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FIR में Father के साथ Mother का भी नाम दर्ज होगा

इलाहा​बाद हाई कोर्ट ने पुलिस रिकॉर्ड में जाति संबंधी विवरण शामिल करने पर रोक लगाई

FIR में Father के साथ Mother का भी नाम दर्ज होगा

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर पूरा अमल हो गया तो एफआईआर दर्ज कराने वाला वादी हो या फिर आरोपित प्रतिवादी, दोनों की मां (Mother) का नाम भी इस पर दर्ज किया जायेगा. अभी तक यहां सिर्फ पिता का नाम जोड़ा जाता था. शराब तस्करी के एक आरोपित की तरफ से धारा 482 के तहत किये गये आवेदन को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर ने अपने फैसले में कई अन्य महत्वपूर्ण निर्देश दिये हैं.

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों (आरटीओ) और यातायात विभागों को एक समान सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है जिसमें वाहनों से जाति संबंधी चिह्न हटाने का निर्देश हो. इन निर्देशों का प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भारी जुर्माना लगाने का निर्देश भी कोर्ट ने अपने आदेश में दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जाँच और सार्वजनिक रिकॉर्ड में जाति संबंधी सूचना अंकित करने पर रोक लगायी जाय. ऐसा तभी किया जा सकता है जब किसी कानून के तहत ऐसा करना जरूरी हो.

“सरकार सभी निजी और सार्वजनिक वाहनों पर जाति-आधारित नारे और जाति पहचानकर्ताओं पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्रीय मोटर वाहन नियम (सीएमवीआर) को विनियमित और संशोधित करने के लिए एक विनियमित ढांचा तैयार कर सकती है. जाति के संकेतों को हटाने और भारी जुर्माना लगाने के लिए राज्य भर के आरटीओ और यातायात विभागों को एक समान परिपत्र जारी करें, जो एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है.”
जस्टिस विनोद दिवाकर

FIR में Father के साथ Mother का भी नाम दर्ज होगा

यह प्रकरण इटावा पुलिस द्वारा 29.04.2023 को की गयी कार्रवाई से सामने आया था. पुलिस ने एक वाहन पकड़ा था. इसमें से कई लोगों को पकड़ा गया था. इस वाहन से अवैध शराब की बोतलें बरामद हुईं थीं. आरोप लगा कि यह लोग हरियाणा से सस्ती शराब खरीद कर उसकी सप्लाई यूपी में करते हैं. यही उनकी आजीविका का साधन है.

हाई कोर्ट में आवेदन करने वाले प्रवीण छेत्री को गिरफ्तार किये गये लोगों ने अपने गिरोह का सरगना बताया था. एडवोकेट प्रशांत शर्मा ने आवेदक प्रवीण क्षेत्री का पक्ष रखा. एडवोकेट अमृत राज चौरसिया, एजीए सरकार की तरफ से कोर्ट में पक्ष रखने के लिए पेश हुए. हाई कोर्ट में दाखिल की गयी याचिका में एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी.

हाई कोर्ट ने तथ्यों को परखने पर पाया कि एफआईआर और संबंधित दस्तावेजों में माली, पहाड़ी राजपूत, ठाकुर, पंजाबी पाराशर और ब्राह्मण जैसे जातिगत संदर्भ थे. कोर्ट ने पुलिस रिकॉर्ड में जाति का खुलासा करने की प्रथा पर गंभीर आपत्ति जताई. जस्टिस विनोद दिवाकर ने इसे अनावश्यक, असंवैधानिक और राज्य संस्थाओं में जाति चेतना को प्रतिबिंबित करने वाला बताया.

कोर्ट ने प्रवीण क्षेत्री को राहत देने से इंकार कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में तमाम निर्देश भी राज्य सरकार को दिये हैं. निर्देश केंद्र सरकार के लिए वैकल्पिक हैं क्योंकि केन्द्र कोर्ट के समक्ष नहीं था.

