वापस भेजते हैं.“
“हम एक बार फिर यह देखने के लिए विवश हैं कि इस तरह की त्रुटियां उच्च न्यायालय (Allahabad HC) के स्तर पर होती हैं और केवल इसलिए क्योंकि विषय पर कानून के सुस्थापित सिद्धांतों को सही ढंग से लागू नहीं किया जाता है. सबसे पहले विषय-वस्तु पर गौर करना बहुत महत्वपूर्ण है. इसके बाद न्यायालय को संबंधित मुद्दे पर गौर करना चाहिए. अंत में न्यायालय को वादी की दलील पर गौर करना चाहिए और फिर कानून के सही सिद्धांतों को लागू करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए.”
Case AHC :- CRIMINAL APPEAL No. – 8689 of 2024
Case SC: CRIMINAL APPEAL NO.3409/2025 (@SPECIAL LEAVE PETITION (CRL.) NO.11361/2025 AASIF @ PASHA VERSUS THE STATE OF U.P. & ORS.