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पति से संबंध बनाने से इंकार करना भी है cruelty, 10 साल बाद टूटा रिश्ता, Family Court के फैसले पर मुहर

मुंबई हाईकोर्ट ने कहा, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) में ‘cruelty’ शब्द का कोई निश्चित अर्थ नहीं

पति से संबंध बनाने से इंकार करना भी है cruelty

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत ‘cruelty’ शब्द का कोई निश्चित अर्थ नहीं है. कोर्ट को इसे उदारतापूर्वक और प्रासंगिक रूप से लागू करने का व्यापक विवेकाधिकार है. एक मामले में जो cruelty है वह दूसरे में cruelty नहीं हो सकती है. इसे उपस्थित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति पर लागू किया जाना है. यह कमेंट मुंबई हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. नीला गोखले और रेवती मोहिते डेरे की बेंच ने प्रिया आशीष बोडस बनाम आशीष राजीव बोडास केस में सुनवाई के दौरान किया.

कोर्ट ने कहा कि पति से संबंध बनाने से इंकार करना भी है cruelty है. कोर्ट ने वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेदन को अनुमति दे दी. हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की प्रार्थना अस्वीकार कर दिया और अपील खारिज कर दी और कहा कि अंतरिम आवेदन भी निरस्त माना जाएगा.

पक्षकारों के बीच कार्यवाही वर्ष 2015 में Family Court पुणे में शुरू हुई. वर्तमान कार्यवाही के लिए तथ्य यह है कि पक्षों ने 12 दिसंबर 2013 को कोथरूड, पुणे में हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था. उक्त विवाह से कोई संतान नहीं है. पक्षों के बीच वैवाहिक कलह के कारण, वे 14 दिसंबर 2014 को अलग हो गए. 15 अप्रैल 2015 को पारिवारिक न्यायालय, पुणे में एचएमए की धारा 13 बी के तहत आपसी तलाक के लिए याचिका दायर की गई थी.

पति से संबंध बनाने से इंकार करना भी है cruelty

27 जुलाई 2015 को अपीलकर्ता-पत्नी द्वारा याचिका वापस ले ली गई, जिसके बाद उसने प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद, अपीलकर्ता ने Family Court, पुणे में प्रतिवादी के खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की.

प्रतिवादी ने cruelty और परित्याग के आधार पर तलाक के लिए अपना लिखित बयान-सह-प्रतिदावा दायर किया. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपीलकर्ता की ओर से वकील सुश्री उषा तन्ना और प्रतिवादी पति की ओर से अधिवक्ता विक्रमादित्य देशमुख ने पक्ष रखा.

वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए उसकी याचिका के साथ-साथ मुख्य परीक्षा के बदले में हलफनामे में अपीलकर्ता ने कई आरोप लगाए:

  • (i) प्रतिवादी के माता-पिता ने अपीलकर्ता को परेशान किया और उसे अपमानित किया.
  • (ii) प्रतिवादी और उसके माता-पिता ने अपीलार्थी को काम करने से मना किया और उसे घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया गया जैसे बर्तन साफ करना, खाना बनाना, घर की सफाई करना और ऐसे ही अन्य घरेलू काम. वे हमेशा छोटी-छोटी बातों पर उससे झगड़ा करते थे.
  • (iii) 28 अगस्त 2024 को उससे झगड़ा करने के बाद प्रतिवादी ने उससे कहा कि उसे उसके साथ नहीं रहना चाहिए. प्रतिवादी और उसके माता-पिता ने अपीलार्थी के पिता को बताया कि प्रतिवादी उससे तलाक चाहता है.
  • (iv) प्रतिवादी और उसके माता-पिता ने उससे उसका स्त्रीधन सहित आभूषण छीन लिए.
  • (v) 9 अप्रैल 2015 को उसे रोजगार का अवसर दिया गया और इसलिए वह सहमति याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हो गई.

Family Court के न्यायाधीश ने उसकी सहमति का सत्यापन किया, तो उसने शिकायत की कि उसके हस्ताक्षर जबरदस्ती प्राप्त किए गए थे. इसलिए उसने सहमति याचिका पर अपनी सहमति वापस ले ली. इससे अपीलकर्ता के पिता को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया तथा 45 दिनों तक अस्पताल में रखा गया.

प्रतिवादी ने उसे घर ले जाने से इनकार कर दिया, इसलिए उसने अपने वकील के माध्यम से प्रतिवादी को 15 जून 2016 को एक नोटिस जारी किया, जिसका उत्तर प्रतिवादी ने अपने वकील के माध्यम से 27 जून 2016 को दिया.

वह प्रतिवादी से बहुत प्यार और स्नेह करती है और उसके साथ रहना चाहती है. इसलिए, उसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की.

