+91-9839333301

legalbulletin@legalbulletin.in

| Register

Complaint मामले में, समन जारी होने पर अग्रिम जमानत मान्य नहीं

Complaint मामले में, समन जारी होने पर अग्रिम जमानत मान्य नहीं
Arun Kumar Deshwal

Complaint के आधार पर दर्ज किये गये शिकायती मामले में समन जारी होने पर अग्रिम जमानत मान्य नहीं है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि इस तरह के Complaint केस में पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी करेगी, इसकी संभावना कम है. इसलिए अग्रिम जमानत मंजूर किये जाने का कोई आधार नहीं बनता है. यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि आवेदक 15 दिनों की अवधि के भीतर निचली अदालत के समक्ष नियमित जमानत आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र है. यदि ऐसा आवेदन दायर किया जाता है, तो निचली अदालत कानून के अनुसार उस पर विचार करेगी.

जस्टिस देशवाल की बेंच आशीष कुमार की तरफ से दाखिल अग्रिम जमानत याचिका पर विचार कर कर रही थी. अधिवक्ता अभिषेक त्रिवेदी ने आवेदक की तरफ से जबकि स्टेट काउंसिल ने विपक्षी पक्ष की तरफ से पक्ष रखा. अग्रिम जमानत आवेदन के मामले की सुनवाई पहले की तारीख पर हुई थी, तो एक आपत्ति उठाई गई थी कि यह बनाए रखने योग्य नहीं था क्योंकि यह केवल शिकायत मामले में समन जारी होने पर दायर किया गया था.

आवेदक के वकील ने इस प्रारंभिक आपत्ति का कड़ा विरोध किया. कोर्ट ने आवेदक को अंतरिम जमानत पर रिहा करने के बाद, इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रखा कि क्या शिकायत (Complent) मामले में समन जारी होने पर अग्रिम जमानत बनाए रखने योग्य है, जिसमें आरोप एक गैर-जमानती अपराध के संबंध में है.

“गैर-जमानती अपराध के आरोप से जुड़े एक शिकायत (Complaint) मामले में, समन जारी होने पर अग्रिम जमानत मान्य नहीं है, क्योंकि पुलिस द्वारा बिना वारंट के गिरफ्तारी की कोई आशंका नहीं है.”
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल

Complaint मामले में, समन जारी होने पर अग्रिम जमानत मान्य नहीं

बेंच के समक्ष विचारणीय मुद्दा यह था कि क्या किसी शिकायत (Complaint) मामले की कार्यवाही के दौरान अग्रिम जमानत मंजूरी की जा सकती है. इस पर तर्क देते हुए बेंच ने स्पष्ट किया कि धारा 482 बीएनएसएस में प्रयुक्त शब्द गिरफ्तारी को हिरासत शब्द के समान नहीं माना जा सकता. जिसे पुलिस गिरफ्तारी के बाद लेती है या अदालत किसी अभियुक्त के आत्मसमर्पण या उसके समक्ष पेश होने पर ले सकती है. भारतीय विधि आयोग की सिफारिश का हवाला देते हुए, जस्टिस देशवाल की बेंच ने कहा कि अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू करने का उद्देश्य पुलिस द्वारा मनमानी गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करना है.

बेंच ने कहा, “बीएनएसएस की धारा 482 (1) और 482 (3) को ज्वाइंट रूप से देखने पर स्पष्ट है कि पुलिस द्वारा बिना वारंट के गिरफ्तारी की आशंका होनी चाहिए. कोर्ट ने श्रीकांत उपाध्याय एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2024) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि ऐसे मामले में जिसमें गिरफ्तारी का वारंट या उद्घोषणा जारी की जाती है, आवेदक अग्रिम जमानत के असाधारण उपाय का सहारा लेने का हकदार नहीं है.

असाधारण परिस्थितियों में, अदालत गैर-जमानती वारंट या उद्घोषणा जारी होने पर भी अग्रिम जमानत दे सकती है. बेंच ने स्पष्ट किया कि यदि कोई अदालत किसी शिकायत (Complaint) मामले में समन या जमानती वारंट जारी करती है, तो यह नहीं माना जा सकता कि उस व्यक्ति को पुलिस या अभियोजन एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने की उचित आशंका है. भले ही शिकायत (Complaint) में गैर-जमानती अपराध करने का आरोप हो.

बेंच ने कानून के निम्नलिखित बिंदुओं को प्रतिपादित किया:

गैर-जमानती अपराध के आरोप से जुड़े शिकायत (Complaint) मामले में, सम्मन जारी होने पर अग्रिम जमानत बरकरार नहीं रहती है, क्योंकि बिना वारंट के पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की कोई आशंका नहीं होती है.

उपर्युक्त शिकायत मामले में जब जमानती वारंट जारी किया जाता है, हालांकि अभियुक्त को जमानती वारंट के अनुसरण में गिरफ्तारी का डर हो सकता है, लेकिन उसे इसे प्रदान करने की तत्परता पर जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा.

ऐसे मामलों (Complaint) में भी अग्रिम जमानत बरकरार नहीं रहती है क्योंकि गिरफ्तारी और नजरबंदी की कोई आशंका नहीं होती है. उपरोक्त शिकायत (Complaint) मामले में जारी गैर-जमानती वारंट या उद्घोषणा की स्थिति में अग्रिम जमानत आमतौर पर बरकरार नहीं रहती है.

श्रीकांत उपाध्याय (सुप्रा) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर, न्यायालय न्याय के हित में असाधारण परिस्थितियों में गिरफ्तारी पूर्व जमानत दे सकता है.

मामले के तथ्यों के आधार पर, पीठ ने पाया कि वारंट, चाहे जमानती हो या गैर-जमानती, जारी नहीं किया गया था. इसलिए, आवेदक के खिलाफ 23.08.2022 के आदेश द्वारा केवल समन जारी करना पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की आशंका के दायरे में नहीं आएगा.

Case :- CRIMINAL MISC. ANTICIPATORY BAIL APPLICATION

U/S 482 BNSS No. – 4464 of 2025

इसे भी पढ़ें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *