+91-9839333301

legalbulletin@legalbulletin.in

| Register

CJI की recommendation को चुनौती देने वाली जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका खारिज, 30 जुलाई को रिजर्व हुआ था फैसला

SC की इनहाउस जांच रिपोर्ट को रिट याचिका में दी थी चुनौती

CJI की recommendation को चुनौती देने वाली जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका खारिज, 30 जुलाई को रिजर्व हुआ था फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाये जाने की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से की गयी सिफारिश (recommendation) के खिलाफ दाखिल रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी. इस याचिका में जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन चीफ जस्टिस आफ इंडिया द्वारा की गयी सिफारिश (recommendation)  के साथ इन-हाउस जांच रिपोर्ट को भी चुनौती दी थी, जिसके चलते उन्हें केस-एट-होम घोटाले में दोषी ठहराया गया था. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनाया. बेंच इस प्रकरण की सुनवाई 30 जुलाई को पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था.

गुरुवार को फैसला सुनाते हुए, दो जजों की बेंच ने कहा कि इन-हाउस जांच में भाग लेने और बाद में जांच करने के लिए इन-हाउस पैनल की क्षमता पर सवाल उठाने वाले जस्टिस वर्मा के आचरण को देखते हुए रिट याचिका पर बिल्कुल विचार नहीं किया जा सकता. रिट याचिका को विचारणीय नहीं पाया गया, फिर भी पीठ ने उठाए गए संवैधानिक मुद्दों के महत्व को ध्यान में रखते हुए अन्य पाँच मुद्दों पर निर्णय लेने का निर्णय लिया.

अन्य मुद्दे इस प्रकार थे:

CJI की recommendation को चुनौती देने वाली जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका खारिज, 30 जुलाई को रिजर्व हुआ था फैसला

क्या जाँच को कानूनी मान्यता प्राप्त है? क्या प्रक्रिया के संदर्भ में जाँच और परिणामी रिपोर्ट एक समानांतर संविधानेतर तंत्र है?

जस्टिस दत्ता ने फैसला सुनाते हुए कहा, हमने कहा है कि प्रक्रिया (recommendation) को कानूनी मान्यता प्राप्त है. हमने यह भी माना है कि यह एक समानांतर और संविधानेतर तंत्र नहीं है.

क्या आंतरिक प्रक्रिया का पैरा 5बी संविधान के अनुच्छेद 124 और अनुच्छेद 217 व 218 का उल्लंघन करता है और हाईकोर्ट के न्यायाधीश के किसी मौलिक अधिकार का हनन करता है?

जस्टिस दत्ता ने कहा, इसका उत्तर निगेटिव है.

क्या चीफ जस्टिस या उनके द्वारा गठित समिति ने प्रक्रिया के अनुसार कार्य किया या उससे हटकर?

जस्टिस दत्ता ने कहा, हमने माना है कि मुख्य न्यायाधीश और उनके द्वारा गठित समिति ने प्रक्रिया का पूरी ईमानदारी से पालन किया है, सिवाय एक बात के वह है वीडियो फुटेज और तस्वीरें अपलोड करना. उन्होंने कहा, हमने माना है कि प्रक्रिया के अनुसार ऐसा करना (अग्निशमन अभियान की तस्वीरें और वीडियो सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड करना) आवश्यक नहीं था. ऐसा कहने के बाद, हमने माना है कि इससे कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि आपने सही समय पर इस पर सवाल नहीं उठाया. जहाँ तक अपलोडिंग का सवाल है, रिट याचिका में किसी राहत का दावा नहीं किया गया है.

क्या प्रक्रिया के पैराग्राफ 7(2) की वह अनिवार्यता असंवैधानिक है जिसके तहत मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट (recommendation)  भेजनी होती है?

CJI की recommendation को चुनौती देने वाली जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका खारिज, 30 जुलाई को रिजर्व हुआ था फैसला

बेंच ने इस पर कहाकि हमने माना है कि यह (recommendation) असंवैधानिक नहीं है. बेंच ने इस दलील पर भी विचार किया कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट (recommendation)  भेजने से पहले न्यायाधीश को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया. बेंच ने कहा कि ऐसा करना प्रक्रिया की अनिवार्यता नहीं है. सिर्फ़ इसलिए कि किसी अन्य मामले में ऐसा अधिकार किसी अन्य न्यायाधीश को दिया गया था, इसका मतलब यह नहीं है कि याचिकाकर्ता इसे अधिकार के रूप में दावा कर सकता है.

बेंच ने जस्टिस वर्मा के अधिकार को भी सुरक्षित रखा कि यदि उनके विरुद्ध महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जाती है, तो वे उसमें अपनी दलीलें रख सकें. पीठ ने अधिवक्ता मैथ्यूज जे. नेदुम्परा द्वारा दायर एक रिट याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें जस्टिस वर्मा के विरुद्ध “न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग” और “याचिकाकर्ता द्वारा शपथ पर गलत प्रस्तुतियाँ” देने के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी.

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा का पक्ष रखा. यह याचिका जस्टिस वर्मा के नाम के साथ ‘XXX’ के रूप में दायर की गई थी. सिब्बल का तर्क था कि क्या किसी न्यायाधीश को केवल अनुच्छेद 124(4) के तहत “सिद्ध कदाचार” या “अक्षमता” के आधार पर ही हटाया जा सकता है.

उनका तर्क था कि इंटरनल प्रोसीडिंग, जो चीफ जस्टिस आफ इंडिया को महाभियोग शुरू करने की सिफारिश (recommendation)  करते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिखने की अनुमति देती है, असंवैधानिक है. उनकी सिफारिश (recommendation)  महाभियोग शुरू करने का आधार नहीं हो सकती.

हमारी वीडियो स्टोरी देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें…

CJI की recommendation को चुनौती देने वाली जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका खारिज, 30 जुलाई को रिजर्व हुआ था फैसला

जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की थी कि आंतरिक प्रक्रिया केवल एक तदर्थ प्रारंभिक जाँच है और जब इसकी रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में भी नहीं माना जाता है, तो याचिकाकर्ता इस स्तर पर व्यथित नहीं हो सकता. बता दें कि यह मामला 14 मार्च को अग्निशमन अभियान के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास के बाहरी हिस्से में मिले नोटों के ढेर से संबंधित है.

जस्टिस वर्मा और उनकी बेटी सहित 55 गवाहों और अग्निशमन विभाग के सदस्यों द्वारा लिए गए वीडियो और तस्वीरों के रूप में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की जाँच के बाद, समिति ने माना कि उनके आधिकारिक परिसर में नकदी पाई गई थी. यह पाते हुए कि स्टोररूम “न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों के गुप्त या सक्रिय नियंत्रण” में था, समिति ने माना कि नकदी की उपस्थिति के बारे में स्पष्टीकरण देने का दायित्व जस्टिस वर्मा का था.

जस्टिस वर्मा “साफ इंकार या साजिश का एक स्पष्ट तर्क देने के अलावा, कोई उचित स्पष्टीकरण देकर अपना दायित्व पूरा नहीं कर सके, इसलिए समिति ने उनके खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव (recommendation) करने के लिए पर्याप्त आधार पाया.

इसे भी पढ़ें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *