Mob lynching (117 (4) BNS) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला केंद्र और राज्य पर बाध्यकारी
HC ने कहा, mob lynching की हर घटना अलग, PIL उचित नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों को mob lynching केस में तहसीन पूनावाला केस में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया है और कहा कि हर घटना अलग है, जनहित याचिका में उठाना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि mob lynching पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार के लिए भी बाध्यकारी हैं. कोर्ट ने कहा इस याचिका की मांग (mob lynching) वहीं है जो सुप्रीम कोर्ट के जारी दिशा-निर्देश है. हर मामले में स्थिति एक जैसी नहीं होती. अलग अलग परिस्थितियों के चलते इसे किसी एक जनहित याचिका में सुना नहीं जा सकता.
जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की बेंच ने जमीयत उलमा ए हिंद (अरशद मदनी) की mob lynching पर आपराधिक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए यह आदेश दिया है. जमीयत उलमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश राज्य और पुलिस महानिदेशक को अलीगढ़ के हरदुआगंज पुलिस स्टेशन क्षेत्र में 24 मई, 2025 को हुई mob lynching की घटना की जांच के लिए एसआईटी गठित करने या स्वतंत्र व निष्पक्ष एजेंसी से विवेचना कराने का समादेश जारी करने की मांग की गई थी.

एफआईआर में आरोप है कि प्रतिबंधित मांस ले जाने के संदेह में मुस्लिम समुदाय के चार लोगों को भीड़ ने बेरहमी से पीटा (mob lynching) था और जिसकी पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. याचिका में पीड़ितों के लिए तत्काल वित्तीय सहायता, भीड़ हिंसा से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति, पिछले पांच वर्षों में हुई भीड़ हिंसा (mob lynching) के मामलों की स्थिति रिपोर्ट और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की भी मांग की गई थी.
याची अधिवक्ता सैयद अली मुर्तजा ने दलील दी कि राज्य सरकारें mob lynching पर तहसीन एस. पूनावाला मामले के निर्देशों का पालन करने में विफल रही हैं, जिससे घृणास्पद भाषणों और गोवंश से संबंधित हिंसा में वृद्धि हुई है. अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बताया कि तहसीन एस. पूनावाला मामले के दिशा-निर्देशों में प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त करना, संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस गश्त, भीड़ हिंसा (mob lynching) के गंभीर परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता फैलाना और दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना शामिल है, जो सरकार पर बाध्यकारी हैं. सरकार ने जरूरी कदम उठाए हैं. नियमानुसार जांच कार्यवाही चल रही है.

संभल जामा मस्जिद के सदर जफर अली की जमानत मंजूर
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल जामा मस्जिद के सदर जफर अली को राहत देते हुए वहां के हिंसा और बवाल मामले में उनकी जमानत अर्जी मंजूर कर ली है. यह आदेश जस्टिस समीर जैन ने जफर अली जमानत अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया. नवंबर 2024 में संभल जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा और बवाल हुआ था. जिसके बाद कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. इस मामले में आरोपी जफर अली को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था.
अतीक अहमद के रिश्तेदारों की गिरफ्तारी पर रोक
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अतीक अहमद के रिश्तेदारों इमरान जई, जीशान उर्फ जानू और जाहिदा बेगम को राहत देते हुए गैंगस्टर के तहत कुर्क जमीन बेचने के मामले में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अनिल कुमार दशम की बेंच ने तीनों की याचिका पर उनके अधिवक्ता इमरान उल्लाह व विनीत विक्रम और सरकारी वकील को सुनकर दिया है. कोर्ट ने याचिका पर अगली सुनवाई के लिए आठ अगस्त की तारीख लगाई है.
अतीक अहमद के रिश्तेदारों इमरान जई, जीशान उर्फ जानू और जाहिदा बेगम के खिलाफ प्रयागराज के करैली थाने में गत 25 जून को एफआईआर दर्ज हुई थी. इस मामले में इमरान जई, जीशान उर्फ जानू और जाहिदा बेगम पर गैंगस्टर एक्ट में कुर्क जमीन को बेच देने का आरोप है.
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