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फर्म Black List करने पर DM उन्नाव पर ₹50,000 और BSA पर 25 हजार जुर्माना लगा

किसी फर्म को अनिश्चित काल के लिए Black List में नहीं डाला जा सकता: SC

फर्म Black List करने पर DM उन्नाव पर ₹50,000 और BSA पर 25 हजार जुर्माना लगा

कानूनी स्थिति अच्छी तरह से स्थापित है कि किसी फर्म को Black List करने का आदेश बिना कारण बताओ नोटिस के पारित नहीं किया जा सकता और निश्चित रूप से अनिश्चित काल के लिए नहीं. इस कमेंट के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ बेंच के जस्टिस मनीष कुमार और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने जिला मजिस्ट्रेट उन्नाव पर 50,000 रुपये और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, उन्नाव पर 25,000 का जुर्माना लगाया है. इसका भुगतान दोनों अफसरों को आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने के एक माह के भीतर अदा करना होगा.

दो जजों की बेंच ​बेसिकली अंकित दीक्षित और अर्पित गुप्ता की 2 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. याचिका अर्पित गुप्ता और अंकित दीक्षित की तरफ से पेश की गयी थी. इसमें यूपी के अपर मुख्य/प्रधान सचिव, बेसिक शिक्षा विभाग, लखनऊ एवं तीन अन्य को पार्टी बनाया गया था. याचिकाकर्ता की तरफ से अमित जायसवाल और स्टेट की तरफ से सीएससी ने पक्ष रखा. चूँकि दोनों रिट याचिकाओं में समान तथ्य और मुद्दे शामिल हैं, इसलिए दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की सहमति से, इन पर एक ही निर्णय सुनाया गया. इन रिट याचिकाओं के माध्यम से, याचिकाकर्ताओं ने अपनी फर्म को काली सूची में डाले जाने के निर्णय को चुनौती दी थी.

पिछली सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए सभी अधिकारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 144 में निहित संवैधानिक जनादेश के मद्देनजर बाध्य हैं. प्रतिदिन हमारे पास फर्म को निषेध करने या काली सूची (Black List) में डालने के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाएँ आती हैं. यह सही समय है कि हम अधिकारियों को ऐसी चूक के लिए जवाबदेह बनाएँ. क्योंकि अंततः, याचिकाकर्ता को इस न्यायालय में दौड़ने के लिए मजबूर किया गया है.

जिसमें अन्य कठिनाइयों के अलावा आवश्यक रूप से वित्तीय और व्यय भी शामिल होंगे और इससे न्यायालय का समय भी बर्बाद होता है. जिला मजिस्ट्रेट, उन्नाव और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, उन्नाव, 10 दिनों के भीतर अपने-अपने हलफनामे दाखिल कर विवादित कार्रवाई को उचित ठहराएँ और यह भी बताएँ कि यदि यह पाया जाता है कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून के विरुद्ध है, जिसका पालन करने के लिए वे बाध्य हैं, तो उन पर कम से कम 50,000 रुपये का भारी जुर्माना क्यों न लगाया जाए?

फर्म Black List करने पर DM उन्नाव पर ₹50,000 और BSA पर 25 हजार जुर्माना लगा

सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि इस संबंध में कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूरेशियन इक्विपमेंट एंड केमिकल्स बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में समझाया गया है. इसके कई और केस रिफरेंस भी हैं. कहा कि, जाहिर है, काली सूची (Black List)  में डालने का आदेश हमारे ऊपर उद्धृत आदेश में उल्लिखित निर्णयों के विपरीत है और स्थायी नहीं है, क्योंकि पहला, काली सूची (Black List) में डालने की कार्रवाई का प्रस्ताव रखने वाले याचिकाकर्ताओं को कोई कारण बताओ नोटिस नहीं दिया गया था, और दूसरा काली सूची (Black List)  में डालने का आदेश अनिश्चित काल के लिए पारित नहीं किया जा सकता.

जैसा कि पहले भी देखा गया है, हमारे पास हर रोज़ ऐसी याचिकाओं की बाढ़ आ जाती है जहाँ बिना कोई कारण बताओ नोटिस जारी किए या अनिश्चित काल के लिए काली सूची (Black List)  में डालने के आदेश पारित किए जा रहे हैं. आखिर, अदालतें काली सूची (Black List) में डालने की प्रक्रिया और कानून के बारे में कितनी बार अपना फैसला सुनाएँगी?

