डाक्टर की सामान्य असावधानी आपराधिक नहीं, सिविल दायित्व
हाईकोर्ट ने कहा, पुलिस के समक्ष इकबालिया बयान अभियुक्त के खिलाफ साक्ष्य नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डाक्टर की चिकित्सा लापरवाही पर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए खुर्जा बुलंदशहर के निजी नर्सिंग होम चलाने वाले डाक्टर नीरज कुमार के खिलाफ सीजेएम की अदालत में लंबित आपराधिक केस कार्यवाही को रद कर दिया है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जैकब मैथ्यू केस के फैसले के हवाले से कहा कि डाक्टर की योग्यता पर सवाल नहीं है और इंजेक्शन देने असावधानी बरतने के कारण अपराधी नहीं माना जा सकता. यह नहीं कह सकते कि डाक्टर ने मरीज की हालत बिगड़े इसलिए जानबूझकर इंजेक्शन दिया था. डाक्टर ने बच्चे की गंभीर हालत देख संभव इलाज किया.
इकबालिया बयान व एफआईआर को साक्ष्य के तौर पर पेश नहीं किया
कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस को अभियुक्त द्वारा दिए गए इकबालिया बयान व एफआईआर को साक्ष्य के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता. संविधान का अनुच्छेद 20(3) किसी अभियुक्त को स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य करने पर रोक लगाता है. कोर्ट ने डाक्टर की सामान्य व गंभीर लापरवाही को परिभाषित करते हुए कहा कि एक सिविल दायित्व तो दूसरी आपराधिक दायित्व तय करती है. प्रश्नगत मामले में सामान्य लापरवाही मानी जा सकती है इसलिए आपराधिक केस कार्यवाही नहीं चल सकती.
याची को इलाज में लापरवाही बरतने का दोषी नहीं
यह फैसला जस्टिस मंजू रानी चौहान की बेंच ने डॉ नीरज कुमार की धारा 482 की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. 13 फरवरी 23 को अस्पताल में भर्ती बच्चे के इलाज में लापरवाही से इंजेक्शन देने के आरोप में सीजेएम की अदालत में एफआईआर दर्ज करने की विपक्षी ने अर्जी दी. कोर्ट ने सीएमओ को मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया. मेडिकल बोर्ड ने याची को इलाज में लापरवाही बरतने का दोषी नहीं माना. दूसरी अर्जी दी गई जिसपर कोर्ट के निर्देश पर 12 मई 23 को धारा 304 भारतीय दंड संहिता के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई. याची ने चुनौती दी, पुलिस रिपोर्ट पेश होने तक याची को संरक्षण मिला.
कोर्ट ने चार्जशीट को लिया संज्ञान
इसके बाद पुलिस की चार्जशीट पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया. जिसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 में याची द्वारा चुनौती दी गई. साथ ही अग्रिम जमानत अर्जी भी दी गई. डिस्चार्ज अर्जी भी सीजेएम ने निरस्त कर दी. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा कहा शुरुआत की कार्यवाही अवैध तो बाद की पूरी कार्यवाही विधि विरूद्ध मानी जायेगी. कोर्ट ने सभी पहलुओं पर विचार करते हुए केस कार्यवाही रद कर दी है.