आधार को ’12वें दस्तावेज’ के रूप में accept करें
बिहार में चल रहे एसआईआर में सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में accept करने का आदेश बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में सोमवार 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिया. कोर्ट ने कहा कि बिहार की संशोधित मतदाता सूची में शामिल होने के उद्देश्य से पहचान के प्रमाण के रूप में आधार को accept किया जा सकता है. कोर्ट में सोमवार को निर्वाचन आयोग के खिलाफ याचिका दाखिल करने वालों के अधिवक्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी निर्वाचन आयोग ने आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में accept करने की अनुमति नहीं दी है.
अब भी वही 11 दस्तावेज पहचान के प्रमाण के रूप में accept किये जा रहे हैं जिन्हें एसआईआर की प्रक्रिया शुरू होने के समय निर्वाचन आयोग ने घोषित किया था. कोर्ट ने कहा कि इसका अर्थ है कि आधार कार्ड को मतदाता सूची में शामिल होने के लिए एक स्वतंत्र दस्तावेज के रूप में accept किया जा सकता है जैसे कि चुनाव आयोग द्वारा मूल रूप से स्वीकार्य अन्य 11 दस्तावेजों में से कोई भी. मामले में अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी.
सोमवार को भी कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है. कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग को आधार की स्वीकृति (accept) के संबंध में अपने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश जारी करने को कहा. कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग से जुड़ें अधिकारी मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत (accept) आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता को सत्यापित करने के हकदार होंगे.
पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार (accept) किया जाएगा
कोर्ट ने कहा कि आधार अधिनियम के अनुसार, आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) को ध्यान में रखते हुए, आधार कार्ड किसी भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से एक दस्तावेज है. कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस वचन को दर्ज किया कि आधार कार्ड को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार (accept) किया जाएगा.

सोमवार को भी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस प्रकरण की सुनवाई की. इस दौरान राजद और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि चुनाव आयोग के अधिकारी मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आधार कार्ड को एक स्वतंत्र दस्तावेज के रूप में स्वीकार (accept) नहीं कर रहे हैं.
राजद की ओर से कोर्ट में तर्क रखते हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आधार कार्ड पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट तीन बार आदेश दे चुका है लेकिन निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी और बूथ स्तरीय अधिकारी इसे स्वीकार (accept) नहीं कर रहे हैं.
उन्होंने आधार कार्ड स्वीकार करने के लिए एक बीएलओ को कथित तौर पर जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को कोर्ट में रखा और दलील दी कि चुनाव आयोग ने अपने जमीनी स्तर के अधिकारियों को आधार कार्ड स्वीकार करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया है. इससे सुप्रीम कोर्ट का आदेश फॉलो नहीं हो पा रहा है.
सिब्बल ने यह भी कहा कि कई मतदाताओं के हलफनामे जिनके आधार कार्ड स्वीकार नहीं किए गए दायर किए गए हैं. सवाल उठाया कि अगर वे इसे स्वीकार (accept) नहीं कर सकते तो वे किस तरह का समावेशन अभियान चला रहे हैं?
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार (accept) नहीं किया जा सकता. इस पर सिब्बल ने यह तर्क दिया कि चुनाव आयोग के पास नागरिकता निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि इस मुद्दे पर एक बार और हमेशा के लिए निर्णय लिया जाए.
“हम चाहते हैं कि आप स्पष्ट करें…हमने बार-बार आदेश पारित किया है कि सूची में 11 दस्तावेज़ों का उदाहरण दिया गया है. यदि आप उन 11 को देखें, तो पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र के अलावा कोई भी नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं है. हमने स्पष्ट किया है कि आधार को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए.”
जस्टिस जॉयमाल्या बागची

सोमवार को कोर्ट में अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय भी पेश हुए. उन्होंने देशभर में एसआईआर कराने की मांग की है. उन्होंने दलील दी कि यदि व्यक्ति के पास 11 दस्तावेजों में से कोई भी नहीं है तो आधार कार्ड स्वीकार (accept) नहीं किया जा सकता.
इस पर जस्टिस बागची ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में ही आधार कार्ड का उल्लेख है. सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकर नारायणन ने स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) में आधार कार्ड को पहचान के दस्तावेज के रूप में संदर्भित किया गया है.
एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने बताया कि फॉर्म 6 (पहली बार मतदान करने वालों के नाम शामिल करने के लिए) में भी आधार कार्ड को स्वीकार्य (accept) दस्तावेजों में से एक बताया गया है. इस पर अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि कई आधार कार्ड जाली हैं तो जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है.
जब पीठ ने स्पष्ट किया कि आधार को कम से कम पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार (accept) किया जाना चाहिए, तो द्विवेदी ने कहा कि ऐसा किया जाएगा. इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने बेंच से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार (accept) किया जा सकता है.
शंकर नारायणन ने दलील दी कि ऐसा न करने पर कोर्ट का आदेश लागू नहीं होगा और यह इस न्यायालय द्वारा पारित अन्य तीन पूर्व आदेशों की तरह ही रहेगा. न्यायाधीशों ने आपस में एक संक्षिप्त चर्चा के बाद, अपने आदेश में स्पष्ट किया कि आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में माना जाना चाहिए.
“संक्षिप्त मुद्दा आधार कार्ड की स्वीकार्यता और स्थिति से संबंधित है. आधार अधिनियम के तहत आधार को दी गई वैधानिक स्थिति को देखते हुए आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) को ध्यान में रखते हुए, आधार कार्ड किसी भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से एक दस्तावेज है.”
इसके बाद निर्वाचन आयोग के सीनियर एडवोकेट ने कहा कि बिहार की संशोधित मतदाता सूची में नाम शामिल करने/छूटने के लिए आधार कार्ड को पहचान स्थापित करने वाले दस्तावेजों में से एक माना जाएगा. उन्होंने स्पष्ट किया कि प्राधिकारियों को आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की पुष्टि करने का अधिकार होगा.
निर्वाचन आयोग इस संबंध में आज निर्देश जारी करेगा. बता दें कि 10 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह मतदाता सूची में शामिल करने के लिए राशन कार्ड और चुनावी फोटो पहचान पत्र के साथ-साथ आधार कार्ड पर भी विचार करे.
कोर्ट ने 22 अगस्त को मसौदा सूची से बाहर किए गए व्यक्तियों को आधार कार्ड या अन्य 11 दस्तावेजों के साथ शामिल होने के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी.