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Rape-Murder के आरोपी को capital punishment रद, 25 साल जेल में रहेगा

चचेरा भाई है आरोपित, इलाहाबाद HC ने सजा में किया संशोधन

Rape-Murder के आरोपी को capital punishment रद, 25 साल जेल में रहेगा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग चचेरी बहन के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी युवक को सजा ए मौत (capital punishment) से राहत दे दी है. जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की बेंच ने लोअर कोर्ट के दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखा. कहा कि मामले में साबित परिस्थितियां स्पष्ट रूप से आरोपी के अपराध की ओर इशारा करती हैं और उसे धारा 376 एबी और 302 आईपीसी के साथ-साथ धारा 5/6 पोक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के लिए सही ढंग से दोषी ठहराया गया था. कोर्ट ने की मृत्युदंड (capital punishment) की सजा को कम से कम 25 साल की सजा में बिना किसी छूट या छूट के आजीवन कारावास में बदल दिया.

कोर्ट ने यह कहते हुए सजा में संशोधन (capital punishment) किया कि अपराध जघन्य था, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि पीड़िता की मृत्यु के लिए उसके साथ क्रूरता की गई थी. कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि अभियुक्त का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था और यह नहीं कहा जा सकता कि वह सुधारने योग्य नहीं है या समाज के लिए खतरा है.

उसका सुधार या पुनर्वास नहीं किया जा सकता. अपीलकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट और न्यायमित्र विनय सरन, अधिवक्ता प्रदीप कुमार मिश्रा और न्यायमित्र बीना मिश्रा और राज्य की ओर से एजीए एएन मुल्ला, एजीए अरुण कुमार पांडे और एजीए एसएस तिवारी ने पक्ष रखा.

Rape-Murder के आरोपी को capital punishment रद, 25 साल जेल में रहेगा

यह प्रकरण सिरसागंज जनपद फिरोजाबाद में सामने आया था. इसमें बंटू उर्फ शिवशंकर को आरोपित बनाया गया था. अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, फिरोजाबाद ने 01.12.2020 को इस न्यायालय में धारा 366 के अंतर्गत अपीलकर्ता बंटू उर्फ शिव शंकर को पीएसटी संख्या 1642/2019 में दी गई मृत्युदंड (capital punishment) की पुष्टि के लिए एक संदर्भ प्रस्तुत किया था. दोषी द्वारा जेल अपील (capital punishment) भी कैपिटल केस संख्या 01/2021 के रूप में दायर की गई है.

यह संदर्भ और अपील पीएसटी संख्या 1642/2019 में ट्रायल कोर्ट के दिनांक 01.12.2020 के फैसले से उत्पन्न हुआ था. मामले में दर्ज एफआईआर के अनुसार, 17 मार्च, 2019 को 8 वर्षीय पीड़िता अपने पड़ोस में गई थी. इसके बाद वह लापता हो गई. पीड़िता की मां को उसके ग्रामीणों ने सूचित किया कि उन्होंने उसकी बेटी को आरोपी के साथ देखा था. अगली सुबह, लड़की का शव गेहूं के खेत में मिला.

प्रथम दृष्टया गला घोंटने के निशान थे. एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और हत्या की थी. मामले में पेश किए गए सबूतों के आधार पर, दिसंबर 2020 में ट्रायल कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह एक भयावह घटना थी जिसमें 8 साल की एक नाबालिग बच्ची को आरोपी, जो उसका रिश्तेदार है, बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया था.

पाक्सो कोर्ट ने उसे पीड़िता के साथ बलात्कार करने और बाद में उसका मुंह बंद करके उसकी हत्या करने का दोषी पाया और उसे मौत की सजा (capital punishment) सुनाई. आरोपी की दोषसिद्धि (capital punishment) के खिलाफ तर्क देते हुए, अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि जांच दोषपूर्ण और दूषित थी. डीएनए जांच के लिए शव से लिए गए नमूने कभी फोरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजे गए.

यह भी तर्क दिया गया कि जब आरोपी को गिरफ्तार किया गया था तब कोई मेडिकल जांच नहीं की गई थी और डीएनए जांच के लिए उसके शरीर से कोई नमूना नहीं लिया गया था. राज्य के वकील ने तर्क दिया कि चूँकि पीड़िता को अंतिम बार अभियुक्त के साथ देखा गया था, इसलिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अभियुक्त यह स्पष्ट करने के लिए बाध्य था कि उसके बाद पीड़िता के साथ क्या हुआ, जो वह करने में विफल रहा और इस प्रकार, यह दोषसिद्धि (capital punishment) का एक उचित मामला था.

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हाईकोर्ट ने पक्षों द्वारा की गई दलीलों के साथ निचली अदालत के फैसले को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित परिस्थितियों को अभियुक्त के विरुद्ध पाया:

अंतिम बार देखे जाने के चारों गवाह बनावटी नहीं, बल्कि स्वाभाविक थे. एफआईआर दर्ज होने के अगले दिन जाँच अधिकारी ने उनसे पूछताछ की, जिन्होंने स्पष्ट रूप से गवाही दी कि उन्होंने पीड़िता को अभियुक्त के साथ देखा था. पीड़िता की माँ द्वारा दिए गए उसके पहनावे का विवरण पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसके शरीर से बरामद किए गए विवरणों से मेल खाता था:-

Rape-Murder के आरोपी को capital punishment रद, 25 साल जेल में रहेगा

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पीड़िता के गुप्तांग पर कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं पाई गई, फिर भी रिपोर्ट में कहा गया कि उसके गुप्तांगों से खून बह रहा था और उसके कपड़े खून से सने हुए थे

अभियुक्त ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान में स्वीकार किया कि उसने पीड़िता को तंबाकू लाने के लिए 10 रुपये का नोट दिया था और उसके बाद उसका पीछा किया और उसे अपने साथ एकांत स्थान पर ले गया

न्यायालय ने कहा कि चूँकि वह साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अपने दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहा, इसलिए निचली अदालत के निष्कर्षों में कोई तथ्यात्मक या कानूनी त्रुटि नहीं थी और अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी और 302 के तहत दोषी (capital punishment) ठहराया गया.

“हमें पीड़िता की कम उम्र, उसकी असहाय स्थिति, पीड़िता का अभियुक्त के साथ रिश्ता, जिसके कारण उसने उस पर भरोसा किया था, जैसी गंभीर परिस्थितियाँ मिलती हैं, जब वह उसे अपने साथ ले गया, बच्ची के साथ बलात्कार का जघन्य अपराध किया और बाद में पीड़िता का मुँह दबाकर, गला घोंटकर उसकी हत्या कर. अपराध मुख्य रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है. अपराध जघन्य और शैतानी प्रकृति का है. अपीलकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, वह वर्ष 2019 में हुए मामले की शुरुआत से ही जेल में है. यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता सुधारने योग्य नहीं है या वह समाज के लिए खतरा है और उसे सुधारा नहीं जा सकता”.
-इलाहाबाद हाईकोर्ट

वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आरोप के लिए सजा में छूट के बिना कम से कम 25 वर्ष का आजीवन कारावास भुगतना होगा. न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी के तहत आरोप के लिए दी गई मृत्युदंड (capital punishment) की सजा को भी 20 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया और निर्देश दिया कि सभी सजाएँ साथ-साथ चलेंगी. उपरोक्त संशोधन के साथ, दोषसिद्धि (capital punishment) के संबंध में अपील खारिज कर दी गई.

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