अधिकारियों को इसकी जानकारी होनी चाहिए, खासकर जब उनके पास उच्च न्यायालय से लेकर जिला स्तर तक वकीलों की एक पूरी फौज हो. ऐसे मामलों में, अगर उन्हें कानून की जानकारी नहीं है, तो उन्हें किसी भी फर्म के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले कानूनी सलाह लेनी चाहिए क्योंकि काली सूची (Black List) में डाली गई फर्म/कंपनी के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

इस मामले में उन्नाव के जिला मजिस्ट्रेट गौरांग राठी की तरफ से कोर्ट के आदेश के बाद हलफनामा दायर किया गया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ता की फर्म को इस आधार पर तकनीकी रूप से अयोग्य घोषित किया गया था कि “फर्म द्वारा जमा की गई अग्रिम राशि का संबंधित बैंक द्वारा सत्यापन नहीं किया गया है”.

इस संबंध में एक सूचना GeM पोर्टल पर उपलब्ध व्यवस्था के अनुसार, याचिकाकर्ता को पंजीकृत मोबाइल नंबर और ईमेल पते पर भेज दी गई थी, साथ ही उक्त अयोग्यता का कारण या स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए 48 घंटे का समय भी दिया गया था. जिला मजिस्ट्रेट ने उपरोक्त आधार पर अपने हलफनामे में कहा है कि इस प्रकार, यह कहना गलत है कि याचिकाकर्ता फर्म को कोई नोटिस नहीं दिया गया था.

यह कहा गया है कि निविदा की शर्तों में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी विक्रेता को इन अतिरिक्त धाराओं के विरुद्ध या इस बोली के किसी भी पहलू पर कोई आपत्ति/शिकायत है, तो वे GeM पर बोली प्रकाशन के चार दिनों के भीतर विक्रेता के रूप में लॉग इन करने के बाद विक्रेता डैशबोर्ड में बोली विवरण फील्ड में दिए गए प्रतिनिधित्व विंडो का उपयोग करके अपना प्रतिनिधित्व दर्ज करा सकते हैं. संबंधित फर्म ने उक्त नोटिस के संबंध में कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए संबंधित फर्मों के विरुद्ध यह कार्रवाई की गई.

इसके बाद उन्होंने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के क्रय नीति प्रभाग द्वारा जारी दिनांक 02.11.2021 के एक परिपत्र का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि “यदि यह निर्धारित किया जाता है कि बोलीदाता ने GFRs 2017 के नियम के अनुसार सत्यनिष्ठा संहिता का उल्लंघन किया है, तो फर्मों को प्रतिबंधित (Black List) कर दिया जाएगा.” इस संबंध में, याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना था कि GeM ने याचिकाकर्ताओं को प्रतिबंधित नहीं किया है.

जब जिला मजिस्ट्रेट के संक्षिप्त जवाबी हलफनामे के पैरा 11 में उल्लिखित 48 घंटे के भीतर कोई जवाब नहीं मिला, तो सात फर्मों को काली सूची (Black List) में डालने का निर्देश दिया गया और बीएसए को 21.03.2025 के पत्र द्वारा काली सूची में डालने के निर्णय के बारे में सूचित किया गया. इसके बाद भी, संबंधित फर्मों द्वारा कोई जवाब नहीं भेजा गया और ऐसी परिस्थितियों में, 23.06.2025 का विवादित आदेश पारित किया गया.

कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट ने उन निर्णयों का उल्लेख भी नहीं किया है जिनका हमने अपने आदेश में उल्लेख किया है. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या किए गए कानून के एक प्रश्न पर जिला मजिस्ट्रेट की प्रतिक्रिया है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 144 के तहत सभी अधिकारियों के लिए बाध्यकारी है.

ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने हमारे दिनांक 07.07.2025 के आदेश में उल्लिखित उक्त निर्णयों को पढ़ने की भी जहमत नहीं उठाई है, अन्यथा वे वह स्पष्टीकरण नहीं देते जो उन्होंने हमारे सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून की आड़ में एक अनुचित कृत्य को उचित ठहराने का एक हठधर्मी प्रयास मात्र है.