प्रतिवादी ने याचिका में अपने बयान के माध्यम से याचिका में लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया और अपने प्रतिदावे में निम्न आधारों पर तलाक की मांग की:

  • अपीलकर्ता सुबह बिना किसी को बताए घर से निकल जाती थी और देर रात लौटती थी.
  • वह उससे झगड़ा करती थी और उसके माता-पिता और बहन पर आरोप लगाती थी.
  • अपीलार्थी ने प्रतिवादी से हमेशा कहा कि उसके साथ विवाह करना एक गलती थी और उसके जीवन की सबसे बड़ी विफलता थी. शादी के बाद अपने पहले वैलेंटाइन डे पर, उसने पूरा दिन अपने दोस्तों के साथ बिताने के लिए उसे छोड़ दिया.
  • जब वे अपने दोस्त और उसकी पत्नी के साथ लोनावाला घूमने गए तो अपीलार्थी ने उससे झगड़ा किया. उसने उसके दोस्तों का मनोरंजन करने से इनकार कर दिया और हमेशा उनके साथ बाहर जाने से इनकार कर दिया. वह प्रतिवादी को बताए बिना घर के बाहर चुपके से अपने दोस्तों से मिलती थी. वास्तव में, उसने कभी भी प्रतिवादी को अपना स्थान नहीं बताया.
  • वह हमेशा प्रतिवादी के कर्मचारियों के साथ असभ्य व्यवहार करती थी और किसी भी समय उसके कार्यालय में घुस जाती थी और उसके कर्मचारियों के साथ गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करती थी.
  • अपीलार्थी ने शादी के 3-4 महीने बाद प्रतिवादी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया. वह उससे अलग-थलग रहने लगी.
  • प्रतिवादी ने गोवा की यात्रा की योजना बनाई, तो अपीलकर्ता उसके साथ गई, लेकिन उसके साथ कहीं भी बाहर जाने से इनकार कर दिया. इसके बजाय, वह पूरे दिन होटल के अंदर अकेली घूमती रही और पूरे तीन दिनों तक प्रतिवादी से बात नहीं की.
  • अपने बर्थडे पर भी, अपीलकर्ता ने बिना प्रतिवादी को यह कहे कि यह उसकी विफलता का दिन है, अपने दोस्तों के साथ बाहर जाने की योजना बनाई.
  • उसने तलाक की मांग शुरू कर दी और 14 दिसंबर 2014 को अपने माता-पिता के घर चली गई, जिस तारीख से वे अलग रह रहे हैं.

पक्षों ने Family Court के समक्ष अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत किए. प्रतिवादी ने अपीलकर्ता पर cruelty और परित्याग का आरोप लगाया. Family Court ने, संपूर्ण साक्ष्य पर विचार करने के बाद, प्रतिवादी द्वारा लगाए गए आरोपों को सिद्ध माना और उसके प्रतिदावे को स्वीकार कर लिया. दो जजों की बेंच ने कहा कि हमने आरोपित फैसले और आदेश को ध्यानपूर्वक पढ़ा है. इसे सीधे पढ़ने से Family Court द्वारा रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की सावधानीपूर्वक सराहना का पता चलता है.

अपीलार्थी ने आरोप लगाया है कि उसे प्रतिवादी के घर में सारा घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया गया था. इस आरोप के बावजूद, अपीलार्थी के साक्ष्य से उसकी स्वीकारोक्ति का पता चलता है कि घर में 24 घंटे एक नौकर था. घर की सफाई, बर्तन धोने आदि के लिए एक और नौकर और खाना पकाने के लिए एक और नौकर.

पति से संबंध बनाने से इंकार करना भी है cruelty

Family Court ने अपीलकर्ता की सहवास फिर से शुरू करने की वास्तविक इच्छा पर वास्तविक संदेह जताया है. कहा कि सहवास के दौरान प्रतिवादी द्वारा उससे तलाक की मांग करने के उसके दावे ठोस सबूतों से पुष्ट नहीं होते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि अपीलकर्ता ने तलाक की याचिका पर अपनी सहमति वापस लेने के बाद ही प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

अपनी जिरह में यह कहने के अलावा कि उसने आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमति नहीं दी थी, इस बात का रत्ती भर भी सबूत नहीं है कि आपसी सहमति से तलाक की याचिका पर उसकी सहमति उस पर थोपी गई थी. वास्तव में, उसने स्वीकार किया है कि सहमति याचिका दायर करते समय वह व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित थी. उसकी माँ उसके साथ थी. उसका प्रतिनिधित्व एक वकील ने किया था.

इसके अलावा, सहमति याचिका वापस लेने के लिए अपीलकर्ता द्वारा दलील में दिया गया कि वह प्रतिवादी के साथ भविष्य को लेकर आशान्वित थी. इस प्रकार, उसका यह आरोप कि उसे सहमति याचिका दायर करने के लिए मजबूर किया गया था, काफी संदिग्ध है. इसके अलावा, यह तथ्य कि उसने प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, यह दर्शाता है कि आपसी सहमति की कार्यवाही कुछ कारणों से विफल होने के बाद प्रतिवादी को परेशान करने की उसकी प्रवृत्ति थी.

