Justice यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित, 14 मार्च को खुला था मामला
Justice वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट इंटरनल जांच कमेटी की रिपोर्ट को दी है चुनौती

इलाहाबाद हाईकोर्ट के Justice यशवंत वर्मा की तरफ से दाखिल याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी. दो जजों की बेंच ने सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. Justice यशवंत वर्मा की तरफ से दाखिल की गयी याचिका में 14 मार्च को उनके दिल्ली स्थित आवास के बाहरी हिस्से में बने कमरे में लगी आग बुझाये जाने के बाद भारी संख्या में कैश बरामद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की तरफ से प्रकरण की जांच के लिए गठित कमेटी की तरफ से पेश की गयी रिपोर्ट को चुनौती दी गयी है.
सुप्रीम कोर्ट के Justice दीपांकर दत्ता और Justice एजी मसीह की बेंच ने इस प्रकरण की सुनवाई की. इस मामले में एक राउंड की सुनवाई 28 जुलाई को हो चुकी है. 30 जुलाई को सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कोर्ट के समक्ष तैयार किये गये संवैधानिक मुद्दों पर बिंदु तैयार करके पेश किया. कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि इंटरनल जांच कमेटी का Justice वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश करना असंवैधानिक है.

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा से उनकी उस याचिका को लेकर सवाल किए, जिसमें उन्होंने घर से कैश बरामदगी मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी. कोर्ट ने Justice से सवाल किया कि इस प्रक्रिया में भाग लेने के बाद अब वह इस पर सवाल कैसे उठा सकते हैं. इस पर सिब्बल ने कहा कि Justice वर्मा ने पहले संपर्क नहीं किया क्योंकि टेप जारी हो चुका था और उनकी छवि पहले ही खराब हो चुकी थी.
कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें पेश की जबकि वहीं वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने मामले पर सुनवाई टालने की मांग करते हुए कहा कि इस पर अगले हफ्ते सुनवाई की जानी चाहिए. लेकिन कोर्ट ने सुनवाई जारी रखी.
बता दें कि इंटरनल जांच कमेटी ने Justice वर्मा के दिल्ली स्थित आवास से कैश बरामदगी मामले में उन्हें कदाचार का दोषी बताया था. यह घटना 14 मार्च को सामने आयी थी. तब Justice वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस थे. इस प्रकरण के बाद उन्हें फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया है लेकिन उन्हें कोर्ट का काम नहीं सौंपा गया है.
“वह जांच समिति के सामने क्यों पेश हुए? आपने जांच पूरी होने और रिपोर्ट जारी होने का इंतजार क्यों किया? क्या आप कोर्ट इसलिए आए थे कि वीडियो हटा दिया जाए? क्या आप जांच समिति के समक्ष यह सोचकर आए थे कि फैसला आपके पक्ष में आ सकता है?”
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी. मसीह की बेंच

इस सवाल पर सिब्बल ने कहा कि जांच समिति के सामने पेश होना उनके (Justice वर्मा) खिलाफ नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा, वह इसलिए उपस्थित हुए, क्योंकि उन्हें लगा कि समिति यह पता लगाएगी कि कैश किसका है. सुप्रीम कोर्ट Justice वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार देने का अनुरोध किया गया है क्योंकि इस रिपोर्ट में उन्हें कदाचार का दोषी पाया गया है.
बेंच ने यह भी कहा, यह याचिका ऐसे दायर नहीं की जानी चाहिए थी. आप देखें कि यहां पक्षकार रजिस्ट्रार जनरल हैं न कि महासचिव. पहला पक्षकार सुप्रीम कोर्ट है, क्योंकि आपकी शिकायत जांच प्रक्रिया के खिलाफ है. हम वरिष्ठ वकील से यह अपेक्षा नहीं करते कि वह केस के टाइकल पर गौर करेंगे. Justice वर्मा ने तत्कालीन Chief Justice संजीव खन्ना की ओर से 8 मई को की गई उस सिफारिश को भी रद्द किए जाने का अनुरोध किया, जिसमें उन्होंने (CJI खन्ना) संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की बात कही थी.
पीठ ने यह भी जानना चाहा कि जाँच की वैधता या संसद की स्वतंत्र रूप से कार्य करने की शक्तियों को कैसे प्रभावित किया. Justice दत्ता ने व्यापक कार्यवाही पर वीडियो के प्रभाव पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की, ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था. Justice ने स्पष्ट किया कि यदि संसद किसी निष्कासन प्रस्ताव को स्वीकार करती है, तो वह स्वयं जाँच करेगी और न्यायपालिका या Chief Justice की सिफारिश से बाध्य नहीं है.
कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या आपको लगता है कि उच्च क्षमता वाले वे सदस्य, प्रारंभिक रिपोर्ट से प्रभावित होंगे…? Justice दत्ता ने इस ओर इशारा करते हुए पूछा कि संसद की प्रक्रिया आंतरिक व्यवस्था से स्वतंत्र रूप से कार्य करती है.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि लीक हुए वीडियो ने जनता की नजर में Justice की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है. उन्होंने दलील दी कि पैनल के गठन के समय सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई तस्वीरें और वीडियो, जाँच शुरू होने से पहले ही आरोपों को अनुचित विश्वसनीयता प्रदान करते हैं.