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संविधान पीठ तय करेगी बार कोटे में district Judge की नियुक्ति की Eligibility, सुनवाई 23 से

संविधान पीठ तय करेगी बार कोटे में district Judge की नियुक्ति की Eligibility, सुनवाई 23 से

कोई न्यायिक अधिकारी जिसने बार में 7 साल पूरे कर लिए हैं, बार में पद रिक्त होने पर जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने का हकदार (Eligibility) हो सकते हैं. यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ तय करेगी. पांच जजों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर 23 सिंतबर से सुनवाई शुरू करेगी. संविधान पीठ में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस विनोद चंद्रन को शामिल किया गया है. इस बेंच ने शुक्रवार को सुनवाई का शेडयूल तय कर दिया और 25 सितंबर को सुनवाई पूरी करने का प्रस्ताव रखा. दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने के लिए डेढ़ दिन का समय दिया गया है.

बता दें कि चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच के समक्ष 12 अगस्त को Eligibility का मुद्दा रखा गया था. बेंच ने इस मामले को सुनवाई के लिए लार्जर बेंच को संदर्भित कर दिया था. यह मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 233 (2) की व्याख्या से संबंधित था. इसमें मुख्यत: दो मुद्दे उठाये गये थे

  •  (i) क्या एक न्यायिक अधिकारी जो पहले से ही अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं के लिए भर्ती होने वाले बार में सात साल पूरे कर चुका है, बार रिक्ति के खिलाफ अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए Eligibility होगा?
  • (ii) क्या जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता (Eligibility) केवल नियुक्ति के समय या आवेदन के समय या दोनों पर देखी जानी है?

पांच जजों की संविधान पीठ का गठन होने के बाद इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने कहा कि जस्टिस सुंदरेश ने एक अतिरिक्त मुद्दा सुझाया है कि क्या बार और न्यायिक सेवा में संयुक्त अनुभव को सीधी भर्ती के माध्यम से जिला न्यायाधीश के लिए संचयी रूप से माना जा सकता है.

बेंच ने कहा कि प्रस्ताव का समर्थन करने वाले व्यक्ति (यानी जो तर्क देते हैं कि बार में 7 साल का अनुभव रखने वाला न्यायिक अधिकारी डीजे पदों पर सीधी भर्ती की मांग कर सकता है) 23 सितंबर और 24 सितंबर के पहले भाग में बहस करेंगे. प्रस्ताव का विरोध करने वाला पक्ष 24 सितंबर के दूसरे भाग और 25 सितंबर को बहस करेगा. अजय कुमार सिंह को प्रस्ताव का समर्थन करने वाले पक्ष के लिए नोडल वकील नियुक्त किया गया है.

कोटे में जिला जजों की नियुक्ति की Eligibility का संदर्भ क्यों

Eligibility प्रकरण केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील से सामने आया था. केरल हाई कोर्ट ने एक जिला न्यायाधीश की नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि नियुक्ति आदेश जारी करने के समय, वह प्रैक्टिसनर एडवोकेट नहीं थे. वह न्यायिक सेवा में मुंसिफ के रूप में कार्यरत थे. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी.

अपीलकर्ता रेजानिश केवी प्रैक्टिसनर एडवोकेट थे जिन्हें बार में 7 साल का अनुभव था. उन्होंने जिला न्यायाधीश के पद के लिए अपना आवेदन प्रस्तुत किया था. वह मुंसिफ/मजिस्ट्रेट के पद पर चयन के लिए भी आवेदक थे. जब जिला न्यायाधीश की चयन प्रक्रिया चल रही थी तब उन्हें 28/12/2017 को मुंसिफ-मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था. जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति आदेश मिलने के बाद उन्हें 21.8.2019 को अधीनस्थ न्याय पालिका से कार्यमुक्त कर दिया गया.

उन्होंने 24.8.2019 को जिला न्यायाधीश तिरुवनंतपुरम के रूप में कार्यभार संभाला. एक अन्य उम्मीदवार (के. दीपा) ने हाई कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर कर उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी. इसमें तर्क दिया गया था कि वह जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के Eligibility नहीं हैं क्योंकि जिस समय उन्हें जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था उस समय वह अधिवक्ता नहीं थे और न्यायिक सेवा में थे तथा मुंसिफ के रूप में कार्य कर रहे थे.