Family Court ने सही ढंग से अनुमान लगाया कि अपीलार्थी सुलह करने में गंभीरता से दिलचस्पी नहीं रखती है और ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बिना उचित कारण के प्रतिवादी के अपने समाज से अलग होने का संकेत दे. जहां तक प्रतिवादी के साक्ष्य का संबंध है, उसने अपीलार्थी द्वारा उस पर की गई cruelty की विभिन्न घटनाओं का वर्णन किया है.

फैमिली कोर्ट ने आक्षेपित निर्णय के पैराग्राफ 21 में उसके साथ की गई cruelty की घटनाओं की एक सूची तैयार की है. अपीलार्थी के वकील द्वारा प्रतिवादी से की गई जिरह से उसके बयान में कोई विरोधाभास या सुधार सामने नहीं आया है. इसके बाद, आपसी सहमति से याचिका दायर करने से यह तथ्य स्थापित होता है कि अपीलकर्ता भी वैवाहिक संबंध समाप्त करने के लिए इच्छुक थी.

फैमिली कोर्ट द्वारा पारित 28 मार्च 2019 का एक और आदेश है जिसमें कहा गया है कि अपीलकर्ता ने जिरह के लिए समय मांगा था क्योंकि वकील मौजूद नहीं थे. Family Court ने आगे कहा कि अपीलकर्ता को कई मौके दिए गए, लेकिन कोई जिरह नहीं हुई और इसलिए जिरह बंद कर दी गई. उक्त आदेश के बावजूद, प्रतिवादी की जिरह 16 सितंबर 2019 को पूरी पाई गई क्योंकि Family Court द्वारा एक नोटिंग है कि ‘जिरह बंद हो गई ‘पुनर्परीक्षण नहीं’. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि 28 मार्च 2019 के आदेश के बावजूद अपीलकर्ता को प्रतिवादी से जिरह पूरी करने का अवसर दिया गया.

रूपा सोनी बनाम कमल नारायण सोनी (2023) 16 एससीसी 715 के मामले में अपने हालिया फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत ‘cruelty’ शब्द का कोई निश्चित अर्थ नहीं है और न्यायालय को इसे उदारतापूर्वक और प्रासंगिक रूप से लागू करने का व्यापक विवेकाधिकार दिया गया है. एक मामले में जो cruelty है वह दूसरे में नहीं हो सकती है. इसे उपस्थित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति पर लागू किया जाना है.

पति से संबंध बनाने से इंकार करना भी है cruelty

कोर्ट ने माना कि पक्षों की सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से अपीलकर्ता के आचरण को प्रतिवादी के खिलाफ ‘cruelty’ माना जा सकता है. प्रतिवादी उसके परिवार के व्यवसाय का एक हिस्सा है. अपीलकर्ता के अपने कर्मचारियों के साथ व्यवहार से संबंधित अखंडित साक्ष्य उसके लिए निश्चित रूप से पीड़ा का कारण बनेंगे.

इसी तरह, प्रतिवादी को उसके दोस्तों के सामने अपमानित करना भी उसके लिए ‘cruelty’ है. इसके अलावा, प्रतिवादी की विशेष रूप से सक्षम बहन के साथ उदासीन और उदासीन व्यवहार भी प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों को पीड़ा पहुंचाना निश्चित है.

शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना और विवाहेतर संबंधों के आरोप लगाना भी अपीलकर्ता द्वारा cruelty है और उस पहलू पर किसी भी जिरह के अभाव में इस तरह स्थापित होता है. यह बात कि विवाह बिना किसी सुधार की संभावना के टूट गया है, इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि दोनों पक्षों ने 2015 में ही आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर कर दी थी. Family Court ने मामले में मुद्दों का सही निर्धारण किया है. हमें विवादित निर्णय और आदेश में कोई कमी नहीं दिखती.

कोर्ट ने कहा एक दशक से अधिक समय से, दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं. विवाह अब और नहीं चलता है और Family Court द्वारा रिश्ते को कानूनी रूप से भी समाप्त और पुष्टि की जाती है. यह अपील इस न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा में केवल यथास्थिति जारी रखती है. पूर्वोक्त सभी कारणों से, हमारा विचार है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश तर्कसंगत है और पारिवारिक न्यायालय द्वारा सही ढंग से आँके गए साक्ष्यों पर आधारित है. आक्षेपित निर्णय और आदेश में कोई कमी नहीं है.

केस: अंतरिम आवेदन संख्या 3259/2020 श्रीमती प्रिया आशीष बोडस बनाम आशीष राजीव बोडास

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