जब तक विवाह रद्द नहीं होता, पत्नी की maintenance पाने की हकदार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद किया फैमिली कोर्ट चंदौली का फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि जब तक विवाह रद नहीं हो जाता तब तक पत्नी को अपने पति से maintenance (भरण पोषण) पाने का हक है. वह भी तब जबकि जोड़े ने विवाद रद कराने की दिशा में कोई कदम आगे न बढ़ाया हो, इसे निरस्त नहीं किया जा सकता है. इस टिप्पणी के साथ जस्टिस राजीव लोचन शुक्ल ने चंदौली निवासी श्वेता जायसवाल की याचिका पर फैमिली कोर्ट का फैसला रद कर दिया है.
हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश ने अधिनियम 1955 का संदर्भ लिया है. इसके प्रावधान स्वयं maintenance (भरण पोषण) के दावे को निरस्त नहीं करते. इसलिए केवल इस आधार पर कि विवाह शून्यकरणीय होगा धारा 125 सीआरपीसी के सामान्य प्रावधान (maintenance) के अंतर्गत राहत से इनकार नहीं किया जा सकता.
कोर्ट के संज्ञान में ऐसी कोई कार्यवाही नहीं लायी गयी जहाँ किसी पक्षकार ने विवाह को शून्य घोषित करने के लिए डिक्री की माँग की हो. एक बार विवाह कायम रहने पर पुनरीक्षणकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के रूप में स्थिति बनी रहती है और उसे चुनौती नहीं दी जा सकती.
विवाह को स्वयं शून्य घोषित नहीं किया गया है और इसके अभाव में अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(सी) की प्रयोज्यता की गलत धारणा के आधार पर maintenance (भरण पोषण) की राहत से इनकार करना स्पष्ट रूप से अवैध और विकृत था.
हाई कोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों में विचारण न्यायालय द्वारा यह निष्कर्ष कि पुनरीक्षणकर्ता को भरण-पोषण की पात्रता नहीं थी क्योंकि वह 125(4) सीआरपीसी के अंतर्गत maintenance (भरण पोषण) दिए जाने पर रोक के अंतर्गत आती है, स्पष्टतः अवैध और विकृत है तथा इसे रद्द किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने प्रकरण को प्रधान न्यायाधीश फैमिली कोर्ट चंदौली को वापस भेज दिया है और निर्देश दिया है कि नाबालिग पुत्री को दिए गए maintenance (भरण पोषण) में कोई बाधा डाले बिना पुनरीक्षणकर्ता पत्नी के भरण-पोषण के दावे के संबंध में पूर्व में की गई टिप्पणियों के आलोक में एक नया आदेश पारित किया जाय.
कोर्ट ने इस आदेश की एक प्रति फैमिली कोर्ट को भेजने का निर्देश दिया और पुनरीक्षणकर्ता के अधिवक्ता से भी कहा कि वह एक महीने के भीतर इस आदेश की प्रति उनके समक्ष दाखिल करें. आदेश में यह भी कहा गया है कि प्रधान न्यायाधीश फैमिली कोर्ट चंदौली इस आदेश की प्राप्ति पर और पक्षकारों को विधिवत सूचना देने के पश्चात तीन माह की अतिरिक्त अवधि के भीतर मामले का निर्णय करेंगे.
यह मामला चंदौली जिले से जुड़ा हुआ है. याचिकाकर्ता श्वेता जायसवाल ने प्रधान न्यायाधीश फैमिली कोर्ट में maintenance (भरण पोषण) के लिए वाद दायर किया था. कोर्ट ने नवंबर 2017 के आदेश में कहा कि पति के पहली शादी को छुपाने के आधार पर पत्नी अलग रह रही है. वह पत्नी होने का कर्तव्य नहीं निभा रही है.
पत्नी पिछली शादी को छिपाने के आधार पर विवाह शून्यता की डिक्री प्राप्त कर सकती है, इसलिए भरण पोषण भत्ता पाने की हकदार नहीं है. कोर्ट ने उसकी नाबालिग बेटी के लिए दो हजार रुपये प्रति माह के maintenance (भरण पोषण) की अनुमति दी थी. इस आदेश के खिलाफ पत्नी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी.
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बालिग होते ही पति को देना होगा Maintenance

बरेली निवासी अभिषेक के खिलाफ पत्नी ने फैमिली कोर्ट में वाद दाखिल कर नाबालिग बेटी और स्वयं के लिए भरण पोषण की मांग की. कोर्ट ने पत्नी के लिए पांच हजार और बेटी के लिए चार हजार रुपये प्रति माह दिये जाने का आदेश याचिका दाखिल करने की तिथि यानी 10 फरवरी 2019 से देने का आदेश दिया.
इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी. अधिवक्ता एसएम इकबाल हसन ने दलील दी कि याची की जन्मतिथि एक जनवरी 2003 है. ऐसे में पत्नी की ओर से भरण पोषण के लिए आवेदन दाखिल करते समय 10 फरवरी 2019 को याची की उम्र करीब 16 साल थी.
नाबालिग होने के कारण उसके खिलाफ भरण पोषण का मामला पोषणीय नहीं था. हाई कोर्ट ने कहा, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी नाबालिग पति के खिलाफ भरण पोषण आवेदन दाखिल करने से रोकता हो. भरण पोषण के लिए आवेदन दाखिल करते वक्त वह नाबालिक था लेकिन जब ट्रायल कोर्ट ने 22 नवंबर 2023 को आदेश दिया तो वह बालिग हो चुका था ऐसे में यह भरण पोषण के लिए जिम्मेदार है.
कोर्ट ने नाबालिग पति को वित्तीय जिम्मेदारी पर विचार किया और माना कि वह 1 जनवरी 2021 को बालिग हुआ इसलिए उस तारीख से वह भरण पोषण के लिए कानूनी रूप से बाध्य होगा. कोर्ट ने पति की कोई आय न होने के आधार पर भरण पोषण के आदेश को संशोधित कर दिया इसके तहत पत्नी को ढाई हजार और बेटी को दो हजार रुपये भरण पोषण (Maintenance) के लिए देने का आदेश दिया.
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