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हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal case सूची से हटाने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जस्टिस प्रशांत को किसी सीनियर जज के साथ बेंच में बैठाया जाय

हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal case सूची से हटाने का आदेश

धन की वसूली के लिए आपराधिक मुकदमा (Criminal case) चलाने की अनुमति देने का सुझाव इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को भारी पड़ गया है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने हाई कोर्ट के जज की आपराधिक कानून (Criminal case) की समझ पर कड़ी टिप्पणी की. बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को आदेश दिया है कि वह जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक केस (Criminal case) सूची से हटाकर उन्हें दो जजों की बेंच में किसी सीनियर जज के साथ सुनवाई करने का आदेश दें.

इस संबंध में चीफ जस्टिस को निर्देश भी जारी कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंगलवार को पूरे दिन चर्चा होती रही.

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें मेसर्स शिखर केमिकल्स (याचिकाकर्ता) द्वारा एक वाणिज्यिक लेनदेन से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही (Criminal case) को रद्द करने की मांग की थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को याचिका में चुनौती दी गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार की उस टिप्पणी के लिए कड़ी आलोचना की. जस्टिस प्रशांत कुमार पांच मई को एक दीवानी मुकदमे (मेसर्स शिखर केमिकल्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) में सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तथ्यों को परखने के बाद आदेश दिया:

“हम उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वे इस मामले को किसी अन्य न्यायाधीश को सौंप दें. हम मुख्य न्यायाधीश से यह भी अनुरोध करते हैं कि वे संबंधित न्यायाधीश के वर्तमान निर्णय को तुरंत वापस लें.”

हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal case सूची से हटाने का आदेश

इस मामले में प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता-फर्म को ₹52,34,385 मूल्य का धागा आपूर्ति किया था. जिसमें से ₹47,75,000 का भुगतान कथित तौर पर किया गया था. मजिस्ट्रेट के समक्ष एक शिकायत दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया था कि शेष राशि का भुगतान नहीं किया गया है. याचिकाकर्ता ने कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में रिट दाखिल की. याचिका में तर्क देते हुए कहा गया कि यह विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का था और इसे अनुचित रूप से आपराधिक रंग दिया गया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. 5 मई के अपने आदेश में जस्टिस प्रशांत कुमार ने कहा था कि शिकायतकर्ता को सिविल मुकदमा चलाने के लिए बाध्य करना बहुत अनुचित होगा क्योंकि ऐसे मुकदमों को समाप्त होने में वर्षों लग जाते हैं और इसलिए, आपराधिक मुकदमा (Criminal case) चलाना उचित है.

हमारी स्टोरी को वीडियो में देखें….

“अपोजिट पार्टी छोटी व्यावसायिक फर्म प्रतीत होती है और उसके लिए बकाया राशि ब्याज सहित एक बड़ी रकम है. यदि, सिविल यदि वह सिविल मुकदमा दायर करता है, तो सबसे पहले उसे उम्मीद की कोई किरण दिखने में वर्षों लगेंगे और दूसरी बात, उसे मुकदमा चलाने के लिए और अधिक धन लगाना होगा. यह ऐसा लगेगा जैसे अच्छा पैसा खराब पैसे के पीछे भाग रहा हो. यदि यह न्यायालय पक्षकारों के बीच सिविल विवाद के कारण मामले को सिविल न्यायालय में भेजने की अनुमति देता है, तो यह न्याय का उपहास होगा और वह मामले को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय बाधाओं से उभरने की स्थिति में भी नहीं होगा.”
जस्टिस प्रशांत कुमार, इलाहाबाद हाईकोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार्य बताते हुए हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को एक अन्य न्यायाधीश द्वारा नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा है कि जस्टिस कुमार अब से केवल एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ बेंच में ही बैठेंगे और उन्हें कोई भी आपराधिक निर्णय (Criminal case) नहीं सौंपा जाएगा, भले ही उन्हें एकल पीठ का मामला ही क्यों न सौंपा गया हो.

 “…हम इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वे इस मामले को उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को सौंप दें. वह जस्टिस प्रशांत कुमार से वर्तमान आपराधिक निर्णय (Criminal case)  तुरंत वापस ले लेंगे. उन्हें हाईकोर्ट के एक सीनियर जस्टिस के साथ एक बेंच में बैठाएंगे. संबंधित न्यायाधीश को उनके पद छोड़ने तक कोई आपराधिक निर्णय नहीं सौंपा जाएगा. यदि किसी समय उन्हें एकल न्यायाधीश के रूप में बैठाया जाता है, तो उन्हें कोई आपराधिक निर्णय नहीं सौंपा जाएगा.”
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal case सूची से हटाने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह ध्यान में रखते हुए कि विवादित आदेश संबंधित न्यायाधीश का एकमात्र गलत आदेश नहीं है जिस पर हमने पहली बार गौर किया है. ऐसे कई गलत आदेशों पर हमने समय-समय पर गौर किया है. रजिस्ट्रार से इस आदेश की एक प्रति इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश को यथाशीघ्र भेजने का अनुरोध किया गया है. इस न्यायालय के उपर्युक्त दो निर्णयों में दिए गए कथन को ध्यान में रखते हुए, इस मामले की पुनः सुनवाई उसके गुण-दोष के आधार पर की जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट के जजों की बेंच ने कहा:-

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वे इस मामले को उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को सौंप दें, जैसा वे उचित समझें.

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संबंधित न्यायाधीश से वर्तमान आपराधिक निर्णय (Criminal case) तुरंत वापस ले लेंगे.

हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal case सूची से हटाने का आदेश

चीफ जस्टिस संबंधित न्यायाधीश को हाईकोर्ट के एक अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ एक खंडपीठ में बैठाएंगे.

यह भी निर्देश देते हैं कि संबंधित न्यायाधीश को उनके पद छोड़ने तक कोई आपराधिक निर्णय (Criminal case) नहीं सौंपा जाएगा. यदि किसी समय उन्हें एकल न्यायाधीश के रूप में बैठाया भी जाता है, तो उन्हें कोई आपराधिक निर्णय (Criminal case) नहीं सौंपा जाएगा.

हम निर्देश जारी करने के लिए बाध्य हैं, यह ध्यान में रखते हुए कि विवादित आदेश संबंधित न्यायाधीश का एकमात्र त्रुटिपूर्ण आदेश नहीं है जिस पर हमने पहली बार गौर किया है. हमने समय-समय पर ऐसे कई त्रुटिपूर्ण आदेशों पर गौर किया है.

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