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14 वर्ष बाद अनिच्छित हत्या का आरोपी acquitted

गवाहों के होस्टाइल हो जाने के चलते कोर्ट ने दिया बरी करने का आदेश

14 वर्ष बाद अनिच्छित हत्या का आरोपी acquitted

14 वर्ष पुराने अनिच्छित हत्या के आरोपी को गवाहों के होस्टाइल हो जाने के चलते दोषमुक्त (acquitted) कर दिया है. मेजा ग्राम न्यायालय के न्यायिक मजिस्ट्रेट रूपान्शु आर्य ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है. ऐसे में अभियुक्त को दोषमुक्त (acquitted) किया जाना न्यायोचित है. घटना प्रयागराज जिले के माण्डा थाना क्षेत्र की है. घटना के संबंध में रिपोर्ट केदारनाथ पुत्र स्व. बेचन, निवासी ग्राम शिरोमनपुर भारतगंज ने 7 जुलाई 2011 को दर्ज कराया था. वादी ने आरोप लगाया कि उसका पुत्र आशीष कुमार (उम्र 20 वर्ष) ग्राम भरारी निवासी रमेश यादव के ट्रैक्टर पर रहा करता था.

घटना वाले दिन रमेश यादव अपने ट्रैक्टर पावर ट्रैक पर आशीष को लेकर ग्राम हबीब नगर नकटी, थाना माण्डा, खेत जोतने गया. वहां आशीष कुमार को ट्रैक्टर में पानी डालने को कहा गया. तभी रमेश यादव ने कथित रूप से लापरवाहीपूर्वक ट्रैक्टर चला दिया जिससे आशीष कुमार ट्रैक्टर की चपेट में आ गया और घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई.

पुलिस विवेचना के दौरान प्रारम्भिक नामजद अभियुक्त रमेश यादव को छोड़कर वंश राज सरोज को आरोपी बनाया गया. विवेचना पूर्ण करने के बाद विवेचक ने पर्याप्त साक्ष्य बताते हुए वंश राज सरोज के विरुद्ध धारा 279, 304ए भारतीय दंड संहिता के तहत आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया.

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पहले गवाह केदारनाथ ने न्यायालय में अपने मुख्य बयान में अभियोजन कथानक का समर्थन करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि दुर्घटना के समय वे स्वयं मौजूद नहीं थे केवल ग्रामवासियों से घटना की जानकारी मिली. उन्होंने यह भी कहा कि तहरीर में रमेश यादव का नाम किसने लिखा यह उन्हें नहीं पता उन्होंने केवल अंगूठा निशानी लगाई थी. केदारनाथ ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने वंश राज सरोज को ट्रैक्टर चलाते हुए कभी नहीं देखा.

इसी प्रकार गवाह जयपाल यादव ने भी न्यायालय के समक्ष अपने बयान में कहा कि उन्होंने न तो वादी को कभी देखा और न ही वंश राज सरोज को दुर्घटना कारित करते. दोनों गवाहों को अभियोजन पक्ष द्वारा पक्षद्रोही घोषित कर प्रतिपरीक्षा की गई, परन्तु अभियोजन पक्ष अपने कथानक को पुष्ट कराने में विफल रहा.

चश्मदीद गवाह न होने तथा प्रस्तुत गवाहों द्वारा अभियोजन कथानक का समर्थन न करने से पूरे मामले में अभियुक्त के विरुद्ध आरोप संदेह से परे साबित नहीं हो सके. अभियुक्त की तरफ से अधिवक्ता अब्दुल हक अंसारी और सरकार की तरफ से सहायक अभियोजन अधिकारी विवेक कुमार श्रीवास्तव ने अपने तर्क पेश किये.

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