हमारी स्टोरी की वीडियो देखें…

कोर्ट ने Mother का नाम जोड़ने के लिए यूपी सरकार के लिए जारी किये निर्देश

  • (क) शिकायतकर्ता/सूचनाकर्ता की मां (Mother) का नाम, पिता/पति के नाम के साथ, एफआईआर के प्रारूप में जोड़ा जाए.
  • (ख) घटनास्थल दर्शाने वाले व्यक्ति के पिता/पति के नाम के साथ मां (Mother) का नाम भी जोड़ा जाएगा. पैरा 5 का कॉलम संख्या 8 अपराध विवरण प्रपत्र के प्रारूप से हटा दिया जाएगा.
  • (ग) संपत्ति जब्ती ज्ञापन के पैरा-5 और 6 में पिता/पति के नाम के साथ मां (Mother) का नाम जोड़ा जाएगा.
  •  (घ) पैरा 6(1) में, अभियुक्त की मां (Mother) का नाम पिता/पति के नाम के साथ जोड़ा जाएगा. गिरफ्तारी/कोर्ट में सरेंडर ज्ञापन से पैरा 6(9) और 6(10) हटा दिए जाएँगे
  •  (ङ) पैरा 8 (ख) में, शिकायतकर्ता/सूचनाकर्ता की मां (Mother) का नाम पिता/पति के नाम के साथ जोड़ा जाएगा, और जहाँ तक पुलिस अंतिम रिपोर्ट से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग की आवश्यकता का संबंध है, पैरा 10 (vii) हटा दिया जाएगा. पैरा 11 में भी इसी प्रकार के परिवर्तन किए जाएँगे.
  • (च) संक्षेप में, जाति या जनजाति की आवश्यकता से संबंधित पैराग्राफ और कॉलम में प्रविष्टियां हटा दी जाएंगी. डीजीपी यूपी द्वारा केस में दायर किये गये काउंटर एफीडेविट के साथ संलग्न सभी प्रारूपों में पिता और पति के नाम के साथ मां (Mother) का नाम जोड़ा जाएगा.
  • (छ) उत्तर प्रदेश के सभी पुलिस थानों में लगे नोटिस बोर्ड पर अभियुक्त के नाम के आगे जाति का एक कॉलम अंकित है; सरकार इस आदेश की प्रति प्राप्त होते ही उसे तत्काल प्रभाव से हटाने (मिटाने) का उचित आदेश जारी करेगी.
  • (ज) कोर्ट के संज्ञान में यह भी लाया गया है कि ग्रामीण भारत, उपनगरीय कस्बों (कस्बों और तहसीलों) और यहाँ तक कि जिला मुख्यालयों की कुछ कॉलोनियों में भी, कुछ असंतुष्ट तत्वों ने झूठे जातिगत अभिमान और जातिगत अहंकार से प्रेरित होकर जाति का महिमामंडन करने वाले और विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों को जाति-क्षेत्र या जागीर घोषित करने वाले साइनबोर्ड लगा दिए हैं.
  • ऐसे साइनबोर्ड या घोषणाओं को तत्काल हटा दिया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए कि भविष्य में ऐसे कोई बोर्ड न लगाए जाएँ या न लगाए जाएँ.
  • अपर मुख्य सचिव (गृह) उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के परामर्श से उपरोक्त दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करेंगे और उसे लागू करेंगे और यदि आवश्यक हो तो शिकायतकर्ता/सूचनाकर्ता, अभियुक्त और गवाहों की जांच और सार्वजनिक अभिलेखों में जाति के प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने के लिए पुलिस नियमावली/विनियम में संशोधन करेंगे.
  • शिकायतकर्ता(ओं)/ सूचनाकर्ता(ओं) को केवल उन्हीं मामलों में छूट दी जाएगी जहाँ जाति का उल्लेख करना वैधानिक आवश्यकता है, जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज मामलों और अन्य सार्वजनिक अभिलेखों में.

Case: Application U/s 482 No. – 31545 of 2024  Praveen Chetri Versus State of U.P. and Another

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