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काशी विश्वनाथ Mandir के आचार्य को हटाने का आदेश रद, चाहे तो हफ्ते में 3 दिन आरती व पूजन करें

सुगमता से रात्रि भोग श्रृंगार आरती पूजन करने देने का निर्देश

काशी विश्वनाथ Mandir के आचार्य को हटाने का आदेश रद, चाहे तो हफ्ते में 3 दिन आरती व पूजन करें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर (Mandir) में रात्रि भोग श्रृंगार आरती करने वाले आचार्य डा देवी प्रसाद द्विवेदी को हटाने के मुख्य कार्यपालक के आदेश को रद कर दिया है और याची को बिना किसी मानदेय के सुगमतापूर्वक Mandir में  श्रृंगार आरती, पूजन करने देने की अनुमति देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि आचार्य का पूरा सम्मान किया जाय. वह चाहें तो सहायक भी रख सकते हैं. चाहे तो हफ्ते में तीन दिन सोमवार, बुधवार और बृहस्पतिवार को रात्रि भोग श्रृंगार आरती व पूजन कर सकते हैं.

न्यास उनसे महीने में एक दिन मंदिर (Mandir) परिसर में कर्मकांड के प्रशिक्षण का काम ले सकता है. कोर्ट ने याची को न्यास को सूचित कर दायित्व का स्वयं त्याग करने की छूट दी है. कोर्ट ने कहा विवाद आपस में न सुलझे तो कोर्ट आ सकते हैं. यह आदेश जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की बेंच ने डॉ देवी प्रसाद द्विवेदी की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है.

बता दें कि याची कर्मकाण्ड के विद्वान हैं. काशी विद्वत परिषद ने पूजारी वंशीधर के निधन के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर (Mandir) न्यास को 13 जनवरी 1994 को पत्र लिखकर याची को आचार्य पद का दायित्व देने की संस्तुति की. इसके आधार पर उनकी नियुक्ति की गई.

सुगमतापूर्वक Mandir में  श्रृंगार आरती, पूजन करने देने की अनुमति देने का निर्देश

शुरू में एक साल बाद में तीन साल का कार्यकाल बढ़ाया गया. मानदेय भी बढ़ाया जाता रहा. प्रदेश के मुख्य सचिव ने एकांत पूजा का प्रस्ताव भेजा. याची ने दर्शनार्थियों को रोक कर Mandir में  पूजा कराने में असमर्थता जताई तो नाराज हो गये और शिकायत कराई कि नियुक्ति अवैध है और अनियमितता की जा रही है.

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आरोप के अनुसार पीठ पीछे जांच कराई गयी लेकिन रिपोर्ट नहीं दी दी गई. जवाब जरूर मांगा गया. इसके बाद आदेश हुआ कि 24 जून 18 के बाद सेवा विस्तार नहीं किया गया था. इसलिए वसूली की जायेगी. न्यास ने यह भी कहा कि याची 60 वर्ष से अधिक का है. मानदेय वापस नहीं कर सकता. पूजन करने में भी असमर्थता जतायी.

कोर्ट ने दोनों तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा 60 साल बाद पूजा पर रोक का कोई नियम नहीं है. हाईकोर्ट के स्थगनादेश के कारण याची पूजा कराते रहे. कोर्ट ने कहा याची की तुलना मंदिर के कर्मचारियों से नहीं की जा सकती. आचार्य कोई पद नहीं परंपरागत दायित्व है. याची के खिलाफ आदेश पूर्वाग्रह ग्रसित है और याची को बड़ी राहत दी है.

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