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Marriage में दिए गए ‘Gift’ दहेज नहीं, 3 को राहत

HC ने धर्मांतरण और दहेज की मांग मामले दिया फैसला

Marriage में दिए गए 'Gift'

Marriage (विवाह) के दौरान आयोजित होने वाले विभिन्न प्रकार की रस्मों के दौरान इसमें शामिल होने वाले लोगों की तरफ से दिये गये जाने उपहारों (Gift) को आमतौर पर दहेज के रूप में नहीं लिया जाता है. इस कमेंट के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज निषेध अधिनियम और उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत दर्ज तीन व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी है.

जस्टिस विक्रम डी चौहान की बेंच ने आरोपियों को राहत देते हुए कहा कि यह मामला बाद में विचाराधीन हो सकता है इसलिए, इसकी विस्तृत जाँच आवश्यक है. कोर्ट ने राज्य सरकार और घटना की सूचना देने वाले मृतका के पिता से मामले में काउंटर एफीडेविट मांगा है.

प्रकरण का सह-आरोपी फराज धर्म से मुस्लिम है और कथित तौर पर मृतक महिला, जो धर्म से हिंदू थी, के साथ प्रेम संबंध में था. शादी (Marriage) करने के इरादे से दोनों ने दिल्ली विवाह रजिस्ट्रार के समक्ष सिविल विवाह के लिए हलफनामा (6 दिसंबर, 2024 को) दायर किया. जिसमें महिला ने कथित तौर पर एक हिंदू के रूप में शादी (Marriage) करने के अपने इरादे की पुष्टि की थी. 12 दिसंबर को संदिग्ध हालात में उसकी मौत हो गयी. इसके बाद उसके पिता ने फराज और उसके भाई, बहन और माँ को आरोपित करते हुए थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी.

थाने में दी गयी तहरीर में मृतका के पिता ने आरोप लगाया था कि चारों आरोपियों ने दहेज की माँग की थी और मृतका पर इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव भी डाला था. पूरी आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए, तीन आवेदकों ने हाईकोर्ट का रुख किया. याचिका दाखिल करके अपनी बात रखी और तर्क दिया कि इस मामले में उनकी एकमात्र संलिप्तता विवाह (Marriage)-पूर्व समारोह में शामिल होना थी. प्राथमिकी में उनके खिलाफ किसी भी प्रत्यक्ष कृत्य का आरोप नहीं लगाया गया है. यह तर्क दिया गया कि दहेज की माँग और धर्म परिवर्तन से संबंधित मुख्य आरोप केवल फराज (मृतका के पति) पर लगाए गए थे, न कि आवेदकों पर.

उन्होंने मृतका से संपर्क टूट जाने के बाद सह-आरोपी फराज द्वारा दिल्ली पुलिस में दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत और मृतका के पिता द्वारा आत्महत्या बताते हुए पोस्टमार्टम के अनुरोध का भी हवाला दिया. आवेदकों ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, उन्हें कोई दहेज नहीं मिला था. यह तर्क दिया गया कि मृतका की मृत्यु कथित तौर पर इसलिए हुई क्योंकि मृतका की माँ और बहन ने उसे विवाह (Marriage) की प्रक्रिया से विमुख होने के लिए मजबूर किया था.

Marriage में दिए गए 'Gift'

प्रतिपक्ष के वकील ने उनके आवेदन का विरोध किया क्योंकि उन्होंने मृतका की बहन और माँ के बयानों पर भरोसा किया, जो 28 दिसंबर, 2024 को आवेदकों पर जबरन धर्मांतरण और दहेज की माँग के आरोपों के संबंध में दर्ज किए गए थे. हालाँकि, वह यह साबित नहीं कर सके कि कोई Marriage में दहेज दिया गया था, और उन्होंने केवल यह प्रस्तुत किया कि रोका पर दी गई राशि, जो विवाह (Marriage) में एक समारोह है, वास्तव में दहेज थी.

इन दलीलों की पृष्ठभूमि में, पीठ ने शुरू में ही कहा कि विवाह (Marriage) में दिए गए उपहारों को आमतौर पर दहेज नहीं माना जाता है. पीठ ने यह भी ध्यान में रखा कि दहेज और जबरन धर्मांतरण के आरोप मृतका की मृत्यु के 17 दिन बाद दर्ज किए गए बयानों में ही सामने आए और इनका उल्लेख सूचक-पिता द्वारा पहले नहीं किया गया था.

Marriage में दिए गए 'Gift'

“विवाह (Marriage) में दिए गए उपहारों को आमतौर पर दहेज के रूप में नहीं लिया जाता है. मृतक की बहन और माँ के बयान 28.12.2024 को दर्ज किए गए थे, हालाँकि मृतक की मृत्यु 11.12.2024 को हो चुकी थी. यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उपरोक्त आरोपों की सूचना मृतक के पिता, जो कि सूचक हैं, को क्यों नहीं दी गई और 28.12.2024 को पुलिस अधिकारियों के समक्ष पहली बार बयान क्यों दर्ज किए गए.”

Marriage मामले को संभावित रूप से ‘बाद में उठाया गया’ बताते हुए, कोर्ट ने कहा कि एक विस्तृत जाँच की आवश्यकता होगी और राज्य और घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने वाले मृतका के पिता दोनों को प्रति-शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया. इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि सूचीबद्ध होने की अगली तिथि तक, आवेदकों के विरुद्ध उपरोक्त मामले में कार्यवाही स्थगित रहेगी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सह-अभियुक्त फराज के विरुद्ध मामला कानून के अनुसार चल सकता है.

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एसडीएम ज्योति मौर्या को गुजारा भत्ता पर नोटिस
बहुचर्चित एसडीएम श्रीमती ज्योति मौर्या के पति आलोक कुमार मौर्य ने पत्नी से गुजारा भत्ता दिलाने से इंकार करने के फैमिली कोर्ट के 4 जनवरी, 2025 के  आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की है. जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की बेंच ने ज्योति मौर्या को नोटिस जारी की है. कोर्ट ने नोटिस अपील की कापी के साथ पंजीकृत डाक से भेजने का आदेश दिया है.

अपीलार्थी ने एसडीएम पत्नी से अंतरिम गुजारा भत्ता दिलाने की मांग में परिवार अदालत में अर्जी दाखिल की. कहा प्रतिवादी-पत्नी एक प्रशासनिक अधिकारी हैं, वह विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं और सरकार में एक मामूली पद पर कार्यरत हैं. इसलिए अंतरिम गुजारा भत्ता दिलाया जाय. परिवार अदालत ने अर्जी खारिज कर दी. जिसके खिलाफ प्रथम अपील हाईकोर्ट में दाखिल की गई है. अपील 77 दिनों की देरी से प्रस्तुत की गई और इसके लिए देरी माफ करने का आवेदन दिया गया है. कहा डिक्री की अनुपलब्धता के कारण दाखिले में देरी से छूट दी जाय.

अदालत ने आवेदनों और अपील पर नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. अपीलकर्ता को पंजीकृत डाक/स्पीड पोस्ट से तामील के लिए एक सेट के साथ प्रक्रिया शुल्क जमा करने को कहा  है. और कोर्ट ने 4 जनवरी, 2025 के परिवार अदालत के आदेश का अंग्रेजी अनुवाद भी दाखिल करने को भी कहा है. मामले की अगली सुनवाई 8 अगस्त, 2025 को होगी.

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