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498A IPC केस में 2 महीने तक Arrest नहीं करेगी पुलिस!

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइड लाइन्स को दी मंजूरी

498A IPC केस में 2 महीने तक पुलिस नहीं करेगी Arrest!

वैवाहिक विवाद के बाद 498A IPC के तहत दर्ज कराये गये केस में पुलिस दो महीने तक आरोपितों को Arrest नहीं करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दिये गये फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में Arrest के साथ ही इस धारा में दर्ज होने वाले केसेज को इंवेस्टिगेट करने और विवेचना रिपोर्ट दाखिल करने के लिए गाइड लाइन भी तय कर दी.

चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने यह फैसला दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुनाया. कोर्ट एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7869/2022 और 11848/2022 पर सुनवाई कर रही थी. इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को चुनौती दी गयी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में आईपीसी की धारा 498ए (क्रूरता अपराध) के दुरुपयोग को रोकने के लिए परिवार कल्याण समिति (एफडब्ल्यूसी) की स्थापना के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों का समर्थन किया.

कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और अधिकारियों द्वारा लागू किए जाने चाहिए. बेंच ने कहा कि धारा 498ए, आईपीसी के दुरुपयोग के संबंध में सुरक्षा उपायों के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन के संबंध में, 2022 के आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 1126 में पैरा 32 से 38 के अनुसार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 13.06.2022 के विवादित फैसले में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और अफसरों द्वारा लागू किए जाएंगे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने 2022 के फैसले में कहा था कि वह सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार बनाम भारत संघ 2018 (10) एससीसी 443 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए दिशा निर्देश जारी कर रहा है. इसका उद्देश्य वादियों में व्यापक और व्यापक आरोपों के माध्यम से पति और उसके पूरे परिवार को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है.

498A IPC केस में 2 महीने तक पुलिस नहीं करेगी Arrest!

हाईकोर्ट ने जारी किये थे दिशा निर्देश

(1) एफआईआर या शिकायत दर्ज होने के बाद, एफआईआर या शिकायत दर्ज होने के दो महीने की “शांति अवधि” समाप्त हुए बिना, नामित अभियुक्तों की Arrest या पुलिस कार्रवाई नहीं की जाएगी. शांति अवधि के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में तुरंत परिवार कल्याण समिति (जिसे आगे परिवार कल्याण समिति कहा जाएगा) को भेजा जाएगा.

(2) केवल वे मामले परिवार कल्याण समिति को भेजे जाएँगे जिनमें आईपीसी की धारा 498-ए के साथ-साथ धारा 307 और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत कारावास की सजा 10 वर्ष से कम हो.

(3) शिकायत या एफआईआर दर्ज होने के बाद, दो महीने की शांति अवधि समाप्त हुए बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. इस शांति अवधि के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति को भेजा जा सकता है.

(4) प्रत्येक जिले में कम से कम एक या एक से अधिक एफडब्ल्यूसी (जिला विधिक सहायता सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत गठित उस जिले के भौगोलिक आकार और जनसंख्या के आधार पर) होगी, जिसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे. इसके गठन और कार्यों की समीक्षा उस जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश/प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय द्वारा की जाएगी. वह विधिक सेवा प्राधिकरण में उस जिले के अध्यक्ष या सह-अध्यक्ष होंगे.

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  • (5) एफडब्ल्यूसी में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे
  • (ए) जिले के मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या पांच वर्ष तक का अनुभव रखने वाला युवा अधिवक्ता या सरकारी विधि महाविद्यालय या राज्य विश्वविद्यालय या एन.एल.यू. के पंचम वर्ष का वरिष्ठतम छात्र, जिसका शैक्षणिक रिकॉर्ड अच्छा हो और जो लोकहितैषी युवा हो, या
  • (बी) उस जिले का एक सुप्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता जिसका पूर्ववृत्त स्वच्छ हो
  • (सी) जिले में या उसके आस-पास रहने वाले सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, जो कार्यवाही के उद्देश्य के लिए समय दे सकें.
  • (डी) जिले के वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियाँ.
  • (6) परिवार कल्याण समिति के सदस्य को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा.

