CM के लिए exemption प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

उत्तर प्रदेश लोकायुक्त एवं उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1975 के उन प्रावधानों को challenge देने वाली याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी, जिनमें मुख्यमंत्री(CM) को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है. जिससे उन्हें अधिनियम के प्रभाव से सुरक्षा (exemption) मिलती है. पूर्व आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने संबंधित प्रावधान (अधिनियम की धारा 2 (जी)) को अत्यंत मनमाना, अनुचित, अर्थहीन, निरर्थक और CM को किसी भी प्रकार के आरोप और शिकायत से ‘बचाने’ के लिए खतरनाक बताया था.
अमिताभ ठाकुर की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि, “…मुख्यमंत्री (CM) अपने पद का दुरुपयोग करके खुद को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई लाभ या लाभ पहुँचाने या किसी अन्य व्यक्ति को अनुचित नुकसान या कठिनाई पहुँचाने से बच जाते हैं.” जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस बृज राज सिंह की बेंच ने याचिका खारिज कर दी.
संक्षेप में अमिताभ ठाकुर ने मांग की थी कि अधिनियम की धारा 2(जी) में “मुख्यमंत्री (CM) ” शब्द को असंवैधानिक घोषित किया जाए. धारा 2(जी) “मंत्री” को मुख्यमंत्री(CM) के अलावा मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य के रूप में परिभाषित करती है.
दुनिया में ऐसा कोई नियम नहीं है कि कोई CM भ्रष्ट नहीं हो सकता
याचिका में तर्क दिया गया है कि दुनिया में किसी लोक सेवक और संवैधानिक प्राधिकारी को उसके भ्रष्टाचार, अवैधताओं, अनियमितताओं और कुप्रशासन के कृत्यों के लिए किसी उच्च-स्तरीय निगरानी संगठन के चंगुल से बचाने का कोई कारण नहीं हो सकता. याचिकाकर्ता ने कहा कि “इस दुनिया में ऐसा कोई नियम नहीं है कि कोई मुख्यमंत्री (CM) भ्रष्ट नहीं हो सकता”.
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उनकी याचिका में यह भी बताया गया है कि देश के कई मुख्यमंत्रियों (CM) को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया है और जेल भेजा गया है. याचिका में तर्क दिया गया है कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, प्रधानमंत्री को जाँच से बाहर नहीं करता है. उस अधिनियम की धारा 14 स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाती है.
याचिका में 2012 के संशोधन द्वारा जोड़ी गई धारा 5(1) के पहले प्रावधान को भी चुनौती दी गई थी, जिसके अनुसार “लोकायुक्त या उप-लोकायुक्त, अपने कार्यकाल की समाप्ति के बावजूद, तब तक पद पर बने रहेंगे जब तक कि उनका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता”. ठाकुर की याचिका में तर्क दिया गया कि यह प्रावधान “पूरी तरह से मनमाना और निरर्थक” है क्योंकि इसमें तर्क दिया गया है कि अधिनियम की धारा 5(2) पहले से ही उप-लोकायुक्त या अन्य पदाधिकारियों को कार्यभार सौंपकर, कार्यकाल पूरा होने सहित, रिक्ति की स्थिति का प्रावधान करती है.
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