Compassionate appointment के दावे पर सुनवाई न करने पर SBI पर ₹1 लाख का जुर्माना

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate appointment) के लिए आवेदन/अभ्यावेदन पर 5 वर्षों तक निर्णय न करने पर भारतीय स्टेट बैंक पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. प्रकरण की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस अजय भनोट ने कहा कि अपने कर्तव्यों के चार्टर के आलोक में याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर शीघ्र समय सीमा में निर्णय न लेने के लिए बैंक पर 1,00,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है.
केस के तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ता प्रिंसू सिंह के पिता बैंक के इम्प्लाई थे. उसके पिता को 10.05.2006 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. याचिकाकर्ता के पिता ने बर्खास्तगी के आदेश के विरुद्ध लेबर कोर्ट में केस दाखिल किया. लेबर कोर्ट ने 16.10.2015 के निर्णय द्वारा याचिकाकर्ता के पिता की सेवा से बर्खास्तगी को रद्द कर दिया और पूर्ण बकाया वेतन और पद से जुड़े सभी परिणामी लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया.
लेबर कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई. यह रिट याचिका अभी भी लंबित है. याचिकाकर्ता के पिता की 08.12.2019 को सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो गई. याचिकाकर्ता की ओर से उसकी माँ द्वारा 24.01.2020 को अनुकंपा (Compassionate appointment) के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया था.
Compassionate appointment के लिए बार-बार प्रत्यावेदन देने के बाद भी बैंक ने कोई रिस्पांस नहीं किया. पांच साल बाद भी कोई फैसला न लिये जाने पर याची ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिकाकर्ता के अनुसार उसने वर्ष 2017 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. उसने शैक्षणिक वर्ष 2018-19 में प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) यूनिवर्सिटी प्रयागराज में ग्रेजुएशन कोर्स में दाखिला लिया. उसने 2021 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की.

याचिकाकर्ता के अनुसार उसके खिलाफ 2022 में एक मुकदमा दर्ज कराया गया था. अपने चाचा के खिलाफ मुकदमे में वह शामिल था. इस केस की प्रोसीडिंग अब भी पेंडिंग है. याचिकाकर्ता के अनुसार उसके मामले में लागू योजना भारतीय स्टेट बैंक में अनुकंपा (Compassionate appointment) के आधार पर नियुक्ति प्रदान करने की संशोधित योजना है. यह योजना 16.03.2021 को नोटीफाई की गई थी.
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 16.03.2021 को लागू संशोधित योजना, जिसमें अनुकंपा आवेदन करने के लिए कर्मचारी की मृत्यु से 6 महीने की समय सीमा प्रदान की गई थी याचिकाकर्ता पर लागू थी क्योंकि उसके द्वारा Compassionate appointment के लिए पहला आवेदन उसके पिता की मृत्यु के 6 महीने के भीतर दायर किया गया था.
कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate appointment) में दो प्रकार की देरी होती है. पहला प्राधिकारी के समक्ष आवेदन दायर करने में देरी और दूसरा उस पर मुकदमा चलाने में देरी. कोर्ट ने कहा कि लापरवाही तब होती है जब पीड़ित व्यक्ति अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन पर शीघ्र निर्णय के लिए रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल रहता है.
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सूचीबद्ध होने की अगली तिथि तक 28 अप्रैल 2016 को प्रकाशित आलोचना किए गए 16 अक्टूबर 2015 के आदेश का प्रभाव और संचालन स्थगित रहेगा, बशर्ते कि प्रतिवादी कर्मचारी को तिथि से एक महीने के भीतर बहाल कर दिया जाए और उसके बाद तीन महीने के भीतर उसके बकाया वेतन का 25% जारी कर दिया जाए. यह स्पष्ट किया जाता है कि कर्मचारी के पक्ष में जारी की गई राशि और बकाया वेतन रिट याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होगा.”
-जस्टिस अजय भनोट
Compassionate appointment के मामलों में अनुचित सहानुभूति और अति उदार दृष्टिकोण की अनुमति नहीं दी जा सकती
यह मानते हुए कि अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate appointment) के मामलों में अनुचित सहानुभूति और अति उदार दृष्टिकोण की अनुमति नहीं दी जा सकती कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से देरी और लापरवाही के आधार पर रिट याचिका खारिज कर दी. क्योंकि उसे अपने अधिकारों का ज्ञान था, फिर भी वह न्यायालय में देर से पहुँचा. कोर्ट ने आवेदन पर शीघ्र निर्णय न देने के लिए भारतीय स्टेट बैंक पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
Neutral Citation No. – 2025:AHC:173683 Case :- WRIT – A No. – 5353 of 2025
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