(7) भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और उपर्युक्त अन्य संबद्ध धाराओं के अंतर्गत प्रत्येक शिकायत या आवेदन को संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा. उक्त शिकायत या प्राथमिकी प्राप्त होने के बाद, समिति प्रतिवादी पक्षों को उनके चार वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए बुलाएगी और शिकायत दर्ज होने के दो महीने के भीतर उनके बीच विवाद/शंकाओं को सुलझाने का प्रयास करेगी. प्रतिवादी पक्षों को समिति के सदस्यों की सहायता से आपस में गंभीर विचार-विमर्श के लिए अपने चार वरिष्ठ व्यक्तियों (अधिकतम) के साथ समिति के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य है.

(8) समिति उचित विचार-विमर्श के बाद, एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी और मामले से संबंधित सभी तथ्यात्मक पहलुओं और अपनी राय को शामिल करते हुए, दो महीने की समाप्ति के बाद संबंधित मजिस्ट्रेट/पुलिस अधिकारियों को, जिनके पास ऐसी शिकायतें दर्ज की जा रही हैं, भेजेगी.

(9) समिति के समक्ष विचार-विमर्श जारी रखते हुए, पुलिस अधिकारी स्वयं नामित अभियुक्तों के विरुद्ध आवेदन या शिकायत के आधार पर किसी भी या किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचेंगे. हालाँकि, जाँच अधिकारी मामले की परिधीय जाँच जारी रखेंगे, जैसे कि चिकित्सा रिपोर्ट, चोट की रिपोर्ट, गवाहों से पूछताछ आदि.

(10) समिति द्वारा दी गई उक्त रिपोर्ट जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के विचाराधीन होगी और उसके बाद दो महीने की शांत अवधि की समाप्ति के बाद दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान के अनुसार उनके द्वारा उचित कार्रवाई की जानी चाहिए.

(11) विधिक सेवा सहायता समिति समय-समय पर परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को आवश्यक समझे जाने वाले बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करेगी (एक (26) सप्ताह से अधिक नहीं).

(12) चूंकि, यह समाज में घर्षण को ठीक करने का नेक काम है, जहां प्रतियोगी पक्षों का टेंपो बहुत अधिक है, इसलिए वे उनके बीच की गर्मी को कम करेंगे और उनके बीच की गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करेंगे. चूंकि, यह बड़े पैमाने पर जनता के लिए एक सामाजिक कार्य है, वे प्रत्येक जिले के जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा तय किए गए प्रो बोनो आधार या मूल न्यूनतम मानदेय पर कार्य कर रहे हैं.

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(13) आईपीसी की धारा 498ए और ऊपर उल्लिखित अन्य संबद्ध धाराओं वाली ऐसी एफआईआर या शिकायत की जांच गतिशील जांच अधिकारियों द्वारा की जाएगी, जिनकी ईमानदारी एक सप्ताह से कम समय के विशेष प्रशिक्षण के बाद प्रमाणित होती है ताकि वे ऐसे वैवाहिक मामलों को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संभाल सकें और जांच कर सकें.

(14) जब पक्षों के बीच समझौता हो जाता है, तो जिला और सत्र न्यायाधीश और जिले में उनके द्वारा नामित अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों के लिए आपराधिक मामले को बंद करने सहित कार्यवाही का निपटान करना खुला होगा.

बता दें कि राजेश शर्मा और अन्य बनाम यू.पी. राज्य और अन्य में 2017 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के दिशा निर्देश दिए थे. हालांकि, 2018 में, सोशल एक्शन फोरम में, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इन निर्देशों को वापस ले लिया था.

सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि शिवांगी बंसल/शिवांगी गोयल द्वारा आईपीसी की धारा 498 ए, 307 और 376 के तहत गंभीर आरोपों सहित आपराधिक मामलों के परिणामस्वरूप पति साहिब बंसल को 109 दिनों के लिए और उसके पिता मुकेश बंसल को 103 दिनों के लिए जेल में (Arrest) रखा गया था. पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ छह अलग-अलग आपराधिक मामले दर्ज कराए थे.

एक प्राथमिकी में घरेलू क्रूरता (आईपीसी की धारा 498 ए), हत्या का प्रयास (धारा 307), बलात्कार (376) आदि के बारे में आरोप लगाए गए थे इनके अलावा, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत तीन शिकायतें भी दर्ज थीं. पत्नी ने तलाक, भरण-पोषण आदि के लिए पारिवारिक न्यायालय में भी मामले दायर किए थे. न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए आपराधिक मामलों को रद्द कर दिया और विवाह को भंग करने का आदेश दिया.

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