ECI ने नहीं बताया बिहार की ड्राफ्ट सूची से 65 लाख मतदाता क्यों हटाये गये
एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में रखा पक्ष, शनिवार तक जवाब दाखिल करने का निर्देश

भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) के पास बिहार में मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाने के कारणों का डेटा होने के बावजूद, उसने 1 अगस्त को ड्राफ्ट सूची के प्रकाशन से पहले इन कारणों को बताने वाले कॉलम को हटा दिया. यह तथ्य एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किया तो कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) से शनिवार तक जवाब दाखिल करने को कहा. कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या प्रकाशन से पहले ड्राफ्ट सूची राजनीतिक दलों के साथ साझा की गई थी? यह भी स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि किन दलों को ये सूचियाँ दी गई थीं?
एडीआर की तरफ से दाखिल किये गये तथ्यों के अनुसार भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने ड्राफ्ट सूची के प्रकाशन से पहले कुछ राजनीतिक दलों के साथ एक मतदाता सूची शेयर की थी. इसमें नाम हटाने के कारण के बारे में जानकारी देने वाला कालम था. लेकिन, 1 अगस्त को मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद प्रसारित सूची से “असंग्रहणीय कारण” शीर्षक वाला कॉलम ही गायब कर दिया गया.
“चुनाव आयोग (ECI) के पास ऐसी सूची मौजूद है, जैसा कि याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त एक निर्वाचन क्षेत्र की नमूना सूची (जो कुछ राजनीतिक दलों को 20.07.2025 को उपलब्ध कराई गई थी) से स्पष्ट है. इस सूची में “अप्राप्ति योग्य कारण” शीर्षक वाले कॉलम में गणना फॉर्म न भरने का कारण दिया गया था. हालाँकि, मसौदा नामावली के प्रकाशन के बाद चुनाव आयोग द्वारा साझा की गई हटाए गए नामों की सूची में, उक्त कॉलम को ही हटा दिया गया है.”
एडीआर ने तर्क दिया कि वर्तमान मतदाता सूची प्रारूप ने पिछली प्रथाओं को समाप्त कर दिया है, जहाँ सभी हटाए गए मतदाताओं के नाम बूथ-स्तरीय सूची में प्रकाशित किए जाते थे. अंतिम पृष्ठ पर जोड़े गए और हटाए गए नामों का सारांश दिया जाता था. आवेदन में कहा गया है कि इस चूक से जनता, राजनीतिक दलों और याचिकाकर्ताओं के लिए यह सत्यापित करना असंभव हो जाता है कि हटाए गए नाम वैध थे या नहीं.
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इसमें यह भी बताया गया है कि जिन मतदाताओं के नाम मसौदा सूची से गायब हैं, वे मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए के तहत नोटिस या व्यक्तिगत सुनवाई जैसे कानूनी उपायों के हकदार नहीं हैं. इसलिए उनका मत डालने का अधिकार छिन जाने का खतरा पैदा हो गया है.

सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण की सुनवाई जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच सुनवाई के लिए अधिकृत है. बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एमबी लोकुर ने कहा कि 65 लाख मतदाताओं की सूची में प्रत्येक नाम के सामने से नाम हटाने का कारण भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा छिपाना याचिकाकर्ताओं सहित आम जनता को यह पता लगाने से रोकने का प्रयास प्रतीत होता है कि जिन मतदाताओं के नाम उक्त सूची में हैं, वे वास्तव में मृत हैं या स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं.
चुनाव आयोग (ECI) के अनुसार, जिनके नाम मसौदा रोल स्टैंड में नहीं हैं, उन्हें मतदाता पंजीकरण नियमों की धारा 21ए के तहत उपलब्ध नियमित कानूनी उपायों (नोटिस, व्यक्तिगत सुनवाई और अपील) का अधिकार नहीं है. उनके पास दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया में भाग लेने का विकल्प नहीं है और इस प्रकार उन्हें मताधिकार से वंचित होने का सबसे बड़ा खतरा है.
एडीआर का आवेदन इलेक्शन कमीशन आफ इंडिया (ECI) द्वारा जारी 25 जुलाई के प्रेस नोट का हवाला देता है जिसमें कहा गया था कि लगभग 22 लाख मतदाता मृत पाए गए, 7 लाख एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत थे और 35 लाख या तो स्थायी रूप से पलायन कर गए थे या उनका पता नहीं चल पाया था. इससे पता चलता है कि इलेक्शन कमीशन आफ इंडिया (ECI) के पास बारीक डेटा है जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया है.

आवेदन में आगे उन मतदाताओं की बूथ-वार सूची प्रकाशित करने की मांग की गई है, जिनके गणना फॉर्म को बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा “अनुशंसित नहीं” के रूप में चिह्नित किया गया था जो ईसीआई के 24 जून के निर्देश के तहत आवश्यक है.
एडीआर ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह चुनाव आयोग (ECI) को हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की पूर्ण और अंतिम विधानसभा क्षेत्रवार और बूथवार सूची, हटाने के कारणों सहित और 1 अगस्त की मसौदा सूची में शामिल उन मतदाताओं की बूथवार सूची प्रकाशित करने का निर्देश दे, जिनके गणना प्रपत्रों को “बीएलओ द्वारा अनुशंसित नहीं” चिह्नित किया गया है. बता दें कि बिहार एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 अगस्त को सुनवाई होनी है.