उनके द्वारा उद्धृत प्रावधानों को काली सूची (Black List) में डालने की कार्रवाई का प्रस्ताव करने वाले याचिकाकर्ताओं को नोटिस दिए बिना, उन्हें जवाब देने का उचित अवसर दिए बिना और जिस आधार/सामग्री पर ऐसी कार्रवाई प्रस्तावित की गई थी, उसे जवाब देने और उस पर विचार करने का अवसर दिए बिना लागू नहीं किया जा सकता था.

“अभिसाक्षी ने माननीय न्यायालय या माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किसी भी आदेश का जानबूझकर उल्लंघन नहीं किया है. यदि कोई उल्लंघन होता है तो वह केवल असावधानी के कारण होता है, यह न तो जानबूझकर होता है और न ही जानबूझकर. इसलिए, अभिसाक्षी द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए. वह यह भी स्वीकार नहीं करता है कि उसने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून के मद्देनजर गलती की है, लेकिन एक सशर्त स्पष्टीकरण प्रदान करता है. यह असावधानी का मामला नहीं है, बल्कि इस विषय पर कानून के प्रति दिमाग के आवेदन की पूर्ण कमी का मामला है.”
कोर्ट ने कहा

“ब्लैक लिस्टिंग (Black List)  की अवधि के संबंध में यह प्रस्तुत किया जाता है कि सामान्य तौर पर GeM पोर्टल पर ब्लैक लिस्टिंग केवल एक वर्ष के लिए की जाती है और यह केवल सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन के बाद ही अधिकतम 2 वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है, अनिश्चित काल के लिए नहीं. इस प्रकार, याचिकाकर्ता का यह तर्क कि फर्म को अनिश्चित काल के लिए ब्लैक लिस्ट (Black List) किया गया है, भी गलत है. इस मामले में, फर्म को सामान्यतः केवल एक वर्ष के लिए Black List किया गया है.” ब्लैक लिस्ट करने की अवधि का उल्लेख आदेश में किया जाना था, जो नहीं किया गया है.
हलफनामा

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्टीकरण एक दिखावा है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. उन्होंने प्रति-शपथपत्र में कहीं भी यह नहीं कहा है कि याचिकाकर्ताओं को ब्लैक लिस्ट (Black List) करने की कार्रवाई का प्रस्ताव देते हुए कोई कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, भले ही यह GeM निविदा प्रक्रिया की अतिरिक्त नियम व शर्त संख्या 29 के अंतर्गत अनुमेय हो.

कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी न केवल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून की अवहेलना करने पर अड़े हुए हैं, बल्कि उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय इसे अस्वीकार्य आधारों पर उचित ठहराने का भी प्रयास किया है. यही कारण है कि हमने कम से कम 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव रखा था. हम जिला मजिस्ट्रेट के प्रति-शपथपत्र में दिए गए कारणों को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं.

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, उन्नाव (विपरीत पक्ष जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, उन्नाव (विपरीत पक्ष क्रमांक 3), जिन्होंने काली सूची (Black List) में डालने का परिणामी आदेश पारित किया है, ने भी दिनांक 07.07.2025 के आदेश पर अपना जवाब दाखिल किया है जिसमें उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट के रुख को दोहराया है.

पूर्वोक्त कारणों से, हम न केवल विरोधी पक्षों को स्वतंत्रता के साथ Black List पर आपत्तिजनक आदेशों को रद्द करते हैं, बल्कि ऊपर की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए कानून के अनुसार याचिकाकर्ताओं के खिलाफ नए सिरे से आगे बढ़ने के लिए, बल्कि याचिकाकर्ताओं को देय प्रत्येक मामले में इन दोनों रिट याचिकाओं को उपरोक्त शर्तों के साथ स्वीकार किया जाता है.
हाईकोर्ट

WRIT – C No. – 6285 of 2025 :  M/S Cropscare Infotech Pvt. Ltd. Lucknow Thru. Its Director Ankit Dixit
WRIT – C No. – 6589 of 2025 Petitioner :- M/S Aero Infomedia Pvt. Ltd. Thru. Director Arpit Gupta

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