इस रिट याचिका को सिंगल बेंच ने धीरज मोर बनाम दिल्ली हाई कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए स्वीकार किया था. इस निर्णय में यह माना गया था कि सीधी भर्ती द्वारा जिला न्यायाधीश के पद के लिए आवेदन करने वाले अधिवक्ता को नियुक्ति की तिथि तक अधिवक्ता बने रहना चाहिए.

हाई कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि देश भर में जिला न्यायाधीशों की कई नियुक्तियाँ संबंधित राज्यों में लागू नियमों के आधार पर की गई होंगी जो केरल नियमों की तरह धीरज मोर मामले में घोषित कानून के विपरीत हो सकती हैं. इसलिए इसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने के लिए प्रमाणपत्र प्रदान किया और कहा कि इस मामले में सामान्य महत्व का एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न शामिल है.

इन मामलों में 12.08.2025 के निर्णय द्वारा पहले ही तैयार किए जा चुके मुद्दों के अलावा निम्नलिखित दो मुद्दे भी विचारार्थ तैयार किए गए हैं-

  • i. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 233(2) के तहत संघ या राज्य की न्यायिक सेवा में पहले से कार्यरत किसी व्यक्ति के लिए जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हेतु कोई Eligibility निर्धारित है?
  • ii. क्या कोई व्यक्ति जो सात वर्षों की अवधि के लिए सिविल न्यायाधीश रहा हो या सात वर्ष या उससे अधिक की संयुक्त अवधि के लिए अधिवक्ता और सिविल न्यायाधीश रहा हो, भारत के संविधान के अनुच्छेद 233 के तहत जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए Eligibility होगा?
  • इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले वकील कि न्यायिक सेवा के सदस्य भी जिला न्यायाधीश के पद के लिए (सीधी नियुक्ति के माध्यम से) उपस्थित हो सकते हैं और यह प्रस्ताव कि सात वर्षों के अनुभव की गणना के लिए, सिविल न्यायाधीश के बार में अनुभव को ध्यान में रखा जाना चाहिए, 23.09.2025 को और 24.09.2025 की पहली छमाही के दौरान भी बहस करेंगे.
  • प्रस्ताव का विरोध करने वाले वकील 24.09.2025 के उत्तरार्ध से और 25.09.2025 को भी अपने मामले पर बहस करेंगे.
  • अजय कुमार सिंह, विद्वान एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, पहले भाग में बहस करने वाले वकीलों के लिए नोडल वकील के रूप में कार्य करेंगे और प्रस्ताव के समर्थन में बहस करने वाले विद्वान वकीलों के बीच आवंटित समय को विभाजित करेंगे.
  • हमारी स्टोरी की वीडियो देखें…
  • जॉन मैथ्यू, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड, दूसरे भाग में बहस करने वाले विद्वान वकीलों के लिए नोडल वकील होंगे और आवंटित समय को विद्वान वकीलों के बीच विभाजित करेंगे.
  • अजय कुमार सिंह और जॉन मैथ्यू, वकील सुनवाई के लिए एक सामान्य सुविधा संकलन तैयार करने के लिए एक साथ बैठेंगे.
  • नोडल वकील, वरिष्ठ वकील या पक्षों की ओर से बहस करने वाले वकील के परामर्श से, वकीलों के बीच समय-सारिणी की व्यवस्था करेंगे ताकि प्रत्येक पक्ष की बहस उन्हें आवंटित समय के भीतर समाप्त हो सके.
  • कोर्ट ने कहा कि समय-सारिणी का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और पक्षों के वकील को उन्हें आवंटित समय के भीतर अपनी दलीलें पूरी करने का प्रयास करना चाहिए. पक्षकारों को खंडों का संकलन करते समय रजिस्ट्री द्वारा 03.04.2024 को जारी परिपत्र और अन्य विविध निर्देशों का पालन करना होगा.

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