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‘Penalty order में सभी तथ्यों का उल्लेख न होने मात्र से आदेश गलत नहीं कह सकते’

न्याय प्रारूप का दास नहीं, बल्कि सत्य का सेवक है: HC’

किसी दंड आदेश (Penalty order) को केवल इस आधार पर अमान्य नहीं ठहराया जा सकता कि उसमें कारण बताओ नोटिस या याची द्वारा प्रस्तुत लिखित उत्तर का विवरण स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब तक कोई स्पष्ट अवैधानिकता न हो, दंड आदेश (Penalty order) को केवल इसलिए अवैध नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इसमें कारण बताओ नोटिस की सभी विशिष्ट बातें शामिल नहीं हैं. जस्टिस मंजू रानी चौहान की बेंच ने कहा कि बशर्ते आदेश में दोनों के सार पर विधिवत विचार और चर्चा की गई हो.

‘Penalty order में सभी तथ्यों का उल्लेख न होने मात्र से आदेश गलत नहीं कह सकते’

हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक कि रिकॉर्ड में कोई स्पष्ट प्रक्रियात्मक अनियमितता या स्पष्ट अवैधता स्पष्ट न हो, ऐसी छोटी-मोटी चूक आदेश (Penalty order) को कानून की नजर में अस्थिर नहीं बनाएगी. याचिकाकर्ता धर्वेन्द्र पाल सिंह के वकील ने दलील दी कि 2007 में याची को सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया था. 2013 में उसको प्रधानाध्यापक, जूनियर प्राथमिक विद्यालय, ब्लॉक- जैथरा, जिला- एटा के पद से सहायक अध्यापक के पद पर उच्च प्राथमिक विद्यालय, खंगरपुर, ब्लॉक- मरहेड़ा, जिला- एटा में स्थानांतरित कर दिया गया था.

27 अगस्त 2024 को संस्थान का निरीक्षण किया गया, जहां वे अनुपस्थित पाए गए. इसके बाद, 30 अगस्त 2024 को जांच लंबित रहने तक उन्हें निलंबित  कर दिया गया. निलंबन आदेश के विरुद्ध  याचिका दायर की गई. हालांकि, निलंबन आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया, फिर भी न्यायालय ने निर्देश दिया कि जांच 3 महीने में पूरी की जाए.

इस बीच 04 नवंबर 2024 का आरोप पत्र 25 नवंबर 2024 को न्यायालय में तामील किया गया और उसका उत्तर 26 नवंबर 2024 को जांच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया. 19 नवंबर 2024 को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खंड शिक्षा अधिकारी/जाँच अधिकारी को 15 दिनों के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया. जाँच अधिकारी ने याची को एक पत्र जारी कर 2 दिनों के भीतर उत्तर प्रस्तुत करने को कहा. जब याची ने समय-सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया, तो अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया.

जांच अधिकारी द्वारा दिनांक 28 दिसंबर 2024 को एक पक्षीय जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जो याची को उपलब्ध नहीं कराई गई. बुलाए जाने पर याची जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और जाँच रिपोर्ट की एक प्रति माँगी, जो उन्हें उपलब्ध नहीं कराई गई. जब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने जाँच अधिकारी से याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई आपत्ति पर जाँच करने को कहा, तो उन्होंने कहा कि उस पर पहले ही विचार किया जा चुका है.

इसके बाद, एक आदेश पारित किया गया जिसके तहत याची की एक वेतन वृद्धि (Penalty order) रोक दी गई और उसे उच्च प्राथमिक विद्यालय, कांगरपुर, एटा से संयुक्त संस्था, नावर, जिला एटा में स्थानांतरित कर दिया गया. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें यह माना गया था कि अनुशासनात्मक कार्रवाई को केवल इसलिए अमान्य नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए दंड (Penalty order) के क्रम में कारण बताओ नोटिस का पुन: उल्लेख नहीं किया गया है. कोर्ट ने इस स्थापित कानून का भी हवाला दिया कि मामूली प्रक्रियागत चूक के कारण अनुशासनात्मक कार्यवाही (Penalty order) अमान्य नहीं मानी जा सकती.

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हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया न्याय के सार द्वारा निर्देशित होती है. न्यायालय ने कहा कि आदेश में मूल कानूनी और तथ्यात्मक विवादों को संबोधित किया जाना चाहिए और न्यायसंगत समाधान प्रदान करने के लिए कानून का प्रयोग किया जाना चाहिए. चूंकि विवादित आदेश (Penalty order) व्यापक था और सभी मुद्दों पर विचार किया गया था तथा कानून का उचित सावधानी और तत्परता से प्रयोग किया गया था, इसलिए न्यायालय ने इसे रद्द नहीं किया. न्यायालय ने माना कि याची ने यह नहीं  कहा कि दण्ड आदेश (Penalty order) में प्रतिवादी द्वारा की गई चूक के कारण न्याय में चूक हुई है.

न्यायालयों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे न्याय को दरकिनार करते हुए प्रारूप में तकनीकी सटीकता प्रदर्शित करें. ऐसी परिस्थितियों में पर्याप्त अनुपालन का सिद्धांत पूरी शक्ति से लागू होता है. कोर्ट ने कहा कि “न्याय प्रारूप का दास नहीं, बल्कि सत्य का सेवक है .” कोर्ट ने इसी के साथ याचिका खारिज कर दी.

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